श्री रेणुका जी झील व इससे सम्बंधित इतिहास
नमस्कार मित्रों,
सबसे पहले तो आप सबसे क्षमा मांगता हूं कि पिछले शुक्रवार की जगह मुझे अपना यात्रा लेख आज शुक्रवार को प्रकाशित करना पड़ा। कारण भी आपको बता देता हूं, हमारे गांव सीवन में पिछले 7 दिनों से ""राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ"" का ""प्राथमिक शिक्षा वर्ग"" लगा हुआ था, तो उसमें बौद्धिक विभाग व भोजन वितरण की जिम्मेवारी मेरे पास ही थी। वर्ग के आरम्भ से लेकर अंत तक पिछले 7 दिनों से मैं वहीं वर्ग में ही रह रहा था, इस कारण से इतना समय ही नहीं मिला कि मैं लेख का भाग प्रकाशित कर सकूं। लेकिन कहते हैं कि ""देर आए दुरुस्त आए""। इसी कहावत को सार्थक करते हुए हाजिर हूं अपनी चूड़धार यात्रा का दूसरा भाग लेकर।
पिछले भाग में आपने पढ़ा कि कसे हम अम्बाला से रेणुका जी तक पहुंचे। इस भाग में आपको हिमाचल की सबसे बड़ी झील रेणुका जी झील व इसका इतिहास पढ़ने को मिलेगा।
यह है झील के किनारे पर बना माँ रेणुका जी का मंदिर। |
बाइक को जब झील की तरफ जाने वाले मार्ग की ओर मोड़ा, तो लगभग सवा किलोमीटर चलने के पश्चात एक लोहे का गेट आ गया। इस गेट से आगे बाइक व कार आदि लेकर जाना मना है। हमने भी नियमों का पालन किया और अपनी बाइक वहीं पास में बनी एक parking में लगा दी। पार्किंग में देखा तो जो बाइकर्स का ग्रुप मुझे झरने वाले मंदिर के पास मिला था, वही ग्रुप अपने मोटरसाइकिलों से अपने बैग उतार रहा था। एक बार उनसे फिर राम-राम हुई और हम चल दिए रेणुका जी झील की तरफ। उस गेट के पास से ही आप रेणुका जी झील को देख सकते हैं। झील के चारों तरफ लगभग 3 फुट की एक पत्थर की दीवार बना रखी है, जो सुरक्षा नजरिए से तो जरूरी है ही, साथ में जब झील का जलस्तर थोड़ा बढ़ जाता है तो उस पानी को बाहर आने से भी वह दीवार रोकती है। जैसे ही गेट को पार करते हैं, वैसे ही झील के किनारे पर रेणुका जी का एक छोटा सा मंदिर बना नजर आता है। इस मन्दिर में भगवान परशुराम की माता रेणुका जी की आदम-कद की मूर्ति स्थापित है। मन्दिर के चारो तरफ लोहे की जालियाँ लगाई गई हैं। इस मंदिर में मां रेणुका की जो मूर्ति है, उसके चारों तरफ शीशे का एक ढांचा बनाया गया है। मेरे हिसाब से ऐसा करने का कारण बंदरों से मूर्ति की सुरक्षा है, क्योंकि झील के आसपास बन्दर बहुतायत पाए जाते हैं।
बन्दरो से बचाव के लिए मन्दिर के चारों ओर लोहे की जालियाँ व मूर्ति के चारो तरफ शीशे के ढांचा स्थापित किया गया है। |
मुझे पहले-पहल तो लगा कि यह तो मां रेणुका की एक प्रतीकात्मक मूर्ति है, असली मंदिर तो वही है जो झील के किनारे पर दिखाई देता है। तो दूर से ही नमस्कार करके हम उस तरफ आने लगे, जहां झील के किनारे पर आश्रम बना हुआ है। मैं झील के साथ-साथ उस दीवार से सटकर चल रहा था, तो झील के जल में देखने पर पाया की झील में बड़ी-बड़ी मछलियां काफी मात्रा में है। इस झील में मछलियों का शिकार गैरकानूनी है। ऐसी सूचना करने के लिए एक नोटिस बोर्ड भी प्रशासन की तरफ से लगाया गया है। शायद यही कारण है कि झील में इतनी बड़ी मछलियां पाई जाती हों। कुछ लोग तो मछलियों को आते की गोलियाँ भी खिला रहे थे। चलिए, जब तक हम झील के किनारे पर बने आश्रम तक पहुंचते हैं, तब तक आपको रेणुका जी झील का थोड़ा इतिहास ही बता दिया जाए:-
