Don’t listen to stories, tell the stories

Tuesday 24 October 2017

जनवरी में वैष्णो देवी यात्रा.... भाग-5

सभी मित्रों को नमस्कार।
आशा है आप सब के लिये दीपावली, गोवर्धन पूजा आदि पंच-पर्व बहुत शानदार गुजरे होंगे। सब त्यौहारों की खुशियां मनाने के बाद हाजिर हूं मैं, अपने साप्ताहिक यात्रा लेख का पांचवा भाग लेकर। आज के यात्रा वृतांत में आपको शिवखोड़ी के दर्शन करवाए जाएंगे।
यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय।                                                                        दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै "य" काराय नमः शिवाय।।

आप सब हर बार कहते थे कि सिर्फ मेरी ही फ़ोटो होती हैं, इसलिए बड़ी मुश्किल से लैपटॉप से में वीडियो खोजी। फिर उसका screenshot लिया, edit किया।
तोर नतीजा आपके सामने।
जारी है......

पिछले भाग में आपने पढ़ा, चाय ब्रेड का नाश्ता करने के बाद photo आदि का दौर हुआ। उसके बाद जब सभी सवारियां बस में सवार हो गई तो ड्राइवर ने भी बस अपनी मंजिल की तरफ बढ़ा दी। कुछ देर चलने के बाद रास्ते में एक बहुत बड़ी नदी आई। पहले तो मुझे उसका नाम याद नहीं था कोई उसे सतलुज बोल रहा था तो कोई व्यास, लेकिन उस यात्रा के बाद मुझे पता चला कि उस नदी का नाम था "चिनाब"। "चंद्रा" ओर "भागा" दो अलग अलग नदियों के मिलन से "चन्द्रभागा" का निर्माण होता है, जो स्थान परिवर्तन के साथ अपभ्रंश होकर "चिनाब" हो गया। बहुत ही बड़े व  विस्तृत पट के साथ वह नदी बह रही थी। वहां राफ्टिंग का बोर्ड भी लगा था लेकिन मुझे नदी में कोई भी राफ्टिंग करता हुआ नहीं दिखा। श्वेत धवल पानी के साथ वह नदी अपनी मंजिल की ओर पाकिस्तान में जा रही थी। चिनाब का इतना साफ पानी कि आप को नदी में पड़े हुए पत्थर भी साफ साफ दिखे। मेरा वहां फोटो लेने का बहुत मन था पर मैं बस में था, इस कारण मैं फोटो ले नहीं सकता था। उस नदी का विशाल पुल पार करके हमारी बस घुमावदार रास्तों से शिवखोड़ी की तरफ बढ़ रही थी। काफी देर के बाद बस ने शिवखोड़ी के बेस कैम्प "रणसू" बस स्टैंड पर ब्रेक लगाए।
रास्ते के किसी स्कूल में खेलते हुए बच्चे।

अक्षय



चिनाब पर लगा हुआ rafting का सूचना-पट्ट।

ओर ये रही चन्द्रभागा(चिनाब)

रक ओर।



बदलो से छन कर आती सूरज की किरणें।

कभी न खत्म हों ये रास्ते।


                        रणसू का बस स्टैंड बहुत ही विस्तृत भू-भाग में फैला हुआ है। जब हम बस में थे तो उस समय हल्की-हल्की बूंदाबांदी हो रही थी पर जब रणसू पहुंचे तो एकदम से बरसात बंद हो गई। शायद यह भोलेनाथ का हमारी सुगम यात्रा होने का आशीर्वाद ही था। शिवखोड़ी जाने के लिए जो पैदल रास्ता है वह मुख्य बस स्टैंड से ना होकर एक दूसरे बस स्टैंड से जाता है। वहां के लोंगो की मिलीभगत ही लगालो पर वहां जाने के लिए अलग से गाड़ियां और मिनी बस खड़ी थी। हमने भी एक मिनी बस में किराया पूछा जो ₹10 था और बैठ गए। ₹10 में वह केवल मात्र डेढ़ किलो मीटर दूर हमें लेकर गया, जहां से भी आधा किलो मीटर जाकर हम ने पर्ची कटवाई। यात्रा पर्ची कटवाने के लिए बहुत लंबी लाइन थी। यहां भी वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड की तरह एक यात्रा बोर्ड बना हुआ है, जो सभी यात्रियों को एक unique registratiom नंबर देकर यात्रा के लिए परमिट प्रदान करता है। जैसे-तैसे लाइन में लगकर हमने अपनी पर्ची कटवाई और भोले का नाम लेकर चल पड़े उन के दर्शन करने को।

          हम थोड़ा ही चले होंगे कि एक नदी पर बने पुल पर पहुंचे। वहां आटे की गोलियां बेचने वाला एक मुस्लिम बैठा था और वह आटे की गोलियां उस छोटी सी नदी के अंदर अपना जीवन व्यतीत कर रही छोटी-छोटी मछलियों के लिए थी। उनको अनदेखा करते हुए मैं और देवांशु आगे बढ़ते गए, प्राकृतिक नजारों को देखते हुए। क्योंकि उस समय मैं घुमक्कड़ नहीं tourist था और दिवांशु का भी यह पहला पर्वतीय दौरा था तो हम एक दूसरे की फोटो लेने में व्यस्त हो गए। जहां भी सांस लेने के लिए रुकते वही फोटो शुरू हो जाती।
शिवखोड़ी के रास्ते ओर मैं।

एक संयुक्त चित्र भी।

         यात्रियों की यात्रा सुगम व भक्तिमय हो, इसके लिए श्राइन बोर्ड ने बहुत अच्छे इंतजाम कर रखे हैं। जगह-जगह पर पानी पीने के लिए प्याऊ बनाए गए हैं। सभी श्रद्धालु भोले की भक्ति में रंगे हुए ही यात्रा करें, इसके लिए मधुर संगीत की व्यवस्था भी कर रखी है। यह पूरी यात्रा एक नदी के साथ-साथ चलती है और शिवखोड़ी गुफा तक पहुंचने के लिए आपको लगभग 5:30 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है।  कल-कल करती हुई नदी के साथ चलते हुए  हम अपनी यात्रा कर रहे थे। एक प्रसाद की दुकान आई और हम दोनों ने अलग-अलग प्रसाद लिया। आपको बता दूं, शिवखोड़ी गुफा के रास्ते में बंदर बहुत हैं। जब हम प्रसाद ले रहे थे तभी एक बंदर ने झपट्टा मारा लेकिन दुकान वाले ने उसे डरा कर भगा दिया। फिर उस दुकान वाले भाई ने हमें सचेत किया कि भैया! आप प्रसाद को किसी बैग में या अपने कपड़ों में डाल लो, नहीं तो यह बंदर आप को नुकसान पहुंचा सकते हैं।  क्योंकि मैं यात्रा में 1 छोटा बैग अपने साथ लिये हुए था तो मैंने तो अपना प्रसाद अपने बैग में डाल लिया और दिवांशु ने अपना अपने जैकेट के अंदर। सही समय तो याद नहीं लेकिन बिल्कुल धीरे-धीरे चलकर फोटो खींचते हुए हम चलते गए और गुफा के पास पहुंच गए। वैष्णो देवी गुफा की तरह ही शिवखोड़ी गुफा में भी मोबाइल का प्रयोग वर्जित है, लेकिन यहां आपको पर्स और बेल्ट अंदर लगा कर जाने की छूट है। हमने भी श्राइन बोर्ड के locker room में जाकर अपना मोबाइल व जूते जमा करवा दिए।


