Tuesday 24 October 2017

जनवरी में वैष्णो देवी यात्रा.... भाग-5

सभी मित्रों को नमस्कार।
आशा है आप सब के लिये दीपावली, गोवर्धन पूजा आदि पंच-पर्व बहुत शानदार गुजरे होंगे। सब त्यौहारों की खुशियां मनाने के बाद हाजिर हूं मैं, अपने साप्ताहिक यात्रा लेख का पांचवा भाग लेकर। आज के यात्रा वृतांत में आपको शिवखोड़ी के दर्शन करवाए जाएंगे।
यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय।                                                                        दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै "य" काराय नमः शिवाय।।

आप सब हर बार कहते थे कि सिर्फ मेरी ही फ़ोटो होती हैं, इसलिए बड़ी मुश्किल से लैपटॉप से में वीडियो खोजी। फिर उसका screenshot लिया, edit किया।
तोर नतीजा आपके सामने।
जारी है......

पिछले भाग में आपने पढ़ा, चाय ब्रेड का नाश्ता करने के बाद photo आदि का दौर हुआ। उसके बाद जब सभी सवारियां बस में सवार हो गई तो ड्राइवर ने भी बस अपनी मंजिल की तरफ बढ़ा दी। कुछ देर चलने के बाद रास्ते में एक बहुत बड़ी नदी आई। पहले तो मुझे उसका नाम याद नहीं था कोई उसे सतलुज बोल रहा था तो कोई व्यास, लेकिन उस यात्रा के बाद मुझे पता चला कि उस नदी का नाम था "चिनाब"। "चंद्रा" ओर "भागा" दो अलग अलग नदियों के मिलन से "चन्द्रभागा" का निर्माण होता है, जो स्थान परिवर्तन के साथ अपभ्रंश होकर "चिनाब" हो गया। बहुत ही बड़े व  विस्तृत पट के साथ वह नदी बह रही थी। वहां राफ्टिंग का बोर्ड भी लगा था लेकिन मुझे नदी में कोई भी राफ्टिंग करता हुआ नहीं दिखा। श्वेत धवल पानी के साथ वह नदी अपनी मंजिल की ओर पाकिस्तान में जा रही थी। चिनाब का इतना साफ पानी कि आप को नदी में पड़े हुए पत्थर भी साफ साफ दिखे। मेरा वहां फोटो लेने का बहुत मन था पर मैं बस में था, इस कारण मैं फोटो ले नहीं सकता था। उस नदी का विशाल पुल पार करके हमारी बस घुमावदार रास्तों से शिवखोड़ी की तरफ बढ़ रही थी। काफी देर के बाद बस ने शिवखोड़ी के बेस कैम्प "रणसू" बस स्टैंड पर ब्रेक लगाए।
रास्ते के किसी स्कूल में खेलते हुए बच्चे।

अक्षय



चिनाब पर लगा हुआ rafting का सूचना-पट्ट।

ओर ये रही चन्द्रभागा(चिनाब)

रक ओर।



बदलो से छन कर आती सूरज की किरणें।

कभी न खत्म हों ये रास्ते।


                        रणसू का बस स्टैंड बहुत ही विस्तृत भू-भाग में फैला हुआ है। जब हम बस में थे तो उस समय हल्की-हल्की बूंदाबांदी हो रही थी पर जब रणसू पहुंचे तो एकदम से बरसात बंद हो गई। शायद यह भोलेनाथ का हमारी सुगम यात्रा होने का आशीर्वाद ही था। शिवखोड़ी जाने के लिए जो पैदल रास्ता है वह मुख्य बस स्टैंड से ना होकर एक दूसरे बस स्टैंड से जाता है। वहां के लोंगो की मिलीभगत ही लगालो पर वहां जाने के लिए अलग से गाड़ियां और मिनी बस खड़ी थी। हमने भी एक मिनी बस में किराया पूछा जो ₹10 था और बैठ गए। ₹10 में वह केवल मात्र डेढ़ किलो मीटर दूर हमें लेकर गया, जहां से भी आधा किलो मीटर जाकर हम ने पर्ची कटवाई। यात्रा पर्ची कटवाने के लिए बहुत लंबी लाइन थी। यहां भी वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड की तरह एक यात्रा बोर्ड बना हुआ है, जो सभी यात्रियों को एक unique registratiom नंबर देकर यात्रा के लिए परमिट प्रदान करता है। जैसे-तैसे लाइन में लगकर हमने अपनी पर्ची कटवाई और भोले का नाम लेकर चल पड़े उन के दर्शन करने को।

