रेणुका जी से हरिपुरधार
नमस्कार मित्रों,
उपस्थित हूँ आपके समक्ष अपनी चूड़धार यात्रा के यात्रा वृत्तांत का तीसरा लेख लेकर। पिछले भाग में आपने रेणुका जी झील से सम्बंधित इतिहास पढ़ा। मैं blogging की दुनिया मे नया-नया आया हूँ। एक से एक अनुभवी व पुराने blogger अपने अपने यात्रा वृत्तांत लिखते हैं। मैं सबको पढ़ता हूँ। अच्छा लगता है जब अपने लेख के views हम देखते हैं कि इतने हुए, इतने हुए। ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ है दोस्तों, मेरे इस चूड़धार यात्रा वृत्तांत के दूसरे भाग पर अब तक सबसे ज्यादा views आये हैं, ओर इनकी संख्या है 509। मुझे मालूम है आप मे से कई पाठक इस समय मुस्कुरा रहे होंगे, लेकिन क्या करूँ दोस्तो, मुझे तो ये 509 भी 59000 जैसे लग रहे हैं।
खैर, आप लोग यूँ ही अपना स्नेह बरकरार रखें और मैं यूँ ही लिखता रहूंगा। views जितने भी आये, बेशक कम भी हो लेकिन मुझे मालूम है जो मित्र पढ़ते हैं, वो सब अपने हितैषी हैं। दोस्तों, तालियों ओर तारीफों से किसी का पेट नही भरता, लेकिन मंच पर बोलने वाले वक्ता को और कुछ भी लिखने वाले लेखक को जब तक तारीफ़ें ओर तालियां नही मिलती, तब तक उसके हलक से रोटी नीचे नही उतरती। चलिये, मन की बातें तो बहुत हुई और इन बातों की मंशा भी आप समझ गए होंगे। अब अपने विषय पर आते हैं।
दोपहर के लगभग 2:30 के आसपास हम रेणुका जी झील के दर्शन करके फारिग हुए। अब हमारी अगली मंजिल थी हरिपुरधार। आज की रात हम हरिपुरधार में ही बिताने की सोच रहे थे, पर नाहन से रेणुका जी तक की सड़क बहुत शानदार बनी है। मुझे लगा आगे भी हमे ऐसी ही सड़क मिलेगी। तो निश्चित हुआ कि रात्रि निवास नोहराधार में होगा। नोहराधार को मंजिल मानकर बाइक पर बैठे, मारी किक ओर चल पड़े। 1.5 किलोमीटर चलाकर हम दोबारा मुख्य सड़क पर आ गए, जो हरिपुरधार की ओर जाती है। रोड़ ज्यादा चौड़ा तो नही है, लेकिन अच्छा बना है। रेणुका जी के चारो तरफ 5-5 किलोमीटर तक अच्छी खासी ट्रैफिक रहती है। कारण, रेणुका जी का एक मशहूर व रमणीक तीर्थ स्थल होना है। हमे तो और भी ज्यादा trafiic मिली, जिसका कारण रेणुका जी मे बन रहा बांध है।
रेणुका जी से निकलने के बाद ऐसे-ऐसे दृश्यों की भरमार है। एक तरफ ऊंचे पहाड़ ओर दूसरी तरफ गहरी खाइयाँ, बहुत ही सम्भल कर चलने को प्रेरित करती हैं। |
असल में, हिमाचल सरकार द्वारा रेणुका जी से कुछ किलोमीटर आगे एक बांध परियोजना चलाई जा रही है, जिसमे गिरी नदी के पानी को रोक कर 148 मीटर की ऊंचाई से गिराया जायगा, ओर फिर बिजली उत्पादन किया जायेगा। इस परियोजना से 40 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा, जिसका पूरा पूरा लाभ सिरमौर की जनता को मिलेगा। इस परियोजना का निर्माण कार्य अपने पूरे जोर पर है। जगह जगह बारूद लगा कर विस्फोट किये जा रहे थे। मलबे के ट्रक के ट्रक भरकर खदानों में गिराए जा रहे थे और धूल- मिट्टी, उसकी तो पूछो ही मत, अम्बार लगा हुआ था। अपने तिवारी जी ठहरे, bike lover, बस बिफर गए मुझ पे। एक तो मुझे पहाड़ो में ले आया..... 