              मोबाइल वगैरा जमा करवाकर जब लाइन में लगने के लिए बाहर पहुंचे तो देखा LINE क्या यह तो क्लेश है। इतनी बड़ी लाइन वहां लगी हुई थी पर हमें दर्शन तो करना ही था तो जी हम भी लग गए लाइन में। मुझे नहीं पता कि कितना इंतजार किया लेकिन वह समय बिलकुल सामने खड़े पहाड़ जैसा था। वहां पर जो गार्ड बैठे थे, वह यात्रियों के ग्रुप बनाकर अंदर भेज रहे थे क्योंकि शिवखोड़ी गुफा के बारे में मैंने सिर्फ इतना ही सुना था कि यह गुफा बहुत खतरनाक है। काफी देर बाद जब हमारा नंबर आया तो हम भी गुफा के अंदर प्रवेश हुए। गुफा के अंदर प्रवेश द्वार पर शिव परिवार की स्थापना की गई है और एक बहुत बड़ा हॉल है जैसा अमरनाथ गुफा का है। लेकिन असली गुफा शुरू होती है कुछ आगे से। हमें यहां भी इंतजार करना पड़ा क्योंकि ग्रुप को एंट्री के बाद गुफा में एक एक बंदे को ही भेजा जाता है। गुफा शुरू में थोड़ी सी खुली है लेकिन जैसे-जैसे आगे बढ़ते रहते हैं, वैसे-वैसे यह गुफा भी संकरी होती जाती है। आधी से अधिक दूरी आपको दो चट्टानों के बीच से फंसते हुए रगड़-रगड़ कर पर करनी होती है। (यहां मैंने चित्र भी लगाए हैं, जो मेरे द्वारा नही लिए गए) ।
गुफा के प्रवेश द्वार।





अंदर कहीं का दृश्य।

जब वीडियोग्राफी बन्द नही थी।


इस तरह की है शिव की खोड़ी।

                    जब हम गुफा में अंदर जा रहे थे तो एक घटना घटी। हुआ यूं कि हमसे दो तीन व्यक्ति छोड़कर आगे एक आदमी जा रहा था। उस आदमी को पता नहीं क्या हुआ कि वह बिल्कुल जोर-जोर से रोने लगा- मुझे बाहर निकालो, मुझे नहीं जाना। लेकिन शिवखोड़ी गुफा जिसमें 1 व्यक्ति ही अंदर जा सकता है, दूसरे की तो जगह ही नहीं रहती, ऐसे में उसे कैसे बाहर निकाले। पर वह महाराज तो अपनी जगह अड़ कर खड़े हो गए। उसके खड़े रहने पीछे वाली लाइन आगे ही नही सरक रही थी तो फिर जब पीछे वाले लोगों ने उसे समझाया, वो नही माना। डराया तब भी नहीं माना, लेकिन जब धमकाया तो उसे मजबूरीवश आगे बढ़ना पड़ा। पूरे रास्ते उसका रोना-चिल्लाना जारी रहा और उसका यह रोना शिव के आगे जाकर ही खत्म हुआ। खैर, शिवखोड़ी गुफा में संकरे रास्ते में चलते हुए अंत में आप पहुंच जाते हैं एक बहुत ही बड़े हॉल में, जिसमें भगवान शिव 4 फुट ऊंचे शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। उस गुफा के हॉल में शायद पानी रिसता रहता हो, जिससे ऐसी आकृतियां बनी। गुफा में मौजूद आकृतियां हूबहू हमारे दैवीय चिन्ह और देवी देवताओं की मूर्तियां हैं।


बहुत से लोग हैं, जो ऐसी चीजों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से या यूँ बोलिए की वैज्ञानिक चश्मे से देखते हैं। बहुत अच्छी बात है धर्म को विज्ञान से जोड़ना भी चाहिए, लेकिन उन बुद्धिजीवियों से मैं एक बात पूछना चाहता हूं। चलिए, पानी रिस-रिस कर ऐसी आकृतियां बन जाती हैं (मैं स्वयं भी मानता हूं), लेकिन वह आकृतियां हमारे धर्म के प्रतीकों जैसी ही क्यों बनती हैं?? मैंने कभी किसी गुफा में जीसस या इस्लाम के किसी चिन्ह की आकृति नहीं बनी देखी और ना ही सुनी। आपने देखा या सुना हो तो आप बताओ। कहीं भी ऐसी कोई बात होती है तो वह हिंदू धर्म से ही क्यों जुड़े होती है? आखिर क्यों ऐसी गुफाओं में हमारे देवों की मूर्तियां उकेरी हुई मिलती है? जवाब की प्रतीक्षा में हूं......

               चलिए phillosphy छोड़कर यात्रा पर आते हैं। शिवखोड़ी गुफा के हॉल में मैं लगभग 20 मिनट तक बैठा रहा और रुद्राष्टक और शिव तांडव स्त्रोत्र का पाठ  किया। वहां उस रास्ते के भी दर्शन किए, जिसके बारे में मान्यता है कि यह रास्ता अमरनाथ जाता है। मुझे नहीं पता इस बात में कितनी सच्चाई है लेकिन वहां बैठे हुए पंडित जी ने बताया था कि पहले कभी कई लोग यहां से अमरनाथ गए हुए हैं, लेकिन अब किन्हीं कारणों से नहीं जा पाते। उसके बाद वापस आने का रास्ता वह संकरा रास्ता नहीं है। जिस प्रकार से वैष्णो देवी गुफा का नया रास्ता बनाया गया है, उसी तरह शिवखोड़ी गुफा में भी पहाड़ को काटकर नया रासता बनाया है। जो लोग संकरे रास्ते से नहीं आ पाते, वह दर्शन करने के लिए नए रास्ते से आते हैं और जाने का रास्ता तो केवल मात्र यही है। बाहर आकर हमने अपने मोबाइल और जूते आदि लॉकर से बाहर निकालें और पहने। बस वाले ने भी हमें 4 घंटे का समय दिया हुआ था जिसमें से सवा 3 घंटे हो चुके थे क्योंकि लाइन बहुत ही ज्यादा लंबी थी। हमने वापसी में ज्यादा समय न लगाते हुए जल्दी-जल्दी उतराई की। शिवखोड़ी की यात्रा जहां से शुरू होती है, वहां से दोबारा जीप में बैठकर रणसू बस स्टैंड पर पहुंचे और जब बस में घुसे तो देखा कि वहां हमारे दोनों के अलावा और कोई भी नहीं था।