          हम थोड़ा ही चले होंगे कि एक नदी पर बने पुल पर पहुंचे। वहां आटे की गोलियां बेचने वाला एक मुस्लिम बैठा था और वह आटे की गोलियां उस छोटी सी नदी के अंदर अपना जीवन व्यतीत कर रही छोटी-छोटी मछलियों के लिए थी। उनको अनदेखा करते हुए मैं और देवांशु आगे बढ़ते गए, प्राकृतिक नजारों को देखते हुए। क्योंकि उस समय मैं घुमक्कड़ नहीं tourist था और दिवांशु का भी यह पहला पर्वतीय दौरा था तो हम एक दूसरे की फोटो लेने में व्यस्त हो गए। जहां भी सांस लेने के लिए रुकते वही फोटो शुरू हो जाती।
शिवखोड़ी के रास्ते ओर मैं।

एक संयुक्त चित्र भी।

         यात्रियों की यात्रा सुगम व भक्तिमय हो, इसके लिए श्राइन बोर्ड ने बहुत अच्छे इंतजाम कर रखे हैं। जगह-जगह पर पानी पीने के लिए प्याऊ बनाए गए हैं। सभी श्रद्धालु भोले की भक्ति में रंगे हुए ही यात्रा करें, इसके लिए मधुर संगीत की व्यवस्था भी कर रखी है। यह पूरी यात्रा एक नदी के साथ-साथ चलती है और शिवखोड़ी गुफा तक पहुंचने के लिए आपको लगभग 5:30 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है।  कल-कल करती हुई नदी के साथ चलते हुए  हम अपनी यात्रा कर रहे थे। एक प्रसाद की दुकान आई और हम दोनों ने अलग-अलग प्रसाद लिया। आपको बता दूं, शिवखोड़ी गुफा के रास्ते में बंदर बहुत हैं। जब हम प्रसाद ले रहे थे तभी एक बंदर ने झपट्टा मारा लेकिन दुकान वाले ने उसे डरा कर भगा दिया। फिर उस दुकान वाले भाई ने हमें सचेत किया कि भैया! आप प्रसाद को किसी बैग में या अपने कपड़ों में डाल लो, नहीं तो यह बंदर आप को नुकसान पहुंचा सकते हैं।  क्योंकि मैं यात्रा में 1 छोटा बैग अपने साथ लिये हुए था तो मैंने तो अपना प्रसाद अपने बैग में डाल लिया और दिवांशु ने अपना अपने जैकेट के अंदर। सही समय तो याद नहीं लेकिन बिल्कुल धीरे-धीरे चलकर फोटो खींचते हुए हम चलते गए और गुफा के पास पहुंच गए। वैष्णो देवी गुफा की तरह ही शिवखोड़ी गुफा में भी मोबाइल का प्रयोग वर्जित है, लेकिन यहां आपको पर्स और बेल्ट अंदर लगा कर जाने की छूट है। हमने भी श्राइन बोर्ड के locker room में जाकर अपना मोबाइल व जूते जमा करवा दिए।


              मोबाइल वगैरा जमा करवाकर जब लाइन में लगने के लिए बाहर पहुंचे तो देखा LINE क्या यह तो क्लेश है। इतनी बड़ी लाइन वहां लगी हुई थी पर हमें दर्शन तो करना ही था तो जी हम भी लग गए लाइन में। मुझे नहीं पता कि कितना इंतजार किया लेकिन वह समय बिलकुल सामने खड़े पहाड़ जैसा था। वहां पर जो गार्ड बैठे थे, वह यात्रियों के ग्रुप बनाकर अंदर भेज रहे थे क्योंकि शिवखोड़ी गुफा के बारे में मैंने सिर्फ इतना ही सुना था कि यह गुफा बहुत खतरनाक है। काफी देर बाद जब हमारा नंबर आया तो हम भी गुफा के अंदर प्रवेश हुए। गुफा के अंदर प्रवेश द्वार पर शिव परिवार की स्थापना की गई है और एक बहुत बड़ा हॉल है जैसा अमरनाथ गुफा का है। लेकिन असली गुफा शुरू होती है कुछ आगे से। हमें यहां भी इंतजार करना पड़ा क्योंकि ग्रुप को एंट्री के बाद गुफा में एक एक बंदे को ही भेजा जाता है। गुफा शुरू में थोड़ी सी खुली है लेकिन जैसे-जैसे आगे बढ़ते रहते हैं, वैसे-वैसे यह गुफा भी संकरी होती जाती है। आधी से अधिक दूरी आपको दो चट्टानों के बीच से फंसते हुए रगड़-रगड़ कर पर करनी होती है। (यहां मैंने चित्र भी लगाए हैं, जो मेरे द्वारा नही लिए गए) ।
गुफा के प्रवेश द्वार।