100cc की बाइक है हमारी और 2 लदे हुए हैं इस पर, ऊपर से ये धूल मिट्टी..... परसों ही धुलवाकर लाया था... जाकर फिर सर्विस करवानी पड़ेगी.... ये वो।
खैर, एक बात मैं आपको बताना भूल गया। रेणुका जी जल विद्युत परियोजना भी अपने आप एक महत्वपूर्ण विषय है। मैंने इस परियोजना पर विस्तृत अध्ययन किया तो पाया कि इस बांध का निर्माण रेणुका जी से कुछ किलोमीटर आगे "ददाहू" नामक स्थान पर हो रहा है। इस बांध को अगस्त 2009 में मंजूरी मिली। जाहिर है, अन्य पर्वतीय स्थानों के बांध की तरह इसे भी भारी विद्रोह का सामना करना पड़ा। इस बांध के निर्माण से 24 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल की एक झील का निर्माण होना है, जिसे सरकार द्वारा ""परशुराम सागर"" नाम देना प्रस्तावित किया गया है। इस परियोजना में 775 हेक्टेयर भूमि के वनों को पूर्णरूपेण समाप्त करना था। इस वनभूमि पर 37 छोटे-छोटे गांवो के लगभग 1300 परिवार आश्रित हैं। उन परिवारों व पंचायतों ने इस बांध का बहुत विरोध किया। सरकार ने एक बार तो इस पर रोक लगा दी, लेकिम कुछ समय बाद जनविकास का बहाना बनाकर जबरन भूमि अधिग्रहण कर लिया। तब से 2010 के बाद यह परियोजना अपने पूरे जोर-शोर पर है।
इस बांध परियोजना के बारे में एक रोचक बात और बताता हूँ, इस परियोजना पर जितना भी पैसा खर्च होगा, उसका केवल 10 प्रतिशत भाग ही हिमाचल सरकार को वहन करना होगा। आप समझ रहे होंगे कि बाकी का 90 प्रतिशत केंद्र सरकार द्वारा मिलेगा तो आप गलत हैं। 90 प्रतिशत धन दिल्ली सरकार वहन करेगी जी। ऐसा क्यों, तो इसका कारण है इस बांध की बिजली तो बेशक हिमाचल उपयोग करेगा, लेकिन इसका पानी एक नहर द्वारा राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पहुंचाया जाएगा। यही इस परियोजना के विरोध का मुख्य कारण था। मैं फिर से भटक गया, चलिये दोबारा सड़क पर आते हैं।
तो धीरे-धीरे उस धूल भरे क्षेत्र से हम बाहर निकले। गिरी नदी पर बने बड़े से पल को जैसे ही पार किया तो लगा कि अब असली हिमाचल में प्रवेश किया है। पुल के बाद सड़क कम चौड़ी हो गयी। हम सुबह से कुछ खा-पी ही रहे थे। घर से नाश्ता कर के चले थे। जमटा में चाय- नाश्ता लिया। रेणुका जी में भी पानी पिया, तो अब समय कुछ हल्का होने का था। बाइक को साइड में रोका, ओर थोड़ा ओट में होकर लघुशंका से निवृत हुए। जैसे ही बाइक के पास आये तो क्या गजब का नज़ारा दिखा। कुछ पल के लिए तो मैं स्तब्ध ही रह गया। ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों के सीने को चीर कर नागिन की तरह बलखाती सड़क जब दिखी, तो आंखे खुली ही रह गयी। विश्वास ही नही हुआ कि हम उसी सड़क से आये हैं क्या?? जल्दी से कुछ फोटो खींचे, ओर चल दिये अपने आगे के सफर पर।