                हम फिर से बाहर आए और उस टाइम बारिश शुरु हो चुकी थी। हल्की-हल्की बारिश में हम बस स्टैंड का नजारा देखने लगे। उस बस स्टैंड के पास एक बस भी खड़ी थी जो टूरिस्ट बस थी। उसमें गुजरात के कुछ यात्री आए हुए थे। जब हम ऊपर से नीचे आ रहे थे तो हमने सिर्फ एक-एक समोसा ही खाया था। उस बस के यात्रियों द्वारा पूड़ी और छोले बनाए जा रहे थे। जब हमने उनसे पूछा कि क्या हम भी खा सकते हैं तो उन लोगों ने बड़े प्रेम से हमें बिठाया और हमारे लिए थाली लगाई। हमने भी पूरे पेट भर कर खाया और जब हमने उन्हें दान स्वरूप कुछ पैसे दे देना चाहे तो उन्होंने बड़े प्रेम से लेने से इंकार कर दिया। जय गुजरात


           वापसी में देवांशु ओर मैं mini militia नामक गेम खेलने लगे और हैदराबाद वाले भाइयों से गपशप भी करते रहे। रात हो चुकी थी तो समय पर ध्यान नही दिया। कटरा आने के बाद पैदल ही रेलवे स्टेशन की ओर चले गए, यह पता करने कि ट्रेन का टाइम क्या है?  शायद यह मेरे लिए बहुत गलत फैसला था। बस स्टैंड से 2.5 किलोमीटर दूर पैदल स्टेशन पर जाना। जब स्टेशन जाकर पता किया तो पता चला अम्बाला जाने वाली गाड़ी 20 मिनट पहले ही जा चुकी है।और अगली ट्रेन रात के 1:15 पर है।  तब हमने अगले दिन का टाइम पूछा क्योंकि जम्मू कश्मीर में आप प्रीपेड सिम नहीं चला सकते, तो पूछताछ काउंटर पर ही पता करना पड़ा। अगले दिन की ट्रेन सुबह 9:30 बजे की थी, जो मेरे और दिवांशु दोनों के लिए बिल्कुल फिट बैठती थी। हमने फैसला किया कि आज फिर वहीं रुकते हैं और कल की ट्रेन से अपने घर जाएंगे। हम फिर से वीर भवन में आए, सामान लॉकर से निकलवाया और अब की बार हम ने कमरा ना ले कर हॉल में ही रात काटी। सुबह उठकर सिर्फ मुंह हाथ धोया और स्टेशन के लिए रवाना हो गए। मुझे ट्रेन का नाम तो याद नहीं लेकिन हम उसी ट्रेन में जो 9:30 बजे जा रही थी, अंबाला के लिए टिकट लेकर बैठ गए। उस ट्रेन ने हमें अंबाला शाम 5:00 बजे के आसपास पहुंचाया। वहां से मैं अपने लालड़ू वाले घर आ गया और देवांशु भाई मेरे मुख्य घर कैथल।
पीछे दिख रहा है रणसू का बस स्टैंड।

शिव दर्शन के पश्चात।

रास्ते मे कहीं।

कौन कौन रहना चाहेगा ऐसे घरों मे।

पहाड़ो में धरतीपुत्र।

श्रीराम मंदिर और भक्त।

गुजरातियों के यहां जीमते 2 ब्राह्मण।

दोस्तों यह थी मेरी वैष्णो देवी यात्रा जो 5 भागो में समाप्त हुई। वर्ष 2017 मेरे लिए यात्राओं का वर्ष साबित हुआ है। इस वर्ष अब तक 9 यात्राएँ हो चुकी है, ओर शायद 1 या 2 ओर भी हों।
अगले यात्रा लेख के साथ जल्द ही आपसे मुलाकात होगी। तब तक कि लिए.....
।।वन्देमातरम।।

Tuesday 17 October 2017

जनवरी में वैष्णो देवी यात्रा...... भाग-4


"अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥"


लंका पर विजय हासिल करने के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मन से कहा," हे लक्ष्मण! यह सोने की लंका मुझे किसी तरह से प्रभावित नहीं कर रही है माँ और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़ कर है।"

भारत की इस पावन भूमि को शत-शत नमन करते हुए आज के अपने इस तीसरे लेख को मैं आप सब को समर्पित कर रहा हूं। भारत एक ऐसा देश है कि आप अगर सात जन्म भी ले लें तो भी इस देश में स्थित तीर्थ स्थानों, प्राकृतिक दृश्यों से सराबोर पर्यटक स्थलों और अन्य स्थानों का भ्रमण नहीं कर सकते। एक ऐसा विशाल भूभाग है भारत जिसके कण-कण में देवी देवताओं का निवास है। प्रकृति ने इस पुण्यभूमि को अपने दोनों हाथों से आशीर्वाद देकर इसे अनुपम सौंदर्य से नवाज़ रखा है। मेरा, आपका, हम सबका सौभाग्य है कि हम सब भारत मे रहते हैं।

                                  कटरा से शिव खोड़ी गुफा तक

                       खैर, मैं अपने यात्रा वृतांत पर आता हूं। जब मैं सुबह सो कर उठा तो सबसे पहले देवांशु को उठाया। शिवखोड़ी जाने या न जाने पर बहस भी हुई, पर अंत में यह निर्णय हो ही गया कि शिवखोड़ी जाना है। अब बारी आई नहाने की। कटरा कोई बहुत अधिक ऊंचाई पर नही है। समुद्र तल से 876 मीटर पर कटरा स्थित है। जनवरी में हमारे मैदानों में ही बहुत ठंड पड़ती है, तो कटरा में अधिक ठंड होनी तो स्वभाविक ही थी। जनवरी में सुबह 7 बजे ठंडे पानी मे नहाना(वो भी पहाड़ो से आता है ठंडा पानी)। मित्रवर ने तो हाथ खड़े कर दिए। पर मैं तो दैनिक क्रियाओं से फारिग होकर बाथरूम में घुसा ओर नहाना शुरू किया। शुरू में तो पानी ने जरूर कंपकपी पैदा की शरीर मे, पर 5-6 डिब्बे डालने के शरीर अभ्यस्त हो गया।