अंदर कहीं का दृश्य।

जब वीडियोग्राफी बन्द नही थी।


इस तरह की है शिव की खोड़ी।

                    जब हम गुफा में अंदर जा रहे थे तो एक घटना घटी। हुआ यूं कि हमसे दो तीन व्यक्ति छोड़कर आगे एक आदमी जा रहा था। उस आदमी को पता नहीं क्या हुआ कि वह बिल्कुल जोर-जोर से रोने लगा- मुझे बाहर निकालो, मुझे नहीं जाना। लेकिन शिवखोड़ी गुफा जिसमें 1 व्यक्ति ही अंदर जा सकता है, दूसरे की तो जगह ही नहीं रहती, ऐसे में उसे कैसे बाहर निकाले। पर वह महाराज तो अपनी जगह अड़ कर खड़े हो गए। उसके खड़े रहने पीछे वाली लाइन आगे ही नही सरक रही थी तो फिर जब पीछे वाले लोगों ने उसे समझाया, वो नही माना। डराया तब भी नहीं माना, लेकिन जब धमकाया तो उसे मजबूरीवश आगे बढ़ना पड़ा। पूरे रास्ते उसका रोना-चिल्लाना जारी रहा और उसका यह रोना शिव के आगे जाकर ही खत्म हुआ। खैर, शिवखोड़ी गुफा में संकरे रास्ते में चलते हुए अंत में आप पहुंच जाते हैं एक बहुत ही बड़े हॉल में, जिसमें भगवान शिव 4 फुट ऊंचे शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। उस गुफा के हॉल में शायद पानी रिसता रहता हो, जिससे ऐसी आकृतियां बनी। गुफा में मौजूद आकृतियां हूबहू हमारे दैवीय चिन्ह और देवी देवताओं की मूर्तियां हैं।


बहुत से लोग हैं, जो ऐसी चीजों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से या यूँ बोलिए की वैज्ञानिक चश्मे से देखते हैं। बहुत अच्छी बात है धर्म को विज्ञान से जोड़ना भी चाहिए, लेकिन उन बुद्धिजीवियों से मैं एक बात पूछना चाहता हूं। चलिए, पानी रिस-रिस कर ऐसी आकृतियां बन जाती हैं (मैं स्वयं भी मानता हूं), लेकिन वह आकृतियां हमारे धर्म के प्रतीकों जैसी ही क्यों बनती हैं?? मैंने कभी किसी गुफा में जीसस या इस्लाम के किसी चिन्ह की आकृति नहीं बनी देखी और ना ही सुनी। आपने देखा या सुना हो तो आप बताओ। कहीं भी ऐसी कोई बात होती है तो वह हिंदू धर्म से ही क्यों जुड़े होती है? आखिर क्यों ऐसी गुफाओं में हमारे देवों की मूर्तियां उकेरी हुई मिलती है? जवाब की प्रतीक्षा में हूं......

