Tuesday 10 October 2017

जनवरी में वैष्णो देवी यात्रा..... भाग-3

सभी मित्रों को नमस्कार।

 अपनी वैष्णो देवी यात्रा का तीसरा भाग लेकर मैं आपके सामने हाजिर हूं। पिछले भाग में मैंने आपको बताया था कि हमने बाणगंगा के ठंडे पानी में स्नान किया, ओर चित्र आदि खींचे।

अब उससे आगे.....


               स्नान आदि करने के बाद हम यात्रा पूरी करने के लिए निकल पड़े। हम मुश्किल से 50 मीटर भी नहीं गए होंगे कि कुछ दुकानदार आवाज़ लगाकर हमे रोकने लगे...अरे भैया रुको!! अरे भैया रुको!! हमने बोला भाई! हमे कुछ नहीं लेना, लेकिन हमारे पीछे एक बंदा भागा भागा आ रहा था ओर हमे रुकने के लिए आवाज़ लगा रहा था। वह व्यक्ति केवल मात्र गमछे में था जो उसने लुंगी की तरह लपेट रखा था। वह आकर हमसे बोला कि भाई जी आप अपना बैग चेक करवाओ।  मैं बोला भाई पहले सांस ले ले और ये बता कि ऐसा क्या हो गया जो आप हमारे पीछे आरे हो भागते हुए??  तो उसने कहा कि जहां आपने अपना बैग रखा था, उसके पास मेरे कपड़े भी रखे थे और जब मैं नहाकर फारिग हुआ तो देखा कि मेरा मोबाइल मेरी जेब में नहीं है। मैने एक क्षण की देरी न करते हुए तुरन्त अपना बैग उसके हाथों में थमा दिया और कहा कि भाई जी जल्दी चेक करलो। उसने मेरे कपड़े इधर-उधर करके अच्छी तरह से बैग को चेक किया। बैग में उसका मोबाइल होता तो ही मिलता ना, जब था ही नहीं तो मिलेगा कहां से। खैर, जो हमारा फर्ज बनता था हमण्ड तो पूरा किया। उसकी चेकिंग करने के उपरांत मैंने उसे बोला कि भाई बैग में तो नहीं है, आप एक काम करो कि आप हमारी जेब भी चेक कर लो। उसने बोला कि नहीं नहीं भाई, नही नही भाई , आपने नही उठाया होगा। आप उठाते तो खुद चेक करने के लिए क्यों बोलते?? उसकी न के बावज़ूद भी हमने खुद ही उसे अपनी जेब चेक करवाई। मोबाइल उसमें भी नहीं था। तब वह व्यक्ति क्षमा मांग कर चला गया।  हम भी इस बात को भूल कर आगे को चल दिए।


              रास्ते में सब भक्त माता के जयकारे लगाते हुए आ-जा रहे थे। हम भी उनके जयकारों का जवाब जयकारों से देते हुए चले जा रहे थे। वैष्णो देवी के यात्रा मार्ग में खाने पीने की कोई भी समस्या नहीं है। पर यहां मुफ्त में भंडारे की व्यवस्था बिल्कुल भी नहीं है परंतु रास्ते में पैसे देकर आप कुछ भी, कभी भी, कहीं भी खा सकते हैं। अब चूंकि वैष्णो देवी जम्मू कश्मीर राज्य में है, तो जाहिर सी बात है कि आपको यहां हिमाचल व उत्तराखंड के मुकाबले महंगी चीज मिलेगी। मैने स्वयं अनुभव किया कि मैग्गी की प्लेट उत्तराखंड ओर  हिमाचल में आपको 30 रुपए में आसानी से उपलब्ध हो जाती है , परंतु जम्मू कश्मीर में वही प्लेट आपको 40 रुपयेी की देते हैं। कारण पूछो तो फिर वही घिसा-पिटा बहाना.... के भाई जी। पहाड़ी एरिया है, transport के खर्चे ज्यादा हो जाते हैं। आप तुलना करेंगे तो पाएंगे कि हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के कई सुदूरवर्ती इलाकों में अगर आपको मैग्गी मिल भी जायगी तो उसका रेट वहाँ 40 रुपये होगा, जो उस हिसाब से बिल्कुल जायज़ है। पर जम्मू कश्मीर में तो यातायात के साधन भी बहुत अच्छे हैं, ओर इतना दुर्गम इलाका भी नही है, फिर भी राम भरोसे सब कुछ चल ही रहा है।
रास्ते में जलपान।