                             कपड़े आदि बदल कर हम "वीर-भवन" के संचालक श्रीमान संगीत सिंह जी के पास पहुंचे और उनसे शिवखोड़ी जाने के बारे में बात की। उनके जानकार होंगे कोई(नाम मुझे ध्यान नही) तो उन्होंने कहा कि आप ऐसा करना, बस-स्टैंड पर उनके पास चले जाना। मैं उन्हें फोन कर देता हूं कि आप 2 लोग आ रहे हैं। संगीत जी के वह मित्र कटरा से शिवखोड़ी तक टूरिस्ट बस चलाते हैं। संगीत जी के कहे अनुसार हम उनके मित्र के पास जाने के लिए चल पड़े। कल की ही तरह हमने अपना सामान लॉकर में ही जमा करवा दिया था। सिर्फ रात की ठंड से बचने के लिए मैंने गरम स्वेटर रख ली और वीर-भवन से बाहर आ गए। एक किलोमीटर पैदल चलकर हम कटरा के बस स्टैंड पहुंचे और पूछताछ करके संगीत जी के मित्र के पास पहुंच गए। उनसे राम-राम हुई, बात की उन्होंने बोला कि मेरे पास फोन आ गया था, आपकी सीट बुक कर दी गयी है। उन्होंने हमें टिकट लेने के लिए कहा। हमने जब टिकट के पैसे पूछे तो उन्होंने ₹360 दोनों जनों के बताएं। अब जैसा कि हम भारतीयों का स्वभाव और रीति दोनों ही है, हमने उन्हें वही जवाब दिया कि भैया ठीक-ठीक लगा लो। आगे से उनका जवाब था कि आप R.S.S. से हो तो हमने पहले ही 100 रुपए कम कर दिए हैं, वरना बाकी सब से ₹220 प्रति सवारी लेते हैं। अब कहने सुनने की कोई गुंजाइश नहीं थी।  हमने टिकट ली और आग्रह करके उनसे खिड़की के पास वाली डबल सीट की माँग की। उन्होंने हमें एक विंडो सीट दे दी जोकि बस की सबसे आखिरी सीट थी। उस बस में केवल मात्र दो ही सीटें बची हुई थी जोकि संगीत जी ने हमारे लिए पहले ही बुक करवा दी थी। हमने बस चल संचालक का धन्यवाद किया और जाकर अपनी सीट पकड़ ली। लगभग आधे घंटे के इंतजार के बाद बस ने बस स्टैंड को छोड़ दिया और शिवखोड़ी की और जाते हुए रास्ते को पकड़ लिया। लगभग 15 मिनट के बाद टिकट की चेकिंग करने वाला एक लड़का आया और हम से टिकट की डिमांड करने लगा। अब हम सबसे आखरी यात्री थे तो हमारी टिकट चेक करने के बाद उसके पास कोई काम नहीं था। मैंने उसे अपने पास बैठने का आग्रह किया जिसे उसने सहर्ष मान भी लिया। वह हमारे पास बैठा और मैंने उससे बातचीत शुरू कर दी। सबसे पहले मैंने उसे पूछा कि शिवखोड़ी में देखने लायक क्या है, रास्ते में कहाँ-कहाँ बस रुकती हैं आदि। उसने हमें रास्ते की सारी जानकारी दी। मैं भी आपको सब बताऊंगा, बस आप पढ़ते रहिये।
जय महामाई वैष्णो। 5 बार तो बुला लिया आपने, छठी बार भी बुलाओगी तो इससे भी ज्यादा उत्साह से आऊंगा।

वीर-भवन से बाहर निकल कर लिया एक चित्र। पीछे भवन की ओर जाता रास्ता दिख रहा है।


लगभग 20 मिनट चलने के बाद ड्राइवर ने बस के ब्रेक लगा दिए। खिड़की से बाहर देखा तो पास में एक मंदिर था। हमने पहले ही पूछ लिया था तो अब दोबारा किसी से पूछने की आवश्यकता नहीं थी। आप सब को तो बता ही देता हूं कि बस रुकी थी जीतू बाबा के मंदिर के सामने। कटरा से शिवखोड़ी जाते हुए रास्ते में यह पहला स्थान है, जहां बस रुकती है। मंदिर का निर्माण कार्य उस समय चल रहा था। हमने अपने जूते बस में ही उतार दिए थे तो रास्ते में बजरी पर चलते हुए हमें बहुत दिक्कत आई, पर जैसे तैसे करके हम मंदिर में पहुंच गए और दर्शन किए।

इस मंदिर के बारे में लोगों की मान्यता है की जित्तो बाबा जी को वैष्णो माता का आशीर्वाद प्राप्त था। जीतो बाबा हर रोज अपने घर से मां वैष्णो देवी के दर्शन करने के लिए गुफा तक जाया करते थे। आप मे से जो लोग वैष्णो देवी गए होंगे, उन्हें पतां होगा कि जब हम कटरा से  त्रिकुटा पर्वत पर देखते हैं तो हमे माँ वैष्णो का भवन नही दिखता। ऐसा इसलिये है क्योंकि भवन पर्वत के दूसरी तरफ है। जित्तो बाबा के मंदिर से भवन साफ-साफ दिख जाता है। जित्तो मन्दिर के प्रांगण में जित्तो बाबा की एक प्रतीकात्मक मूर्ति भी है, जिसमे वे मां वैष्णो देवी दरबार की तरफ देख रहे हैं। जित्तो बाबा मंदिर परिसर में एक पानी का कुंड भी है। मान्यता है कि इसमें स्नान करने से स्त्रियों को संतान प्राप्ति होती है। हमने भी दर्शन किए और बस में आकर बैठ गए। 
माता के भवन की ओर देखते हुए बाबा जित्तो।


बाबा जित्तो ओर उनकी पुत्री बुआ कोड़ी। कोड़ी बुआ को माता वैष्णो का अवतार माना जाता हैं।
(उपरोक्त दोनो चित्र मेरे द्वारा नही लिए गए हैं)



                         कुछ देर बाद बस ने प्रस्थान किया। 10 मिनट भी नहीं चले होंगे कि फिर से ड्राइवर साहब ने ब्रेक लगा दिए।  अब रुकने की बारी थी नौ देवी मंदिर में। नौ देवी मंदिर के बारे में आपको बता देता हूं कि 9 देवी मंदिर कटरा-शिवखोरी यात्रा मार्ग पर स्थित है। शिवखोड़ी जाने वाले लगभग सभी यात्री इस मंदिर के दर्शन करते हैं। जब हम ने मंदिर में प्रवेश किया, तो कुछ सीढियां उतरने के बाद हमारा सामना लम्बी लाइन से हुआ। जो मुख्य गर्भगृह है, वह बहुत नीचे उतर कर है। इस मंदिर में माता पिंडी रूप में अवस्थित है, लेकिन इसमें छोटे-छोटे आकार की पिंडियाँ हैं, जिनके लिए गुफा में रेंगते हुए जाना पड़ता है। गुफा कोई 20 फीट के आस-पास होगी पर यह गुफा ना तो ज्यादा संकरी हैं और ना ही बहुत खुली। हमने भी लाइन में लगकर आधा घंटा इंतजार किया और पहुंच गए गुफा के दरवाजे पर। लोग धीरे-धीरे गुफा के अंदर प्रवेश कर रहे थे तो दिवांशु और मैंने भी झुक कर अपने चारों पैरों( 2 हाथ और 2 पैर) पर चलकर गुफा में प्रवेश किया और अंदर जाकर माता के दर्शन किए।