               चलिए phillosphy छोड़कर यात्रा पर आते हैं। शिवखोड़ी गुफा के हॉल में मैं लगभग 20 मिनट तक बैठा रहा और रुद्राष्टक और शिव तांडव स्त्रोत्र का पाठ  किया। वहां उस रास्ते के भी दर्शन किए, जिसके बारे में मान्यता है कि यह रास्ता अमरनाथ जाता है। मुझे नहीं पता इस बात में कितनी सच्चाई है लेकिन वहां बैठे हुए पंडित जी ने बताया था कि पहले कभी कई लोग यहां से अमरनाथ गए हुए हैं, लेकिन अब किन्हीं कारणों से नहीं जा पाते। उसके बाद वापस आने का रास्ता वह संकरा रास्ता नहीं है। जिस प्रकार से वैष्णो देवी गुफा का नया रास्ता बनाया गया है, उसी तरह शिवखोड़ी गुफा में भी पहाड़ को काटकर नया रासता बनाया है। जो लोग संकरे रास्ते से नहीं आ पाते, वह दर्शन करने के लिए नए रास्ते से आते हैं और जाने का रास्ता तो केवल मात्र यही है। बाहर आकर हमने अपने मोबाइल और जूते आदि लॉकर से बाहर निकालें और पहने। बस वाले ने भी हमें 4 घंटे का समय दिया हुआ था जिसमें से सवा 3 घंटे हो चुके थे क्योंकि लाइन बहुत ही ज्यादा लंबी थी। हमने वापसी में ज्यादा समय न लगाते हुए जल्दी-जल्दी उतराई की। शिवखोड़ी की यात्रा जहां से शुरू होती है, वहां से दोबारा जीप में बैठकर रणसू बस स्टैंड पर पहुंचे और जब बस में घुसे तो देखा कि वहां हमारे दोनों के अलावा और कोई भी नहीं था।

                हम फिर से बाहर आए और उस टाइम बारिश शुरु हो चुकी थी। हल्की-हल्की बारिश में हम बस स्टैंड का नजारा देखने लगे। उस बस स्टैंड के पास एक बस भी खड़ी थी जो टूरिस्ट बस थी। उसमें गुजरात के कुछ यात्री आए हुए थे। जब हम ऊपर से नीचे आ रहे थे तो हमने सिर्फ एक-एक समोसा ही खाया था। उस बस के यात्रियों द्वारा पूड़ी और छोले बनाए जा रहे थे। जब हमने उनसे पूछा कि क्या हम भी खा सकते हैं तो उन लोगों ने बड़े प्रेम से हमें बिठाया और हमारे लिए थाली लगाई। हमने भी पूरे पेट भर कर खाया और जब हमने उन्हें दान स्वरूप कुछ पैसे दे देना चाहे तो उन्होंने बड़े प्रेम से लेने से इंकार कर दिया। जय गुजरात


           वापसी में देवांशु ओर मैं mini militia नामक गेम खेलने लगे और हैदराबाद वाले भाइयों से गपशप भी करते रहे। रात हो चुकी थी तो समय पर ध्यान नही दिया। कटरा आने के बाद पैदल ही रेलवे स्टेशन की ओर चले गए, यह पता करने कि ट्रेन का टाइम क्या है?  शायद यह मेरे लिए बहुत गलत फैसला था। बस स्टैंड से 2.5 किलोमीटर दूर पैदल स्टेशन पर जाना। जब स्टेशन जाकर पता किया तो पता चला अम्बाला जाने वाली गाड़ी 20 मिनट पहले ही जा चुकी है।और अगली ट्रेन रात के 1:15 पर है।  तब हमने अगले दिन का टाइम पूछा क्योंकि जम्मू कश्मीर में आप प्रीपेड सिम नहीं चला सकते, तो पूछताछ काउंटर पर ही पता करना पड़ा। अगले दिन की ट्रेन सुबह 9:30 बजे की थी, जो मेरे और दिवांशु दोनों के लिए बिल्कुल फिट बैठती थी। हमने फैसला किया कि आज फिर वहीं रुकते हैं और कल की ट्रेन से अपने घर जाएंगे। हम फिर से वीर भवन में आए, सामान लॉकर से निकलवाया और अब की बार हम ने कमरा ना ले कर हॉल में ही रात काटी। सुबह उठकर सिर्फ मुंह हाथ धोया और स्टेशन के लिए रवाना हो गए। मुझे ट्रेन का नाम तो याद नहीं लेकिन हम उसी ट्रेन में जो 9:30 बजे जा रही थी, अंबाला के लिए टिकट लेकर बैठ गए। उस ट्रेन ने हमें अंबाला शाम 5:00 बजे के आसपास पहुंचाया। वहां से मैं अपने लालड़ू वाले घर आ गया और देवांशु भाई मेरे मुख्य घर कैथल।
पीछे दिख रहा है रणसू का बस स्टैंड।