खैर, हम तो अपनी यात्रा को जारी रखते हैं। बाण गंगा घाट पर स्नान के बाद हम चलते रहे। खाना पीना तो कुछ था ही नहीं, तो सिर्फ अपने सांस को सामान्य करने के लिए हम रुकते थे।  बीच में कहीं 2 मिनट बैठ गए,  नहीं तो चलते ही रहे। उसके बाद जहां हमने सबसे अधिक विश्राम किया ओर चाय पी,  वह स्थान था अर्धकुंवारी। मुझे बहुत अच्छी तरह याद है, उस समय मैं कोई 5 साल से भी कम उम्र का होऊँगा, जब मैं परिवार सहित माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए आया था। उस समय मैंने अर्धकुंवारी गुफा के दर्शन किए थे, जिसकी स्मृति आज भी मेरे मानस पटल पर जीवित है। उसके बाद से वैष्णो देवी की यह मेरी चौथी यात्रा थी, पर बीच की तीन यात्राओं में कभी भी अर्धकुंवारी के दर्शन नहीं हुए। इस यात्रा में भी नहीं होते, पर उस समय यहां एक रोमांचक घटना घटी।
अर्धकुंवारी में कैंटीन के पास।

             अर्धकुंवारी दर्शन के लिए जो पर्ची उपलब्ध रहती है, हमने वो पर्ची काउंटर पर जाकर कटवाई। पर अगर आप आज पर्ची कटवाते हो तो आपको कल दर्शन होंगे। यदि आप कल कटवाते हो तो आपको अगले दिन दर्शन होंगे। कहने का तात्पर्य है कि अर्धकुंवारी पर इतनी अधिक भीड़ रहती है कि आपका उसी दिन नंबर पड़ना  बहुत मुश्किल है। हम अपनी पर्ची कटवाकर नीचे आए। हम सोच रहे थे कि 1 कप चाय और पी ली जाए कि तभी एक व्यक्ति हमारे पास आया। वह पूछने लगा कि क्या हमने उसके साथियों को देखा है?? हमने कह दिया कि भाई नहीं, हमने तो नहीं देखा। तब अचानक से उसे उसके साथी मिल गए। उनके पास अर्धकुंवारी की जो पर्ची थी, वो उसी तारीख की ही थी, लेकिन उनकी ट्रेन उस दिन शाम की थी,तो उनका विचार गुफा के दर्शन नही करने का था। बातों बातों में मैंने भी जिक्र चलाया कि भाई, यहां तो इतनी भीड़ है कि माता के दर्शन के लिए नंबर भी नहीं लगता तो उसने कहा कि भाई! हम तो दर्शन नहीं कर पाएंगे, आप ऐसा करो मेरी पर्ची ले लो और आप लोग दर्शन कर लो। उसके पास 7 व्यक्तियों की पर्ची थी पर पर्ची 7 जनों की और हम 2 । हमने पर्ची लेकर उस व्यक्ति का बहुत-बहुत धन्यवाद किया और उसके उपरांत वह चला गया।

                तभी वहाँ हमें मुरादाबाद( U.P.) का रहने वाला एक ग्रुप मिला, जो पास में खड़ा हमारी बातें सुन रहा था। उस ग्रुप में 8 जने थे तो उनमे से एक आकर हमसे बोला कि भाई जी, हमारा भी कोई जुगाड़ हो सकता है क्या??  मैं बोला कि भाई क्यों नहीं हमारे पास 7 आदमियों की दर्शन पर्ची हैं और हम 2 हैं। आप लोग अगर चाहें, तो आ सकते हैं। उनमें से 5 लोग हमारे साथ वाली पर्ची में हमारे साथ जाने को तैयार हो गए। मैंने और दिवांशु ने अपना सामान लॉकर में जमा करवाया और दर्शन के लिए लाइन में लग गए। लगभग ढाई घंटे के बाद हम अर्धकुंवारी गुफा के मुहाने पर थे ओर मैं मन ही मन माँ का धन्यवाद कर रहा था मुझे दर्शन देने के लिए।