रेणुका जी झील को हिमाचल प्रदेश की सबसे बड़ी झील होने का गौरव प्राप्त है। यह झील मूलतः हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में स्थित है, व इसकी समुद्रतल से ऊंचाई 672 मीटर है। अगर आप इस झील के चारों तरफ चक्कर काटते हैं, तो लगभग आप सवा 3 किलोमीटर चल पाएंगे। 3214 मीटर की परिधि ही इसे हिमाचल की सबसे बड़ी झील बनाती है। रेणुका जी झील हिमाचल के लोगों के लिए गहरी आस्था का केंद्र है। इस झील का धार्मिक महत्व को थोड़ा सा वर्णन मैं आपके समक्ष करता हूं।
यह तो सबको ज्ञात ही है कि भगवान परशुराम विष्णु जी के छठे अवतार थे और उन्होंने मां रेणुका के गर्भ से जन्म लिया था। पुत्र प्राप्ति के लिए माँ रेणुका और ऋषि जमदग्नि ने इसी झील के किनारे तपस्या की थी। कालांतर में इस झील को ""राम सरोवर"" के नाम से जाना जाता था। आप सब को यह भी ज्ञात है कि ऋषि जमदग्नि के पास कामधेनु नाम की एक गाय होती थी, जो सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाली थी। सहस्त्रबाहु अर्जुन नाम का एक राजा एक बार वन में शिकार करने के लिए आया, तो काफी भूख लगी होने के कारण वह ऋषि जमदग्नि की कुटिया में भोजन की इच्छा से आया। राजाओं के साथ उनकी फौज का लाव लश्कर तो होता ही है परंतु कामधेनु के प्रताप से ऋषि जमदग्नि ने राजा और पूरी फौज को मनचाहा भोजन खिलाया। इसने राजा के मन मे सन्देह पैदा कर दिया कि वन में रहने वाले सन्यासी के पास ऐसी भांति भांति की खाद्य वस्तुएं कैसे आयी?? जब राजा सहस्त्रार्जुन ने ऋषि जमदग्नि से इसके पीछे का भेद जाना तो ऋषि जमदग्नि ने उन्हें कामधेनु की पूरी कहानी सुना दी। राजा को लगा कि वन में रहने वाले ऋषि को कामधेनु से क्या प्रयोजन, यह कामधेनु तो उसके महल की शोभा बढ़ाने के लिए उसके पास होनी चाहिए तो राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन ने ऋषि जमदग्नि से उस गाय को मांगा, लेकिन क्योंकि यह कामधेनु गाय खुद ब्रह्मा जी द्वारा ऋषि जमदग्नि को दी गई थी, और ऋषि जमदग्नि गाय से आम जनता को लाभान्वित करते थे, तो उन्होंने राधा सहस्त्रबाहु अर्जुन की मंशा जान कर उन्हें यह गाय देने से मना कर दिया।
ऋषि जमदग्नि के इस व्यवहार से राजा कुपित हो गया व सहस्त्रबाहु अर्जुन को क्रोध आ गया। उन्होंने बलपूर्वक गाय को ले जाने का प्रयास किया। जब ऋषि जमदग्नि ने इसका विरोध किया, तो उन्होंने राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन ने अपनी तलवार से ऋषि जमदग्नि पर 21 प्रहार किए। फलस्वरूप ऋषि जमदग्नि की मृत्यु हो गई। अपने पति की मृत्यु हुआ जान मां रेणुका अपने सतीत्व की रक्षा करने के लिए उस झील में कूद गई और हमेशा के लिए जल समाधि ले ली। उस समय भगवान परशुराम महेंद्र पर्वत पर तपस्या रहे थे। जब अपनी ज्ञान दृष्टि से उन्हें इस बात का पता लगा तो वह तुरंत झील के पास आए और सारी बात का कारण जानकर उन्होंने राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन का वध कर दिया। इसके पश्चात परशुराम जी ने माँ रेणुका से विनती की कि वह जल से बाहर आ जाएं, लेकिन मां रेणुका ने उनकी विनती ठुकरा दी। भगवान परशुराम जी के बार बार आग्रह करने पर मा रेणुका ने उन्हें साल में केवल एक बार मिलने आने का वचन दिया। कहते हैं कि इसके बाद ही इस झील का नाम रेणुका झील पड़ा। उसी समय इस झील की आकृति भी एक नारी के शरीर के समान हो गई।
