Tuesday 3 October 2017

जनवरी में वैष्णो देवी यात्रा...... भाग-2

नमो देव्यै महादेव्यै शिवाय सततं नमः।

 नमः प्रकृतयै भद्रायै  नियतः पर्णतः स्म ताम।।


गुफा में पिंडी रूप में विराजमान माँ दुर्गा।



नमस्कार मित्रों आशा है, आप सब ठीक ठाक होंगे। अपनी यात्रा का दूसरा भाग लेकर आप सबके समक्ष में उपस्थित हूं।पिछले भाग में मैंने बताया था कि किस प्रकार हम दोनों वैष्णो देवी यात्रा करने के लिए ट्रेन से कटरा पहुंचे और वीर भवन में कमरा लेकर थोड़ी देर विश्राम किया।

अब उसके आगे.....



वैष्णो देवी यात्रा की शुरुआत की जाए, उसके पहले मैं आपको इस स्थान के बारे में कुछ जानकारी दे देता हूं। वैष्णो देवी जम्मू कश्मीर में कटरा से 14 किलोमीटर की चढ़ाई करके ""त्रिकुटा पर्वत"" पर स्थित हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान है। यहां जाने के लिए  लगभग भारत के  हर शहर से  सुविधा है। आप बस, खुद की कार, ट्रेन व हवाई यातायात द्वारा यहां पहुंच सकते हैं।

 सबसे करीबी बस स्टैंड :- कटरा 

सबसे करीबी रेलवे स्टेशन :- कटरा

 सबसे करीबी हवाई अड्डा :- जम्मू

 सबसे करीबी हेलीपैड :- सांझी छत ( मां के भवन से 2 किमी पहले)

             यहां माता महालक्षमी, महासरस्वती और महाकाली के रूप में मां दुर्गा तीन पिंडियों के रूप में अवस्थित है। यह पिंडियाँ एक गुफा में है, जहां जाकर उन के दर्शन होते हैं। यूं तो समस्त भारत से ही हिंदू श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए वैष्णो देवी आते हैं पर उत्तर भारत के लोगों की मां वैष्णो के दरबार में गहरी आस्था है। या यूं कह लीजिए कि उनके लिए वैष्णो देवी एक सुगम तीर्थ स्थान है, जहां तक वह जल्दी और कम खर्चे में पहुंच सकते हैं। खैर, अब मैं आपको अपनी यात्रा पर लेकर चलता हूं.....


थोड़ी देर विश्राम करने के पश्चात हम उठे और चलने की तैयारी की। मैं अपने साथ यात्रा में एक छोटा बैग रखता हूं। मैंने एक गर्म स्वेटर टाइप का कपड़ा उसमें रखा और अपना नित्य क्रिया का सामान भी रखा, क्योंकि तब तक मैं दैनिक क्रियाओं से निवृत्त नहीं हुआ था। मैंने बाण गंगा में स्नान करने की सोची ओर नहाने का सारा सामान उस बैग में रख कर हम दोनों प्रस्थान कर गए। बाकी का सामान हमने वीर भवन में रहने वाले संचालक जी को पकड़ा दिया, जिन्होंने बाकायदा हमें उस सामान की पर्ची काट कर लोकर में रखवा दिया। हम यात्रा के लिए निकल पड़े। वैष्णो देवी यात्रा समस्त भारत में प्रसिद्ध बहुत है तो जाहिर सी बात है कि यहां भीड़ भी उतनी ही ज्यादा होती है। हर उम्र के श्रद्धालु माता के दर्शन की इच्छा लेकर आते हैं। लेकिन इस यात्रा पर सबसे दुखदाई चीज (जो मुझे लगती है), वह है खच्चर और घोड़े।  जब आप कटरा से यात्रा शुरू करते हैं तो यह खच्चर आपके साथ साथ ही चलते हैं और इनकी लीद बहुत बदबूदार होती है। ऐसे ही रास्ते पर पड़ी रहती है हालांकि सफाई कर्मी समय-समय पर इसकी सफाई करते रहते हैं लेकिन यहां खच्चरों की संख्या बहुत ज्यादा है तो सफाई पूर्ण रुप से नहीं हो पाती है। अपनी यात्रा शुरू करने करने के बाद हम सबसे पहले पड़ाव पर पहुंचे, वो था बाण गंगा चौंकी। यहां पर मां वैष्णो देवी की यात्रा करने वाले यात्रियों की यात्रा पर्ची बनती है और समान व व्यक्ति की चेकिंग भी होती है।  वैसे श्राइन बोर्ड द्वारा रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और कटरा में बहुत सी जगहों पर यात्रा पर्ची काउंटर की व्यवस्था है ताकि किसी एक जगह पर भीड़ इकट्ठा ना हो। हमने तो अपनी यात्रा पर्ची रेलवे स्टेशन पर ही बनवा ली थी तो हमे बाणगंगा चौकी पर सिर्फ प्रतीक्षा करनी पड़ी। लेकिन बाणगंगा चौकी पर बहुत लंबी लाइन थी क्योंकि यह यात्रा का पहला पड़ाव है जहां पर्चियां चेक होती हैं। लाइन में लगकर और पर्ची चेक करवा कर हम आगे के लिए चल पड़े।