     अर्धकुमारी गुफा एक बहुत संकरी गुफा है, जिसमें से दर्शन करने वाले को रेंग-रेंग कर निकलना पड़ता है। यह गुफा कोई बहुत ज्यादा बड़ी तो नहीं है, लेकिन तंग बहुत है। मान्यता है कि जब श्रीधर के भंडारे से कन्या रूप धारी माँ दुर्गा अंतर्ध्यान हुई थी तो भैरव से बचने के लिए इसी गुफा में माता ने 9 महीने निवास किया था। गुफा के द्वार पर माँ ने लँगूर को प्रहरी बना कर खड़ा किया था। जब लँगूर को हरा कर भैरव गुफा में प्रवेश करने लगा, तो देवी दुर्गा ने अपने त्रिशूल के प्रहार से गुफा के पीछे के भाग को तोड़ा ओर वहां से निकल गईं।


हृदय की बीमारी वाले लोगों को इस गुफा में जाने से बचना चाहिए, क्योंकि बीच में एक जगह ऐसी आती हैं जहां गुफा बहुत सँकरी तो है ही, साथ मे थोड़ा ऊपर भी चढ़ना पड़ता है। गुफा के अंतिम भाग ( जहाँ माता ने त्रिशूल प्रहार किया था) वह बहुत तंग है, ऐसे में हृदय रोग वाले मरीजों को दिक्कत आ सकती है। खैर, हमने सही सलामत गुफा में दर्शन किए और अर्धकुमारी मंदिर से बाहर आ गए। दर्शन उपरांत हमने फटाफट locker से सामान निकाला क्योंकि हल्की हल्की बारिश पड़ने लगी थी। इस बारिश का मतलब था कि अगर हम भीग गए तो समझो बीमार हुए।
जय माँ वैष्णो। जय हिमालय।

            अब हमने भवन तक जाने के लिए हाथीमत्था वाला परम्परागत रास्ता छोड़ कर एक अलग रास्ता पकड़ा। उस रास्ते पर केवल पैदल श्रद्धालु ही जा सकते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि यह रास्ता अर्धकुंवारी के पास से बाएं हाथ की तरफ निकलता है और वहां इसकी सूचना देने के लिए बाकायदा बोर्ड भी लगा हुआ है। उस रास्ते पर चलते- चलते हमें कोई ज्यादा दिक्कत नहीं हुई क्योंकि उस रास्ते पर खच्चर और पालकियां नहीं थी। लगभग 2 घंटे के बाद हम सांझीछत पहुंच गए। यहां पर एक बार फिर सामान की चेकिंग हुई और कुछ दूर चलने के बाद वह स्थान भी आ गया, जहां से भवन के लिए प्रवेश होता है। वहां पहुंचने के बाद हमने अपना सामान, बेल्ट, पर्स व जूते आदि लॉकर में जमा किए और हाथ-मुंह धो कर दर्शन के लिए चल पड़े।

           जनवरी के महीने में भवन पर मेरी अपेक्षा से ज्यादा भीड़ थी। उस भीड़ का कारण जनवरी महीने में होने वाली 10 शीतकालीन छुट्टियां थी। लगभग 2 घंटे लाइन में लगने के बाद हमें माता के पिंडी स्वरुप के दर्शन हुए। दर्शन आदि करके हम माता के भवन से बाहर आ गए। उस समय थोड़ा-थोड़ा अंधेरा होने लगा था क्योंकि सर्दियों में सूर्य देव जल्दी ही अपने बिस्तर में दुबक जाते हैं। हमें भी बहुत भूख लगने लगी थी, ओर दर्शन भी हो गए थे। तब हमने श्राइन बोर्ड वाली कैंटीन में खाना ऑर्डर कर दिया और एक-एक गर्मागर्म डोसा और राजमा चावल का लुत्फ उठाया।