                यह मंदिर एक नदी के किनारे स्थित है। यह स्थान बहुत रमणीक प्रतीत होता है। मंदिर से बाहर आकर हमने आसपास के नजारों के साथ अपने चित्र लिए। जिस समय हम चित्र ले रहे थे, तो दोनों का इकट्ठा फोटो लेने के लिए हमने एक यात्री को बोला। हमारे फोटो खींचने के बाद उसने हमें उसका फ़ोटो लेने के लिये बोला। बस ऐसे ही जान पहचान हो गई। वह चार लोग थे जो हैदराबाद से आए थे। बातचीत हुई तो उन्होंने मुझे हैदराबाद आने का न्योता दिया और नम्बरो का आदान-प्रदान भी हुआ। इसके बाद हम सभी इकठे होकर बस में आकर बैठ गए। थोड़ा इंतज़ार के बाद बस भी अपने गंतव्य की ओर रवाना होने लगी।


9 देवी मंदिर के बाहर नदी किनारे का दृश्य।

देवांशु ओर मैं।


हम दोनों के ये चित्र उन हैदराबाद वाले ग्रुप में से किसी एक ने लिये हैं।
हैदराबाद वालो के साथ एक selfie।


बस के रवाना होने के बाद हम सब आपस मे बातें करने लगे। पहाड़ी रास्तों पर बस नागिन की तरह बल खाती हुई चक रही थी। बहुत से लोगो को यह समस्या होती है कि वे अपना खाया-पिया सारा बस में निकाल देते हैं। हम सबसे आखिरी सीट पर बैठे थे और window seat पर मैं  बैठा था, तो मैंने तो अपनी खिड़की बन्द कर रखी थी। क्या पता कब किसी को feeling आ जाए और भुगतना मुझे पड़े। लगभग 1 घण्टे बाद बस एक ढाबे पर आकर रुकी। इस ढाबे से शिवखोड़ी की दूरी 35 किलोमीटर रह जाती है। यहाँ बस में आधा घण्टा रुकना था, तो हमने भी उतरकर चाय और ब्रेड का नाश्ता किया, ओर शुरू हो गया photo session।
जय हिमालय।


मेरे पसंदीदा चित्रो में से एक।

पर्वतों की गोद मे 2 भाई।



आज मेरा पूरा मन था कि इस यात्रा को पूर्णविराम दे दूं। पर माफी चाहूंगा मित्रों, दीपावली के शुभ अवसर पर घर की साफ सफाई करनी है। जिमिदार का बेटा हूँ, तो घर पर खेती का बहुत सामान है। अतः सफाई में समय बहुत लगता है। अगले भाग में आप सब को शिवखोड़ी गुफा के दर्शन करवाएं जाएंगे। तब तक के लिये मुझे जाने की आज्ञा दें ।


आप सब को आज धनतेरस, नरकचतुर्दशी, महापर्व दीपावली, गोवर्धन पूजा और भैयादूज की कोटि कोटि शुभकामनाएं देता हुआ मैं विदा लेता हूँ। जल्द ही मुलाकात होगी।

तब तक के लिये जय हिंद।

Tuesday 10 October 2017

जनवरी में वैष्णो देवी यात्रा..... भाग-3

सभी मित्रों को नमस्कार।

 अपनी वैष्णो देवी यात्रा का तीसरा भाग लेकर मैं आपके सामने हाजिर हूं। पिछले भाग में मैंने आपको बताया था कि हमने बाणगंगा के ठंडे पानी में स्नान किया, ओर चित्र आदि खींचे।

अब उससे आगे.....


               स्नान आदि करने के बाद हम यात्रा पूरी करने के लिए निकल पड़े। हम मुश्किल से 50 मीटर भी नहीं गए होंगे कि कुछ दुकानदार आवाज़ लगाकर हमे रोकने लगे...अरे भैया रुको!! अरे भैया रुको!! हमने बोला भाई! हमे कुछ नहीं लेना, लेकिन हमारे पीछे एक बंदा भागा भागा आ रहा था ओर हमे रुकने के लिए आवाज़ लगा रहा था। वह व्यक्ति केवल मात्र गमछे में था जो उसने लुंगी की तरह लपेट रखा था। वह आकर हमसे बोला कि भाई जी आप अपना बैग चेक करवाओ।  मैं बोला भाई पहले सांस ले ले और ये बता कि ऐसा क्या हो गया जो आप हमारे पीछे आरे हो भागते हुए??  तो उसने कहा कि जहां आपने अपना बैग रखा था, उसके पास मेरे कपड़े भी रखे थे और जब मैं नहाकर फारिग हुआ तो देखा कि मेरा मोबाइल मेरी जेब में नहीं है। मैने एक क्षण की देरी न करते हुए तुरन्त अपना बैग उसके हाथों में थमा दिया और कहा कि भाई जी जल्दी चेक करलो। उसने मेरे कपड़े इधर-उधर करके अच्छी तरह से बैग को चेक किया। बैग में उसका मोबाइल होता तो ही मिलता ना, जब था ही नहीं तो मिलेगा कहां से। खैर, जो हमारा फर्ज बनता था हमण्ड तो पूरा किया। उसकी चेकिंग करने के उपरांत मैंने उसे बोला कि भाई बैग में तो नहीं है, आप एक काम करो कि आप हमारी जेब भी चेक कर लो। उसने बोला कि नहीं नहीं भाई, नही नही भाई , आपने नही उठाया होगा। आप उठाते तो खुद चेक करने के लिए क्यों बोलते?? उसकी न के बावज़ूद भी हमने खुद ही उसे अपनी जेब चेक करवाई। मोबाइल उसमें भी नहीं था। तब वह व्यक्ति क्षमा मांग कर चला गया।  हम भी इस बात को भूल कर आगे को चल दिए।