यह है वो स्थान, जहां हमने बाइक रोकी थी। आप भी zoom करके सड़क पर चलते वाहनों को देख सकते हैं। अचंभित रह गया था मैं इन दृश्यों को देख कर। |
रास्ता सही बना है। रेणुका जी 672 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और हरिपुरधार 2638 मीटर। दोनों स्थानों के बीच की दूरी 65 किलोमीटर के आसपास है। अगर गणना करें, तो प्रति किलोमीटर height gain कुछ ज्यादा नही है, लेकिन 100 cc splendar बाइक पर 2 लोग, सामान के साथ, बेचारी कितना सहन करेगी। बीच बीच में उसे भी आराम देते रहे और अपने दुखते हुए पिछवाड़े को भी। ऐसा करते करते हम आ गए सँगड़ाह। सँगड़ाह, रेणुका जी व हरिपुरधार के बीच का मुख्य कस्बा है। पहाड़ो के कस्बे हमारे कस्बों जैसे नही होते। 10 घरो के समूह गांव बन जाते हैं और 50 घरों व 10 दुकानों के गांव- कस्बे। सँगड़ाह में हम रुके ओर एक ढाबे पर चले गए। जाते ही तिवारी ने 2 चाय बोल दी। पहले तो मैंने अपना मुँह धोया ओर फिर चाय का कप लेकर मैं बाहर सड़क पर ही आ गया। दुकान के बाहर एक मोची की दुकान पर कुछ लोग बैठे थे। मैं भी बैठ गया चाय पर चर्चा करने। मैंने उनसे चूड़धार जाने का जिक्र किया तो उन सबने मेरी तरफ ऐसे देखा, जैसे pk फ़िल्म में हवलदार आमिर ख़ान की तरफ देखता है। मुझे लगा कि शायद मैं कुछ गलत बोल गया। इससे पहले की मैं अपनी बातों का आत्म-मंथन करता, उनमे से एक बुजुर्ग बोले- बेटा! इस मौसम में चूड़धार पर 15-15 फ़ीट बर्फ होती है। तुम वहाँ मत जाओ, कुछ भी गलत हो सकता है। उन्होंने मुझे ओर भी बहुत सी ऐसी बाते बताई, जिनसे मुझे यात्रा के एक खतरनाक पहलू का ज्ञान हुआ।
रास्ते मे चलते-चलते लिया गया एक स्वयं-चित्र। |
सँगड़ाह में चाय के बाद अब समय हो चला था-आगे बढ़ने का। चाय पीने का एक फायदा तो होता है की आपको स्थानीय लोगो से बात करने का अवसर मिल जाता है और यात्रा के बारे में ऐसी चीजें जानने को मिलती हैं जिनके बारे में आप अनभिज्ञ होते हैं। मुझे भी पता लगा कि सँगड़ाह से दो रास्ते अलग होते हैं एक जो हरिपुरधार जाता है और दूसरा जो सीधा नौहराधार जाता है। जाने को तो हम सीधे नौहराधार भी जा सकते थे क्योंकि वही से चूड़धार की ट्रैकिंग शुरू होती है, लेकिन मेरे मन में हरिपुरधार दर्शन की इच्छा थी तो हमने बाइक हरिपुरधार की तरफ मोड़ ली। अब रास्ते में रुकावट आनी शुरू हो गई थी, जो गड्ढों के रूप में थी। यह गड्ढे पीछे बैठने वाले व्यक्ति के लिए कीलों का काम करते हैं। खैर, हम भी चलते चले जा रहे थे। जंगल के बीच में से घुमावदार रस्तों पर हमारी बाइक 20 या कभी 30 की स्पीड