Don’t listen to stories, tell the stories

Friday 29 December 2017

जीत कर भी मिली हार.....यही है चूड़धार।......भाग-1

लालड़ू से रेणुका जी

          दिन रविवार, तारीख 5 फरवरी 2017, समय सुबह के लगभग 8:00 बजे।
यही वह पल था, जब चूड़धार यात्रा का आरंभ किया गया। सही मायने में देखें तो 4 फरवरी से ही यह यात्रा शुरू हो चुकी थी, परंतु 4 फरवरी को मैं अपने निवास स्थान कैथल से अंबाला के पास लालड़ू में स्थित अपने दूसरे घर में आया। लालड़ू से ही मेरा दूसरा मित्र, जो इस यात्रा में मेरे साथ जाने वाला था,मेरे साथ आएगा।
यूँ तो जनवरी में कई गयी वैष्णो देवी यात्र  के बाद ही इस यात्रा को शुरू करना था पर उस यात्रा में मेरा साथी दिवांशु चूड़धार जाने से साफ-साफ मना कर गया। तब से ही मेरे मन में चूड़धार यात्रा की इच्छा घर की हुई थी और यह पूर्ण हुई फरवरी में। इस यात्रा में जो मेरा साथी था, वो था राकेश तिवारी।  वह हमारे घर में हमारा किराएदार ही है। किराएदार कह लो या घर का सदस्य, लेकिन है अपना ही। वह इस यात्रा में मेरे साथ जाने को राजी हो गया, जिसमें की हम दोनों उसकी बाइक Splendor पर जाने वाले थे।
ये हैं शिवालिक की घाटियाँ, देखते ही रहो बस।

              नियत तिथि पर यात्रा शुरू हुई। हम भगवान शिव के मन्दिर के बाहर से ही उनसे सफल यात्रा की कामना करके लालडू से निकल पड़े। लालडू से निकल कर सबसे पहले अंबाला जाना हुआ। जब आप चंडीगढ़ से अंबाला की तरफ आते हो तो अंबाला से पहले एक जगह आती है बलदेव नगर। बलदेव नगर से जहां एक रास्ता अंबाला छावनी(Ambala Cantt) चला जाता है, वही दूसरा रास्ता अंबाला शहर(Ambala City)। बलदेव नगर से भी थोड़ा सा पहले एक सड़क चली जाती है नारायणगढ़ की तरफ। हमें भी इसी रास्ते पर जाना था, तो बलदेव नगर का पुल ना चढ़ कर नीचे से ही नारायणगढ़ जाने वाली सड़क पर हमने अपनी मोटर साइकिल का हैंडल मोड़ दिया। अंबाला से नारायणगढ़ 42 किलोमीटर दूर है। रास्ता बिल्कुल साफ और बढ़िया बना है। लगभग 1 घंटे में हम नारायणगढ़ पहुंच गए। यहां एक और बात मैं आपको बताना भूल गया कि रास्ते मे कहीं मैंने अपना हेलमेट उतार दिया था और जब हेलमेट वापिस पहना तो ध्यान आया कि मेरा मफलर हवा में कहीं उड़ गया है। खैर, अब कहां उसे ढूंढने वापिस जाते तो सोचा आगे से ले लेंगे।


                    नारायणगढ़ जाकर आगे हम नाहन जाने वाले रोड पर चढ़ गए। नारायणगढ़, चंडीगढ़, पठानकोट और आनंदपुर साहिब, यह चारों शहर लगभग एक जैसे हैं। अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि ये सभी तो एक दूसरे से बहुत दूर हैं, फिर एक जैसे कैसे? वह ऐसे कि इन चारों शहरों को हिमालय का प्रवेश द्वार कहा जाता है। चंडीगढ़ से आप सोलन आदि होते हुए शिमला जा सकते हैं। पठानकोट से आप जम्मू-कश्मीर में प्रवेश कर सकते हैं। आनंदपुर साहिब से आप मनाली जा सकते हैं। वहीं नारायणगढ़ से आप नाहन के रास्ते हिमाचल में प्रवेश कर सकते हैं। नारायणगढ़ से नाहन का रास्ता छोटी छोटी पहाड़ियों के बीच से होकर जाता है, जिन्हें शिवालिक की पहाड़ियां कहा जाता है। आगे जाकर यही पहाड़ियाँ पहाड़ बन जाती हैं।