ऊंचाई से देखने पर कुछ ऐसी दिखती है रेणुका जी झील। (फोटो मेरे द्वारा लिया गया नहीं है गूगल बाबा से साभार) |
वर्तमान में इसी याद में कार्तिक दशमी में से 1 दिन पहले एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में हिमाचल के स्थान-स्थान से श्रद्धालु इसके साक्षी बनते हैं। इस पांच दिवसीय मेले में लाखों श्रद्धालु रेणुका झील झील में स्नान करने आते हैं। इस स्थान की मान्यता और जन लोकप्रियता का अंदाज़ा आप इस बात से ही लगा सकते हैं कि खुद हिमाचल के मुख्यमंत्री व राज्यपाल इस मेले के उद्घाटन और समापन में शरीक होते हैं।
रेणुका जी एक आसान पहुंच वाला स्थान है। 2 या 3 दिन की छुट्टियों में कोई भी व्यक्ति रेणुका दी जा सकता है रेणुका जी चारों तरफ से सड़क मार्गों से जुड़ा हुआ है जहां तक जाने के लिए समय-समय पर बसों की व्यवस्था है। अम्बाला से रेणुका जी की दूरी सड़क मार्ग से 126 किलोमीटर है। यहां से जाते हुए जब आप ""काला अम्ब"" नामक स्थान से नाहन की तरफ मुड़ते हैं तो वहां से बाईं तरफ एक मोड़ है, जहां से आप त्रिलोकपुर जा सकते हो। त्रिलोकपुर में मा बाला सुंदरी का भव्य व प्राचीन मंदिर है, जो बहुत से लोगो की कुलदेवी हैं। पौंटा साहिब से रेणुका जी की दूरी 62 किलोमीटर है। दिल्ली व पंजाब आदि से आने वाले यात्रिओ को अम्बाला होकर ही आना बेहतर रहेगा। मेरी तरफ से यात्रिओ को एक मुफ्त की सलाह है कि आप गर्मियों में या मानसून के बाद यहां की यात्रा करे। हरे भरे पहाड़ मन को वो सुकून प्रदान करेंगे, जिसकी आप कल्पना मात्र ही कर सकते हैं।
मई से सितम्बर-अक्टूबर तक कुछ ऐसे होते हैं रेणुका जी के रास्ते।(फ़ोटो:- google बाबा से साभार) |
ये मनोभावन दृश्य दिखते हैं उस समय में। |
आज के इस लेख को यहीं समाप्त करता हूं और हां जाते-जाते एक बात और याद आई कि मेरे स्वर्गवासी दादाजी जिनकी भगवान परशुराम में अगाध श्रद्धा थी और वो असंख्य बार रेणुका जी जा चुके थे, वो बताते थे कि रेणुका जी झील की गहराई को आज तक कोई नहीं माप सका है। वह बताते थे कि रेणुका जी झील के किनारे एक बाबा रहता था। उस बाबा ने 12 साल तक अपने हाथों से बाण बांटा, यानी कि 12 साल तक उसने रस्सी बनाई। इसके पश्चात वह एक नाव में सवार होकर उस रस्सी को साथ में लेकर झील के बीचो-बीच गया और वहां रस्सी के एक सिरे पर उसने एक भार बाँधा और उसे पानी में गिरा दिया। प्रत्यक्षदर्शी ऐसा कहते हैं कि बाबा की बनाई हुई उस रस्सी का जो बहुत बड़ा गट्ठा था, वह पूरा का पूरा खत्म हो गया, लेकिन उसका पानी में जाना नहीं रुका। तभी अचानक से जल में से एक लहरा उठी और बाबा, रस्सी और उस किश्ती तीनों को अपने अंदर समाहित कर गई। इसके बाद ना तो कभी उस बाबा की लाश ऊपर आई और ना ही वह किश्ती.......