थोड़ा आगे जाने पर T-series के मालिक गुलशन कुमार जी की याद में टी सीरीज कंपनी की तरफ से एक भंडारा लगाया जाता है जिसमें तीनों समय का खाना एक निश्चित समय तक उपलब्ध रहता है। जब हम वहां पहुंचे तो सुबह के 9:00 बजे के आसपास का समय था। उस समय वहां चाय और मट्ठी के प्रसाद वितरण हो रहा था। मैंने चाय और मट्ठी ली, लेकिन मेरे मित्र देवांशु ने कहा कि मैं तो सिर्फ चाय पीऊंगा। मैंने बोला के चल तेरी इच्छा नहीं है तो तू आगे जाकर कुछ खा लियो।

वह बोला कि मैं तो खाऊंगा ही नहीं...🙄🤔😯😯
...अरे भाई फिर कब खाएगा तू???

 मैं तो दर्शन करके ही खाऊंगा।

 ओ भाई मेरे ... 12 किलोमीटर की चढ़ाई है, रास्ते में नहाना भी है , कुछ मंदिर हैं वो भी देखने है, तो कम से कम 7 या 8 घंटे लग जायँगे।
....चाहे कुछ भी हो जाए मैं तो नहीं खाऊंगा। तूने खाना है तो खा.....

पता नहीं दोस्तों, मेरे मन में क्या आई कि मैंने वह मट्ठी  भंडारे वालों को दोबारा दे दी और आकर दिवांशु को बोला कि चल तू नही खायेगा तो मैं भी नहीं खाऊंगा। फिर हम चाय का 1 गिलास पीकर आगे के लिए चल पड़े। यहां से कुछ आधा किलो मीटर से भी कम दूरी पर बाण गंगा घाट है, जहां श्रद्धालु स्नान कर सकते हैं। हम नहाए नहीं थे तो हमने बाण गंगा घाट पर जाकर स्नान करने की सोची। कपड़े निकाल कर जैसे ही पानी में हाथ लगाया तो शरीर में झुरझुरी आन पड़ी। एक तो जनवरी का महीना और ऊपर से पहाड़ों का ठंडा पानी। बाणगंगा का जल तो जून के महीने में भी शरीर में एक बार कंपकपी उठा देता है और हम तो जनवरी में वहां थे। उस समय वहां गिने चुने सात आठ लोग होंगे जो स्नान कर रहे थे, बाकी सब पंच-स्नान की रस्म निभा रहे थे। लेकिन हमने तो स्नान करना ही था। माता का नाम लेकर जो पानी में घुसे तो बस फिर तो आधे घंटे से भी अधिक समय तक पानी मे पड़े रहे। स्नान क्रिया से निवृत होकर कपड़े आदि डालें और कुछ फोटो खींचकर फिर आगे के लिए प्रस्थान कर दिया।

मित्रों यह था मेरी वैष्णो देवी यात्रा का दूसरा भाग। आगे की यात्रा लेकर जल्दी आपके सामने हाजिर होऊंगा तब तक के लिए
 वंदे मातरम
जय श्री राम
बाण-गंगा चौंकी पर पर्ची कटवाने के लिये लाइन में लगा हुआ मैं। चित्र पर मत जाओ, ये लाइनें घूम घूम कर लगी हुईं हैं।

यात्रा की शुरूआत।

बाणगंगा में स्नान से पहले।

स्नानादि के बाद खींचा गया एक चित्र।

रास्ते मे cold-drink पान। खाना तो कुछ वैसे भी नही था।

सिर्फ फ़ोटो खीचने के लिए हंस रहा हूँ। मन ही मन तो लम्बी लाइन होने का गुस्सा है।
ओर हाँ मित्रों, अब से मैं अपनी प्रत्येक यात्रा का प्रत्येक भाग हर सप्ताह में मंगलवार को प्रेषित किया करूँगा। अगर आप सब इस छोटे से घुमक्कड़ की यात्राओं को थोड़ा बहुत भी पसन्द करते हैं, तो अवश्य पढ़ें, शेयर करें और अपना आशीर्वाद दें।

5 comments:

  1. जय माता दी,
    ठंड में झुरझुरी आयेगी ही, बल्कि झनझनाहट कहना सही है,
    अबकी बार दर्शन करवा देना। ज्यादा लिखो भाई, अच्छा लिखते हो तो जल्दी समाप्त हो जाता है।

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    1. जी हां संदीप जाट जी।

      आबाकी बार सीधा भवन में ही चल चलेंगे जी।

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  2. अक्षय जी पोस्ट को थोडा बडा करो। जिससे पढने में मजा आए। फोटो भी अपने कम लगाओ जगहो के ज्यादा,, जिससे पढने वाला अपनी यादों में खो जाए.. 👍
    जय माता दी...

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    1. जी इस बार थोड़ी बहुत जानकारी दे दी, जो मुझे थी। इसलिए वर्णन छोटा रह गया।

      आगली बार आपको यह शिकायत नही रहेगी जी।।

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