से आगे बढ़ रही थी। सँगड़ाह से हरिपुरधार लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर है, जब हरिपुरधार 10 किलोमीटर के आसपास रह गया, तब रास्ते में थोड़ी-थोड़ी सी बर्फ मिलनी शुरु हो गई। यह बर्फ सड़क पर तो नहीं थी, लेकिन सड़क के साइड में जो जगह होती है, वहां पर थी। जंगलों की ढलान से फिसल कर यह बर्फ नीचे गिर जाती है। सामान्यतः उस जगह पर, जहां सूरज की धूप या तो नहीं पड़ती या बिल्कुल ही ना के बराबर होती है। मैंने तिवारी को बाइक रोकने के लिए कहा लेकिन उसने नहीं रोकी। अब धीरे-धीरे बर्फ की मात्रा थोड़ी ज्यादा होने लगी थी। ऐसे ही इन नजारों को देखते हुए हम हरिपुरधार पहुंच गए। हरिपुरधार में माता भंगायनी देवी का मंदिर भी मुख्य रास्ते से थोड़ा सा हटकर है। अब हमें दर्शन तो करने ही थे लेकिन यहां फायदा यह है कि आप अपनी बाइक को सीधा मंदिर की सीढ़ियों के पास ही ले जा सकते हैं। हमने भी अपनी बाइक को वहीं दुकान वाले के पास लगाया और प्रसाद लेकर मंदिर की तरफ प्रस्थान कर गए।
सड़क के किनारों पर यूँ मिलती है बर्फ। यह बर्फ जंगल की ढलानों से फिसल कर किनारों पर गिर जाती है। मौसम ठंडा होता ही है और धूप लगती नही तो कई-कई महीनों तक यूँ ही पड़ी रहती है बर्फ |
क्रमशः.......
मनपसन्द स्थान पर लिया गया चित्र। पृष्ठभूमि में सर्पीली सड़क दिखाई दे रही है। |
प्रत्येक मोड़ पर आपको ऐसे extra space मिलेंगे, ताकि बड़ी गाड़ी वाले साइड दे सकें या ले सकें। |
मेरी पसंदीदा photos में से एक। एक पहाड़ी घर और सरसों के खेत। ऐसे में यहां सरसों का साग खाने को मिल जाये तो क्या कहने....... |
पहले मैं सोच रहा था कि हम हरिपुरधार के पास आ गए हैं। मगर बाद में पता चला कि वो तो सँगड़ाह था। पहाड़ की चोटी पर जो बस्ती सी दिखाई दे रही है, वही है सँगड़ाह। |
सँगड़ाह में जहाँ चाय पी थी, उस ढाबे के पास से लिया गया एक चित्र बचपन में पढ़ते थे कि पहाड़ो में सीढ़ीदार खेती होती है। ये होते हैं सीढ़ीदार खेत। |
सँगड़ाह के बाद रास्ता ओर भी सँकरा हो जाता है और सड़क पर गड्ढे भी आने लग जाते हैं। ऐसे में पिछवाड़े की बैंड सी बज जाती है। |
मैं दोबरा जाना चाहूंगा यहाँ। सिर्फ यह देखने कि जब ये पहाड़ हरे भरे होते हैं तब कैसे लगते हैं। |
हरिपुरधार में बना हेलीपैड। प्रतिवर्ष लगने वाले मेले में यहां हिमाचल के जनप्रतिनिधि शिरकत करते हैं, तो उनकी सुविधा के लिए यहां helipad बनाया गया है। |
चलती बाइक पर तो ऐसी ही फ़ोटो आएगी जी। |
मोड़ो पर सफेद निशान रात में driving करते हुए संकेतात्मक तोर पर लगाये गए हैं, ताकि दुर्घटना से बचाव हो सके। |
सँगड़ाह में स्थानीय व्यक्ति से हिमाचली टोपी लगाकर खींची गई फ़ोटो। |
विश्वास नही होता कई बार कि हम इन सड़कों से होकर आए हैं। |
चल न चलते-चलते पहुंचे फलक पे। |