              रास्ते में सब भक्त माता के जयकारे लगाते हुए आ-जा रहे थे। हम भी उनके जयकारों का जवाब जयकारों से देते हुए चले जा रहे थे। वैष्णो देवी के यात्रा मार्ग में खाने पीने की कोई भी समस्या नहीं है। पर यहां मुफ्त में भंडारे की व्यवस्था बिल्कुल भी नहीं है परंतु रास्ते में पैसे देकर आप कुछ भी, कभी भी, कहीं भी खा सकते हैं। अब चूंकि वैष्णो देवी जम्मू कश्मीर राज्य में है, तो जाहिर सी बात है कि आपको यहां हिमाचल व उत्तराखंड के मुकाबले महंगी चीज मिलेगी। मैने स्वयं अनुभव किया कि मैग्गी की प्लेट उत्तराखंड ओर  हिमाचल में आपको 30 रुपए में आसानी से उपलब्ध हो जाती है , परंतु जम्मू कश्मीर में वही प्लेट आपको 40 रुपयेी की देते हैं। कारण पूछो तो फिर वही घिसा-पिटा बहाना.... के भाई जी। पहाड़ी एरिया है, transport के खर्चे ज्यादा हो जाते हैं। आप तुलना करेंगे तो पाएंगे कि हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के कई सुदूरवर्ती इलाकों में अगर आपको मैग्गी मिल भी जायगी तो उसका रेट वहाँ 40 रुपये होगा, जो उस हिसाब से बिल्कुल जायज़ है। पर जम्मू कश्मीर में तो यातायात के साधन भी बहुत अच्छे हैं, ओर इतना दुर्गम इलाका भी नही है, फिर भी राम भरोसे सब कुछ चल ही रहा है।
रास्ते में जलपान।


खैर, हम तो अपनी यात्रा को जारी रखते हैं। बाण गंगा घाट पर स्नान के बाद हम चलते रहे। खाना पीना तो कुछ था ही नहीं, तो सिर्फ अपने सांस को सामान्य करने के लिए हम रुकते थे।  बीच में कहीं 2 मिनट बैठ गए,  नहीं तो चलते ही रहे। उसके बाद जहां हमने सबसे अधिक विश्राम किया ओर चाय पी,  वह स्थान था अर्धकुंवारी। मुझे बहुत अच्छी तरह याद है, उस समय मैं कोई 5 साल से भी कम उम्र का होऊँगा, जब मैं परिवार सहित माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए आया था। उस समय मैंने अर्धकुंवारी गुफा के दर्शन किए थे, जिसकी स्मृति आज भी मेरे मानस पटल पर जीवित है। उसके बाद से वैष्णो देवी की यह मेरी चौथी यात्रा थी, पर बीच की तीन यात्राओं में कभी भी अर्धकुंवारी के दर्शन नहीं हुए। इस यात्रा में भी नहीं होते, पर उस समय यहां एक रोमांचक घटना घटी।
अर्धकुंवारी में कैंटीन के पास।

             अर्धकुंवारी दर्शन के लिए जो पर्ची उपलब्ध रहती है, हमने वो पर्ची काउंटर पर जाकर कटवाई। पर अगर आप आज पर्ची कटवाते हो तो आपको कल दर्शन होंगे। यदि आप कल कटवाते हो तो आपको अगले दिन दर्शन होंगे। कहने का तात्पर्य है कि अर्धकुंवारी पर इतनी अधिक भीड़ रहती है कि आपका उसी दिन नंबर पड़ना  बहुत मुश्किल है। हम अपनी पर्ची कटवाकर नीचे आए। हम सोच रहे थे कि 1 कप चाय और पी ली जाए कि तभी एक व्यक्ति हमारे पास आया। वह पूछने लगा कि क्या हमने उसके साथियों को देखा है?? हमने कह दिया कि भाई नहीं, हमने तो नहीं देखा। तब अचानक से उसे उसके साथी मिल गए। उनके पास अर्धकुंवारी की जो पर्ची थी, वो उसी तारीख की ही थी, लेकिन उनकी ट्रेन उस दिन शाम की थी,तो उनका विचार गुफा के दर्शन नही करने का था। बातों बातों में मैंने भी जिक्र चलाया कि भाई, यहां तो इतनी भीड़ है कि माता के दर्शन के लिए नंबर भी नहीं लगता तो उसने कहा कि भाई! हम तो दर्शन नहीं कर पाएंगे, आप ऐसा करो मेरी पर्ची ले लो और आप लोग दर्शन कर लो। उसके पास 7 व्यक्तियों की पर्ची थी पर पर्ची 7 जनों की और हम 2 । हमने पर्ची लेकर उस व्यक्ति का बहुत-बहुत धन्यवाद किया और उसके उपरांत वह चला गया।

                तभी वहाँ हमें मुरादाबाद( U.P.) का रहने वाला एक ग्रुप मिला, जो पास में खड़ा हमारी बातें सुन रहा था। उस ग्रुप में 8 जने थे तो उनमे से एक आकर हमसे बोला कि भाई जी, हमारा भी कोई जुगाड़ हो सकता है क्या??  मैं बोला कि भाई क्यों नहीं हमारे पास 7 आदमियों की दर्शन पर्ची हैं और हम 2 हैं। आप लोग अगर चाहें, तो आ सकते हैं। उनमें से 5 लोग हमारे साथ वाली पर्ची में हमारे साथ जाने को तैयार हो गए। मैंने और दिवांशु ने अपना सामान लॉकर में जमा करवाया और दर्शन के लिए लाइन में लग गए। लगभग ढाई घंटे के बाद हम अर्धकुंवारी गुफा के मुहाने पर थे ओर मैं मन ही मन माँ का धन्यवाद कर रहा था मुझे दर्शन देने के लिए।


     अर्धकुमारी गुफा एक बहुत संकरी गुफा है, जिसमें से दर्शन करने वाले को रेंग-रेंग कर निकलना पड़ता है। यह गुफा कोई बहुत ज्यादा बड़ी तो नहीं है, लेकिन तंग बहुत है। मान्यता है कि जब श्रीधर के भंडारे से कन्या रूप धारी माँ दुर्गा अंतर्ध्यान हुई थी तो भैरव से बचने के लिए इसी गुफा में माता ने 9 महीने निवास किया था। गुफा के द्वार पर माँ ने लँगूर को प्रहरी बना कर खड़ा किया था। जब लँगूर को हरा कर भैरव गुफा में प्रवेश करने लगा, तो देवी दुर्गा ने अपने त्रिशूल के प्रहार से गुफा के पीछे के भाग को तोड़ा ओर वहां से निकल गईं।


हृदय की बीमारी वाले लोगों को इस गुफा में जाने से बचना चाहिए, क्योंकि बीच में एक जगह ऐसी आती हैं जहां गुफा बहुत सँकरी तो है ही, साथ मे थोड़ा ऊपर भी चढ़ना पड़ता है। गुफा के अंतिम भाग ( जहाँ माता ने त्रिशूल प्रहार किया था) वह बहुत तंग है, ऐसे में हृदय रोग वाले मरीजों को दिक्कत आ सकती है। खैर, हमने सही सलामत गुफा में दर्शन किए और अर्धकुमारी मंदिर से बाहर आ गए। दर्शन उपरांत हमने फटाफट locker से सामान निकाला क्योंकि हल्की हल्की बारिश पड़ने लगी थी। इस बारिश का मतलब था कि अगर हम भीग गए तो समझो बीमार हुए।
जय माँ वैष्णो। जय हिमालय।