शिव दर्शन के पश्चात।

रास्ते मे कहीं।

कौन कौन रहना चाहेगा ऐसे घरों मे।

पहाड़ो में धरतीपुत्र।

श्रीराम मंदिर और भक्त।

गुजरातियों के यहां जीमते 2 ब्राह्मण।

दोस्तों यह थी मेरी वैष्णो देवी यात्रा जो 5 भागो में समाप्त हुई। वर्ष 2017 मेरे लिए यात्राओं का वर्ष साबित हुआ है। इस वर्ष अब तक 9 यात्राएँ हो चुकी है, ओर शायद 1 या 2 ओर भी हों।
अगले यात्रा लेख के साथ जल्द ही आपसे मुलाकात होगी। तब तक कि लिए.....
।।वन्देमातरम।।

10 comments:

  1. बहुत शानदार.....में भी कई बार जा चुका हूं शिवखोड़ी...... अब पहले जैसी बात नही रही.....अब न कल कल करते झरने बहते है और न ही आर्मी की जबबर्दस्त सुरक्षा व्यवस्था.....15 साल पहले ओर आज में अब दिन रात का अंतर आ गया है......

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    1. जी ये तो है।
      मैं वैष्णो देवी तो 6 बार जा चुका हूँ और शिवखोड़ी केवल 1 बार। मुझे तो अच्छा लगा।
      हओ सकता है जो लोग पहले जाते रगे हों उन्हें परिवर्तन लगा होगा, जैसे कि आप।

      15 साल में तो दिन रात का क्या महेश जी, सालों के ही अंतर आ गया है जनाब

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  2. वाह शानदार यात्रा विवरण,
    सब कुछ है लेख में, रोमांच, अफसोस, भय, सब
    फोटो पर पाबंदी समझ नहीं आती,
    आटे की गोली से पली मछली कौन खाता होगा.
    बस वाले की लूट,
    ट्रैन छूटना। वाह

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    1. आदर भरा धन्यवाद श्रीमान संदीप जी।

      आपके comment की प्रतीक्षा रहती है जी। आज आपने लेख सराहा, समझो दिन बन गया जी।

      फिर से प्रोतसाहन के लिए धन्यवाद

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    2. वैसे व्यक्तिगत तौर पर कहूँ तो फ़ोटो पर रोक सही ही है जी।

      अगर फ़ोटो लेने की छूट हो तो शायद हर कोई फ़ोटो में ही व्यस्त रह जाये। लाइन तो आगे सरकने से रही फिर

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  3. पिछले वर्ष मैं भी यहाँ पहली बार गया था .माता वैष्णो देवी तो 22-२३ बार जा चूका हूँ लेकिन यहाँ एक ही बार जा पाया . अच्छा लिखा है लेकिन फोटो का साइज़ बड़ा करो ...नरेश सहगल ,अम्बाला

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    1. कोटि कोटि धन्यवाद नरेश भाई साहब जी।

      अगले लेखों में आपके निर्देश का ध्यान रखूंगा जी, फ़ोटो को मीडियम की जगह लार्ज रखूंगा जी

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  4. वाह बहुत सुंदर विवरण शिवखोड़ी के बारे में। हम भी अभी एक महीने पहले शिवखोड़ी जाकर आए हैं जी। बहुत ही रोमांचक सफर रहा आपका। वैसे ट्रेन छूटने वाली बात ने यात्राा को पढ़ने वाले के लिए रोमांचक बना दिया पर आपके लिए मुश्किल का वक्त होगा वो हम भी ऐसी परिस्थिति से गुजर चुके हैं। अगली यात्राा जल्दी शुरू कीजिएगा। शुभकामनाएं आपको।

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    1. तंगी की मत पूछो अभय भाई साहब।

      सहिव खोड़ी से आकर वापिस स्टेशन जाना और फिर आना, वो भी पैदल। आप स्वयम अंदाजा लगा सकते हो जी।
      पर क्या करे जी

      चलती का नाम गाड़ी

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  5. Ati sundar .. Main 3 mahine pehle hi Shivkhodi ki yatra karke aaya.. Aapka blog pdd ke lagga jaise aap meri hi kahani suna rhe ho.. Bahut khoob likhte ho bhai.. Please continue to write more.. Har Har Mahadev

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