इस यात्रा के पिछले भागो को आप निम्नलिखित links पर click करके पढ़ सकते हैं:-
बहुत खूब अक्षय भाई, अगला भाग जल्दी पोस्ट करियेगा |
ReplyDeleteधन्यवाद अंकित भाई जी।
Deleteकोशिश करूंगा कि व्यस्तताओं के बीच लेखन के लिये समय निकालूं ही
लेखन में कंजूसी नहीं चलेगी।
ReplyDeleteलम्बे लेख लिखो,
बीच बीच में आये मुद्दे पर लिखना भटकना नहीं होता, यह भी आवश्यक है।
सौ सी सी को रुला कर ही मानोगे।
लिखते रहो, बढते रहो।
जी भाई साहब।
Deleteआपकी आज्ञा सिर आंखों पर।
विषय ध्यान में आते रहते हैं तो दिल करता है की उन मित्रों को भी बताऊं जो इनसे अनभिज्ञ हैं।
यूँ तो आप मेरे बड़े भाई हैं ही, लेकिन फिर भी समय रूपी आशीर्वाद देने के लिए हार्दिक धन्यवाद जी
वाह क्या शीर्षक लिखा है जीत कर मिली हार यह है चूडधार बढिया पोस्ट
ReplyDeleteदिल की गहराई से धन्यवाद प्रतीक भाई।
Deleteमेरे दिमाग के खेत मे बहुत से शीर्षकों की उपज हुई, परन्तु मुझे सबसे अच्छी पैदावार इसी की लगी जी
शानदार लेखन अक्षय भाई
ReplyDeleteअपना कीमती समय प्रदान करने हेतु धन्यवाद महेश सर जी
DeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteजानकारी से भरी बढ़िया पोस्ट ।पोस्ट को पब्लिश से पहले फॉरमेट कर जस्टिफाई कर दिया करो ।
ReplyDeleteपिछली पोस्ट में किया था जी। इस वाली में फिर से भूल गया।
Deleteखैर, अगली बार से ध्यान में रखूंगा जी।
ओर समय देने के लिए धन्यवाद नरेश जी
लेखन शैली अच्छी है तथा यात्रा भी काफी रोमांचक हो चली है खासकर १०-१५ फुट बर्फ का ज़िक्र सुनकर| बस चित्र बड़े हो जाएं तो ब्लॉग का आनंद दुगना हो जाए | इस विषय में संदीप भाई से मार्गदर्शन लिया जा सकता है| शेष भाग की प्रतीक्षा में|
ReplyDeleteलेख आपको अच्छा लगा, समझिए मेरा प्रयास सफल हक़ बैरागी जी।
Deleteबाकी संदीप भाई जी समय समय पर मार्गदर्शन करते रहते हैं।
अगले भाग के लिए आप प्रत्येक शुक्रवार को blog address पर चक्कर लगाते रहा करिए जनाब।
फ़ोटो इससे बड़े साइज के हो तो जाते हैं लेकिन वो ब्लॉग की सुंदरता को कम कर देते हैं, वो क्या है न
अति सर्वत्र वर्जयते:
वाह........बढ़िया लिखा है चलते रहो भाई अनवरत......
ReplyDeleteवाह........बढ़िया लिखा है चलते रहो भाई अनवरत......
ReplyDeleteधन्यवाद महेश भाई।
Deleteमुझे यह तो पता था कि अपने बीच मे जो स्नेह का बंधन है, आज उसका सही एहसास हुआ मुझे।
जिन जिन मित्रों को मेरा लेख अच्छा लगा, उन्होंने अपने विचार प्रकट किए, लेकिन मेरे भाई को इतना अच्छा लगा कि आपने 3-3 बार लेख की सराहना की।😁😁😂😂
धन्यवाद श्रीमन
वाह........बढ़िया लिखा है चलते रहो भाई अनवरत......
ReplyDeleteबढ़िया 👍👍
ReplyDeleteबहुत अच्छा यात्रा वृतांत है।
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