            अब हमने भवन तक जाने के लिए हाथीमत्था वाला परम्परागत रास्ता छोड़ कर एक अलग रास्ता पकड़ा। उस रास्ते पर केवल पैदल श्रद्धालु ही जा सकते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि यह रास्ता अर्धकुंवारी के पास से बाएं हाथ की तरफ निकलता है और वहां इसकी सूचना देने के लिए बाकायदा बोर्ड भी लगा हुआ है। उस रास्ते पर चलते- चलते हमें कोई ज्यादा दिक्कत नहीं हुई क्योंकि उस रास्ते पर खच्चर और पालकियां नहीं थी। लगभग 2 घंटे के बाद हम सांझीछत पहुंच गए। यहां पर एक बार फिर सामान की चेकिंग हुई और कुछ दूर चलने के बाद वह स्थान भी आ गया, जहां से भवन के लिए प्रवेश होता है। वहां पहुंचने के बाद हमने अपना सामान, बेल्ट, पर्स व जूते आदि लॉकर में जमा किए और हाथ-मुंह धो कर दर्शन के लिए चल पड़े।

           जनवरी के महीने में भवन पर मेरी अपेक्षा से ज्यादा भीड़ थी। उस भीड़ का कारण जनवरी महीने में होने वाली 10 शीतकालीन छुट्टियां थी। लगभग 2 घंटे लाइन में लगने के बाद हमें माता के पिंडी स्वरुप के दर्शन हुए। दर्शन आदि करके हम माता के भवन से बाहर आ गए। उस समय थोड़ा-थोड़ा अंधेरा होने लगा था क्योंकि सर्दियों में सूर्य देव जल्दी ही अपने बिस्तर में दुबक जाते हैं। हमें भी बहुत भूख लगने लगी थी, ओर दर्शन भी हो गए थे। तब हमने श्राइन बोर्ड वाली कैंटीन में खाना ऑर्डर कर दिया और एक-एक गर्मागर्म डोसा और राजमा चावल का लुत्फ उठाया।

               खाना आदि खत्म करके हम भैरो बाबा की चढ़ाई के लिए चल दिए। हम बहुत थक चुके थे इसलिए भैरो बाबा की उस 3 किलोमीटर की चढ़ाई ने में हमें 1 घण्टे से भी अधिक का समय लग गया। ऊपर पहुंचकर हमने प्रसाद लिया और भैरो बाबा के दर्शन किए। और उसी समय नीचे के लिए उतरना शुरू कर दिया। उतरते समय हम बहुत ही कम जगहों पर रुके और बिल्कुल स्पीड में तेज चाल चलते हुए उतरते गए। मुझे अच्छी तरह तो याद नहीं कि मुझे कितना समय उतरने में लगा, लेकिन मैं यह कह सकता हूं कि मैं बहुत जल्दी उतर आया। नीचे कटरा पहुंचने के बाद हम ""वीर भवन"" में जो हमारा कमरा था, वहां गए और रजाई में दुबक कर लेट गए। उस समय तक मेरी सलाह थी कि हम कल सुबह की बस से शिवखोड़ी जाएंगे, लेकिन मेरा मित्र दिवांशु बार बार ना कर रहा था क्योंकि हम बहुत थक गए थे और शिवखोड़ी जाने के लिए हमें सुबह 7:00 बजे उठना था। मैं तो यात्राओं पर जल्दी उठ जाता हूं पर वह ऐसा नहीं है। इसी कारण उसके साथ मैं दुबारा किसी यात्रा पर नही गया। खैर, कुछ देर बहस के बाद यह फैसला हुआ कि कल को जो होगा, उसे कल देखेंगे। अभी तो फिलहाल सोने में भलाई है और हम रजाई के अंदर मुंह ढक कर सो गए।
चढ़ने की मुद्रा में एक चित्र। चित्र को ज़ूम करके देखिए। कुछ अलग दिखे, तो comment करके जरूर बताना जी।

एक चित्र ओर।

कौन ज्यादा सुंदर?? मैं या पीछे दिखता कटरा।

देवांशु ओर मेरा एक संयुक्त चित्र।

hahahah.... जरा साइड वाले अंकल को तो देखो।

ये था वो भाई, जिसने हमे अर्धकुंवारी के लिये दर्शन पर्ची दी थी।

यह है उस रास्ते का प्रवेश द्वार, जहां से आप खच्चरों से छुटकारा पा सकते हैं।

मेरे पीछे दिखता जगत माता का निवास।

एक फोटू अंधेरे में भी। तापमान 10 डिग्री के आसपास का तो जरूर होगा।

उतरने के समय अंधेरे में खींचा गया कटरा के सुंदर नजारे का एक चित्र।


क्रमशः

Tuesday 3 October 2017

जनवरी में वैष्णो देवी यात्रा...... भाग-2

नमो देव्यै महादेव्यै शिवाय सततं नमः।

 नमः प्रकृतयै भद्रायै  नियतः पर्णतः स्म ताम।।


गुफा में पिंडी रूप में विराजमान माँ दुर्गा।



नमस्कार मित्रों आशा है, आप सब ठीक ठाक होंगे। अपनी यात्रा का दूसरा भाग लेकर आप सबके समक्ष में उपस्थित हूं।पिछले भाग में मैंने बताया था कि किस प्रकार हम दोनों वैष्णो देवी यात्रा करने के लिए ट्रेन से कटरा पहुंचे और वीर भवन में कमरा लेकर थोड़ी देर विश्राम किया।

अब उसके आगे.....



वैष्णो देवी यात्रा की शुरुआत की जाए, उसके पहले मैं आपको इस स्थान के बारे में कुछ जानकारी दे देता हूं। वैष्णो देवी जम्मू कश्मीर में कटरा से 14 किलोमीटर की चढ़ाई करके ""त्रिकुटा पर्वत"" पर स्थित हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान है। यहां जाने के लिए  लगभग भारत के  हर शहर से  सुविधा है। आप बस, खुद की कार, ट्रेन व हवाई यातायात द्वारा यहां पहुंच सकते हैं।

 सबसे करीबी बस स्टैंड :- कटरा 

सबसे करीबी रेलवे स्टेशन :- कटरा

 सबसे करीबी हवाई अड्डा :- जम्मू

 सबसे करीबी हेलीपैड :- सांझी छत ( मां के भवन से 2 किमी पहले)

             यहां माता महालक्षमी, महासरस्वती और महाकाली के रूप में मां दुर्गा तीन पिंडियों के रूप में अवस्थित है। यह पिंडियाँ एक गुफा में है, जहां जाकर उन के दर्शन होते हैं। यूं तो समस्त भारत से ही हिंदू श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए वैष्णो देवी आते हैं पर उत्तर भारत के लोगों की मां वैष्णो के दरबार में गहरी आस्था है। या यूं कह लीजिए कि उनके लिए वैष्णो देवी एक सुगम तीर्थ स्थान है, जहां तक वह जल्दी और कम खर्चे में पहुंच सकते हैं। खैर, अब मैं आपको अपनी यात्रा पर लेकर चलता हूं.....