क्रमशः
झील के किनारे पर लिया गया स्वयम-चित्र। परिदृश्य में बड़ी मछलियां साफ देखी जा सकती हैं। |
इस यात्रा का ये मेरा पसन्दीदा चित्र है। |
झील का पानी बर्फ की तरह ठंडा था। |
मुझे ही पता है इस फोटो को खिंचवाने को लिए मुझे कितने पापड़ बेलने पड़े थे। (ज्ञात रहे तिवारी को फ़ोटो खींचना व खिंचवाना पसन्द नही है) |
यह है झील का पानी। पानी इतना साफ है कि झील के तल को देखा जा सकता है। लगता तो ऐसे है की इसकी गहराई ज्यादा नही है, लेकिन लोककथाएँ कुछ और ही बयान करती हैं। |
बहुत ही उपयोगी जानकारी...यह पोस्ट पढ़कर बहुत आसान हो जाएगा किसी के लिए भी रेणुका जी का जाना...
ReplyDeleteसमय देने हेतु धन्यवाद प्रतीक भाई साहब।
Deleteईसी हेतु को ध्यान में रखकर यह जानकारी जुटाई थी। किसी मित्र को अगर इससे फायदा हो तो समझिए मेरा प्रयास सफल हुआ।
आपके बाबा जी तो आपसे बड़े घुमक्कड़ निकले या यूं कहें कि आप अपने दादा जी के नक्शे कदम पर चल रहे हो।
ReplyDeleteइस लेख में आपने जो ऊंचाई से झील वाला फोटो लगाया है वह शानदार है इसके बारे में कुछ जानकारी दें यह फोटो आपने कहां से खींचा क्योंकि जब हम यहां गए थे तो इस फोटो को लेने का इरादा तो था लेकिन समय की कमी के चलते यह छोडना पडा। तो दुबारा कभी जाऊंगा तो इस तरह का फोटो लेने जाऊंगा इस तरह का फोटो लेने के लिए कहां जाना होगा
उत्साहवर्धन हेतु धन्यवाद गुरदेव।
Deleteदादा जी वाकई घुमक्कड़ थे। कुरुक्षेत्र में अमावस्या स्नान के लिए बिना बताए निकल जाते थे। और आस पास का कोई तीर्थ उन्होंने नही छोड़ा था।
नारी आकृति वाली फ़ोटो गूगल से ली गयी है। मेरे विचार से तो यह drone shoot है। पर लोकल लोगों को ऐसी जगह के बारे में अवश्य ज्ञात होगा जहां से ऐसी फ़ोटो ली जा सकती है।
वाह अक्षय भाई जानकारी युक्त यात्रा व्रतांत
ReplyDeleteबड़े भाई महेश जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteभाई जी यात्रा व्रतांत बहुत ही बढ़िया है आपने हमारी यादे ताज़ा कर दी अगले भाग का इन्तज़ार
ReplyDeleteआपको पसंद आया तो समझिए मेरा प्रयास सफल हुआ लोकेंद्र भाई जी।
Deleteआगला भाग भी जल्द ही प्रकाशित होगा जी
बढ़िया जानकारी .हम भी पिछले साल यहाँ गए थे . यादें ताज़ा हो गयी .तस्वीरें कुछ धुंधली सी हैं .
ReplyDeleteआपने मेरे लेख को पसंद किया, उसके लिए हृदय से धन्यवाद नरेश जी।
Deleteओर जो तस्वीर गूगल से ली है, वो धुंदली हैं भाई साहब
बहुत बढ़िया लेख, अक्षय भाई पुरानी यादें ताजा हो गई
ReplyDeleteमतलब मेरा प्रयास सफल हुआ अंकित भाई......
Deleteबहूत सुन्दर भाई माता रेणुका जी की महिमा आप मुझसे व्हाट्सएप पर भी ले सकते हो ..9806284177
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