               खाना आदि खत्म करके हम भैरो बाबा की चढ़ाई के लिए चल दिए। हम बहुत थक चुके थे इसलिए भैरो बाबा की उस 3 किलोमीटर की चढ़ाई ने में हमें 1 घण्टे से भी अधिक का समय लग गया। ऊपर पहुंचकर हमने प्रसाद लिया और भैरो बाबा के दर्शन किए। और उसी समय नीचे के लिए उतरना शुरू कर दिया। उतरते समय हम बहुत ही कम जगहों पर रुके और बिल्कुल स्पीड में तेज चाल चलते हुए उतरते गए। मुझे अच्छी तरह तो याद नहीं कि मुझे कितना समय उतरने में लगा, लेकिन मैं यह कह सकता हूं कि मैं बहुत जल्दी उतर आया। नीचे कटरा पहुंचने के बाद हम ""वीर भवन"" में जो हमारा कमरा था, वहां गए और रजाई में दुबक कर लेट गए। उस समय तक मेरी सलाह थी कि हम कल सुबह की बस से शिवखोड़ी जाएंगे, लेकिन मेरा मित्र दिवांशु बार बार ना कर रहा था क्योंकि हम बहुत थक गए थे और शिवखोड़ी जाने के लिए हमें सुबह 7:00 बजे उठना था। मैं तो यात्राओं पर जल्दी उठ जाता हूं पर वह ऐसा नहीं है। इसी कारण उसके साथ मैं दुबारा किसी यात्रा पर नही गया। खैर, कुछ देर बहस के बाद यह फैसला हुआ कि कल को जो होगा, उसे कल देखेंगे। अभी तो फिलहाल सोने में भलाई है और हम रजाई के अंदर मुंह ढक कर सो गए।
चढ़ने की मुद्रा में एक चित्र। चित्र को ज़ूम करके देखिए। कुछ अलग दिखे, तो comment करके जरूर बताना जी।

एक चित्र ओर।

कौन ज्यादा सुंदर?? मैं या पीछे दिखता कटरा।

देवांशु ओर मेरा एक संयुक्त चित्र।

hahahah.... जरा साइड वाले अंकल को तो देखो।

ये था वो भाई, जिसने हमे अर्धकुंवारी के लिये दर्शन पर्ची दी थी।

यह है उस रास्ते का प्रवेश द्वार, जहां से आप खच्चरों से छुटकारा पा सकते हैं।

मेरे पीछे दिखता जगत माता का निवास।

एक फोटू अंधेरे में भी। तापमान 10 डिग्री के आसपास का तो जरूर होगा।

उतरने के समय अंधेरे में खींचा गया कटरा के सुंदर नजारे का एक चित्र।


क्रमशः

9 comments:

  1. हम यहां पांच बार जा चुके हैं जी, बहुत ही मनभावन, मनोहारी और पवित्रा स्थान है। वैसे आप अपनी ही फोटो हर ब्लाॅग में लगाते हो कुछ सुंदर दृश्यों के भी लगा तो चार चांद लग जाएं।

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  2. जी हाँ Abhyanand Sinha जी। मैं आपकी दोनो बातो से सहमत हूँ जी।
    1. जगह भी बहुत मनोहारी है, अतः मैं भी यहां 5 बार जा चुका हूं जी।
    2. इस यात्रा तक मैं tourist था , पर अब घुमक्कड़ हो गया हूँ।

    आपको मेरे चित्रो की शिकायत केवल मात्र इस यात्रा में रहने वाली है जी, आगामी यात्राओं में आपको प्राकृतिक दृश्य ज्यादा देखने को मिलेंगे जी

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  3. शानदार यात्रा वर्णन......लगातार 7 साल से माता के दर्शन का क्रम जारी है......जय माता दी

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    1. बहुत बढ़िया महेश जी।

      भग्यशाली होते हैं वो लोग जिन्हें आपकी तरह दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है जी

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  4. शानदार यात्रा लेख,
    आलसी बंधु को दुबारा यात्रा पर नहीं ले जाने का निर्णय बेहतरीन है। मैं भी उसके साथ दुबारा साथ नहीं जाता जो यात्रा के दौरान सिरदर्द कर चुका हो।
    यात्रा हम अपने शौक व खुशी के लिए करते है इसमें जो रुकावट बने, उसे हटाना बेहतर।

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    1. जी बिल्कुल भाई साहब।

      अभी मैं तुंगनाथ होकर आया तो वह बोला कि मुझे भी साथ ले चलता। मैने अगली बार के लिये मीठी गोली दे दी।

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  5. बहुत सुंदर विवरण भाई जी
    हमे भी इसी जून में सहपरिवार यह सौभाग्य प्राप्त हुआ
    अर्द्ध कुँवारी दर्शन नही कर पाए न ही भैरव बाबा के
    बच्चो की थकान को देखते हुए शायद मेरा निर्णय सही भी हो

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  6. बहुत बढ़िया जय माता दी

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  7. भाई जी बहुत अच्छा लिखा,मने तो तीनों भाग एक साथ आज ही पढ़े ह,15 साल पहले दो बार जा चूका हूँ,पर अर्ध कुवारी के दर्शन नही हुए वही भीड़ वाली समस्या,

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