थोड़ी देर विश्राम करने के पश्चात हम उठे और चलने की तैयारी की। मैं अपने साथ यात्रा में एक छोटा बैग रखता हूं। मैंने एक गर्म स्वेटर टाइप का कपड़ा उसमें रखा और अपना नित्य क्रिया का सामान भी रखा, क्योंकि तब तक मैं दैनिक क्रियाओं से निवृत्त नहीं हुआ था। मैंने बाण गंगा में स्नान करने की सोची ओर नहाने का सारा सामान उस बैग में रख कर हम दोनों प्रस्थान कर गए। बाकी का सामान हमने वीर भवन में रहने वाले संचालक जी को पकड़ा दिया, जिन्होंने बाकायदा हमें उस सामान की पर्ची काट कर लोकर में रखवा दिया। हम यात्रा के लिए निकल पड़े। वैष्णो देवी यात्रा समस्त भारत में प्रसिद्ध बहुत है तो जाहिर सी बात है कि यहां भीड़ भी उतनी ही ज्यादा होती है। हर उम्र के श्रद्धालु माता के दर्शन की इच्छा लेकर आते हैं। लेकिन इस यात्रा पर सबसे दुखदाई चीज (जो मुझे लगती है), वह है खच्चर और घोड़े।  जब आप कटरा से यात्रा शुरू करते हैं तो यह खच्चर आपके साथ साथ ही चलते हैं और इनकी लीद बहुत बदबूदार होती है। ऐसे ही रास्ते पर पड़ी रहती है हालांकि सफाई कर्मी समय-समय पर इसकी सफाई करते रहते हैं लेकिन यहां खच्चरों की संख्या बहुत ज्यादा है तो सफाई पूर्ण रुप से नहीं हो पाती है। अपनी यात्रा शुरू करने करने के बाद हम सबसे पहले पड़ाव पर पहुंचे, वो था बाण गंगा चौंकी। यहां पर मां वैष्णो देवी की यात्रा करने वाले यात्रियों की यात्रा पर्ची बनती है और समान व व्यक्ति की चेकिंग भी होती है।  वैसे श्राइन बोर्ड द्वारा रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और कटरा में बहुत सी जगहों पर यात्रा पर्ची काउंटर की व्यवस्था है ताकि किसी एक जगह पर भीड़ इकट्ठा ना हो। हमने तो अपनी यात्रा पर्ची रेलवे स्टेशन पर ही बनवा ली थी तो हमे बाणगंगा चौकी पर सिर्फ प्रतीक्षा करनी पड़ी। लेकिन बाणगंगा चौकी पर बहुत लंबी लाइन थी क्योंकि यह यात्रा का पहला पड़ाव है जहां पर्चियां चेक होती हैं। लाइन में लगकर और पर्ची चेक करवा कर हम आगे के लिए चल पड़े।


थोड़ा आगे जाने पर T-series के मालिक गुलशन कुमार जी की याद में टी सीरीज कंपनी की तरफ से एक भंडारा लगाया जाता है जिसमें तीनों समय का खाना एक निश्चित समय तक उपलब्ध रहता है। जब हम वहां पहुंचे तो सुबह के 9:00 बजे के आसपास का समय था। उस समय वहां चाय और मट्ठी के प्रसाद वितरण हो रहा था। मैंने चाय और मट्ठी ली, लेकिन मेरे मित्र देवांशु ने कहा कि मैं तो सिर्फ चाय पीऊंगा। मैंने बोला के चल तेरी इच्छा नहीं है तो तू आगे जाकर कुछ खा लियो।

वह बोला कि मैं तो खाऊंगा ही नहीं...🙄🤔😯😯
...अरे भाई फिर कब खाएगा तू???

 मैं तो दर्शन करके ही खाऊंगा।

 ओ भाई मेरे ... 12 किलोमीटर की चढ़ाई है, रास्ते में नहाना भी है , कुछ मंदिर हैं वो भी देखने है, तो कम से कम 7 या 8 घंटे लग जायँगे।
....चाहे कुछ भी हो जाए मैं तो नहीं खाऊंगा। तूने खाना है तो खा.....

पता नहीं दोस्तों, मेरे मन में क्या आई कि मैंने वह मट्ठी  भंडारे वालों को दोबारा दे दी और आकर दिवांशु को बोला कि चल तू नही खायेगा तो मैं भी नहीं खाऊंगा। फिर हम चाय का 1 गिलास पीकर आगे के लिए चल पड़े। यहां से कुछ आधा किलो मीटर से भी कम दूरी पर बाण गंगा घाट है, जहां श्रद्धालु स्नान कर सकते हैं। हम नहाए नहीं थे तो हमने बाण गंगा घाट पर जाकर स्नान करने की सोची। कपड़े निकाल कर जैसे ही पानी में हाथ लगाया तो शरीर में झुरझुरी आन पड़ी। एक तो जनवरी का महीना और ऊपर से पहाड़ों का ठंडा पानी। बाणगंगा का जल तो जून के महीने में भी शरीर में एक बार कंपकपी उठा देता है और हम तो जनवरी में वहां थे। उस समय वहां गिने चुने सात आठ लोग होंगे जो स्नान कर रहे थे, बाकी सब पंच-स्नान की रस्म निभा रहे थे। लेकिन हमने तो स्नान करना ही था। माता का नाम लेकर जो पानी में घुसे तो बस फिर तो आधे घंटे से भी अधिक समय तक पानी मे पड़े रहे। स्नान क्रिया से निवृत होकर कपड़े आदि डालें और कुछ फोटो खींचकर फिर आगे के लिए प्रस्थान कर दिया।

मित्रों यह था मेरी वैष्णो देवी यात्रा का दूसरा भाग। आगे की यात्रा लेकर जल्दी आपके सामने हाजिर होऊंगा तब तक के लिए
 वंदे मातरम
जय श्री राम
बाण-गंगा चौंकी पर पर्ची कटवाने के लिये लाइन में लगा हुआ मैं। चित्र पर मत जाओ, ये लाइनें घूम घूम कर लगी हुईं हैं।

यात्रा की शुरूआत।

बाणगंगा में स्नान से पहले।

स्नानादि के बाद खींचा गया एक चित्र।

रास्ते मे cold-drink पान। खाना तो कुछ वैसे भी नही था।

सिर्फ फ़ोटो खीचने के लिए हंस रहा हूँ। मन ही मन तो लम्बी लाइन होने का गुस्सा है।
ओर हाँ मित्रों, अब से मैं अपनी प्रत्येक यात्रा का प्रत्येक भाग हर सप्ताह में मंगलवार को प्रेषित किया करूँगा। अगर आप सब इस छोटे से घुमक्कड़ की यात्राओं को थोड़ा बहुत भी पसन्द करते हैं, तो अवश्य पढ़ें, शेयर करें और अपना आशीर्वाद दें।