Tuesday 15 August 2017

मेरी पहली यात्रा, भाग-4...... ताजमहल के प्रथम दर्शन....

नमस्कार मित्रों,
भारत माता की जय के उद्गोष के साथ आप सभी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
आपकी जानकारी के लिये बात दूँ की इस रंगोली में भगवा रंग में जो नक्शा दिख रहा है, वह ""अखण्ड भारत"" का है। इस रंगोली का निर्माण मेरे द्वारा 13 अगस्त को R.S.S. के "" अखण्ड भारत संकल्प दिवस"" कार्यक्रम में किया गया।



 किन्नौर कैलाश से वापस के बाद एकदम आए मित्रों के साथ शिमला घूमने का प्लान बन गया तो आप सब से सम्पर्क नही हो पाया। अभी भी नही हो पाता, पर इस समय कुरुक्षेत्र से कोटा(राजस्थान) का सफर रेलगाड़ी में कर रहा हूँ। गाने सुनकर कानो की ऐसी-तैसी करने से ठीक है, अपने मित्रों के लिये एक यात्रा वृत्तान्त ही लिख दूँ।

खैर, मेरा तो बहुत हो गया अब आगे सुनिए....


नहा धोकर ताजमहल के लिये निकले, ओर छोले- भटूरे खाए। आगरा के बाजार को देखते हुए हम दोनों, मोहित जैन और मै, ताजमहल की ओर प्रस्थान कर रहे थे। गरमी ने हमारा बुरा हाल किया हुआ था। पानी के घूंट पर घूंट गले को तर कर रहे थे। चलते चलते, आधे घण्टे बाद हम ताजमहल के पश्चिमी दरवाजे के सामने आ गए। वहां जाकर पता चला कि टिकट लेनी है तो टिकट वाली लाइन में लग गए। गर्मी के दिन थे, सूर्य देव अपनी तपिश से समस्त आगरा को झुसला रहे थे, मगर ताजमहल की तरफ जाने वाली पंक्ति का छोर नजर नही आ रहा था। सब धीरे धीरे आगे की तरफ सरक रहे थे तो हम भी उनके साथ ही थे। सुरक्षा चेकिंग के पश्चात अंदर जाने दिया। अंदर गए तो देखा लाल पत्थर का बना एक बहुत बड़ा दरवाज़ा हमारे समक्ष सीना ताने खड़ा था। वहां चित्र लिये गए, ओर फिर उसके अंदर गए।
5 वर्ष हो गए , तो उस यात्रा के जो चित्र मैने fb पर डाल रखे थे, केवल वो उपलब्ध हो सके हैं। यह उनमे से एक है।


                        अंदर क्या गए भाइयों, हम तो स्वर्ग में चले गए। उस दरवाजे के अंदर से सफेद संगमरमर की बनी उस विश्व प्रसिद्ध इमारत के दर्शन हुए जिसे दुनिया के लोग ताजमहल के नाम से जानते हैं। उस यात्रा पर गए हुए 5 वर्ष से भी ऊपर का समय हो गया है। उसके बाद मैं 2 दफा ओर ताजमहल जा चुका हूँ, पर वो दृश्य आज भी मेरी आँखों के सामने ज्यों का त्यों है। खैर छोड़िये, धीरे धीरे हम चित्र खीचते हुए अंदर की तरफ जाने लगे। उस इमारत में क्या गजब का आकर्षण था कि मैं उसकी ओर खिंचता ही चला गया, खिंचता ही चला गया। दूर से जो ताजमहल छोटा सा दिखता था, उसे उस दिन पहली बार देखा कि वो जितना भव्य व आकर्षक है, उतना ही विशाल भी है। दूर से देखें, तो लगता है कि सफेद पत्थरों पर रंग- बिरंगी चींटिया घूम रही हैं, मगर वे भांति-भांति के कपड़े पहने हुए लोग थे।
मोहित जैन और मेरा एक संयुक्त चित्र।


                           चित्र खीचते हुए हम ताजमहल के उस हिस्से में प्रवेश कर गए जहाँ मुमताज व शाहजहाँ की कब्र हैं।मुझे व्यक्तिगत तौर पर बड़ा दुख हुआ कि उसमें अंदर बड़ा अंधेरा था। उजाले के नाम पर सिर्फ एक छोटी से बल्ब, जो उस लालटेन सी में जलता है जो उन कब्रो के ऊपर लटकती रहती है। उस समय वैसे मोबाइल नही होते थे जैसे आज हैं। मेरे पास सैमसंग का wave 525 मोबाइल था, जिसमे फ़्लैश लाइट नही थी तो अंदर के जो चित्र थे वो साफ नही आये। आंखों से जो जो देख सकते थे वो देखा, ओर बाहर निकले आये। एक अलग सी प्रसन्नता से मन झूम रहा था कि हमने ताजमहल देख लिया, पर उस खुशी को हवा होते देर नही लगी।

मैं आपको अवश्य बताऊंगा की वह क्या बात हुई जिससे मेरी खुशियो पर पोंछा लग गया, पर उसके लिए आप कुछ इंतज़ार करिए।
तब तक के लिये आपको एक बार फिर से नमस्कार व """ वन्देमातरम"""

4 comments:

  1. बढ़िया विवरण। कहानी में क्या मोड़ आया ये जानने के लिए उत्सुक हूँ।

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  2. बता दूंगा विकास जी। अगले भाग में

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  3. Main bhi Ek baar tajmahal ja chuka hu or aapka vivaran padhkar meri yade bhi taza ho gayi.

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    1. धन्यवाद आपके प्रेम के लिए जी।

      आगरा जगह ही ऐसी है कि जितनी बार जाओ मन नही भरता

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