        रास्ता अच्छा बना है, पर सड़क पर कहीं-कहीं कुछ गड्ढे आ जाते हैं। रास्ता Double Lane है, तो दुर्घटनाओं की कोई ज्यादा संभावना नहीं रहती। एक तरफ पहाड़ व दूसरी तरफ घाटियां, बहुत ही मनोरम दृश्य प्रस्तुत करते हैं। रास्तों पर चलते हुए रुकने का दिल नहीं करता। इन्हीं नजारों को देखते हुए हम नाहन पहुंच गए। नाहन शहर हिमाचल प्रदेश का एक जाना पहचाना शहर है। भारत की स्वतंत्रता से पहले नाहन सिरमौर रियासत के अंतर्गत आता था और सिरमौर की राजधानी नाहन ही थी, तो नाहन का उस काल खंड में भरपूर विकास हुआ। नाहन में भी देखने लायक बहुत से स्थान हैं। जगन्नाथ मंदिर, बाबा बनवारी दास मंदिर(इन्हीं के कारण ही शहर बसा, उसकी कहानी फिर कभी), रॉयल पैलेस आदि।और हां, गढ़वाली राजाओं से मतभेद के चलते दसवें गुरु पातशाह श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज भी नाहन के राजा मेधनी प्रकाश से मित्रता के चलते नाहन आए थे। नाहन शहर की सुंदरता उन्हें इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने यहां 8 महीने तक निवास किया।
नाहन से रेणुका जी के बीच रास्ते मे एक मंदिर।


         जब हम नाहन की तरफ जा रहे थे, तो हमसे आगे एक बस रेणुका जी जा रही थी। हमने सोचा कि हम इस बस के पीछे पीछे ही चलेंगे। जब हम जा रहे थे, तो वह बस नाहन शहर में चली गई। हमने राह में किसी से पूछा कि यहां से रेणुका जी कितनी दूर है? तो उस बन्दे ने बताया कि आप यहां क्यों आ गए? यह रास्ता तो बस स्टैंड जाता है। रेणुका जी जाने के लिए शहर के बाहर से ही एक रास्ता है। हमें दोबारा फिर नाहन के बाहर आना पड़ा और हम रेणुका जी की तरफ चल पड़े। चलते हुए लगभग आधा घंटा हो गया था और समय भी 11 बजे के आसपास हो गया था। तो हम नाहन से आगे एक जगह जमटा में एक होटल के पास खाना खाने के लिए रुके। वहां एक-एक तंदूरी परांठा और चाय का आर्डर दे कर हम फोटो खींचने में लग गए। मेरे साथ जो साथी था राकेश तिवारी(जिसे मैं प्यार से तिवारी ही बोलता हूं),  वह बंदा कुछ अजीब किस्म का इंसान है। उसे ना तो फोटो खींचना पसंद है और ना ही फोटो खिंचवाना। जब मैं उसे बोलता कि खड़ा हो जा, मैं तेरी फोटो लेता हूं, तो वह कहता के भाई, मैं फोटो नहीं खिंचवाता और कई बार मेरे फोटो लेने के आग्रह पर भी ना कर देता, लेकिन फिर भी मैं उससे फोटो खिंचवा ही लेता। जमटा में नाश्ता करने के बाद हम फिर आगे के लिए चल पड़े। जमटा के बाद जो नजारा शुरू हुआ, वह अविस्मरणीय था।  सड़क के एक तरफ पहाड़ और दूसरी तरफ घाटी बहुत ही मनोरम दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे। रास्ते में 3 बाइकर्स का एक ग्रुप भी आया, जो सब के सब 3 रॉयल एनफील्ड पर सवार थे। जमटा से आगे जाने के बाद एक पुल आता है और उसके पीछे थोड़ा सा ऊंचाई पर एक मंदिर भी है। गर्मियों में यहां पर काफी ऊंचाई से झरना नीचे गिरता है, इस कारण यह photoshoot point है। लेकिन, हम फरवरी में गए थे तो वह झरना सूखा हुआ था। वहां पर उन bullet वालों से बात हुई, तो पता चला कि वह भी चूड़धार ही जा रहे थे।
जमटा में तंदूरी परांठे ओर चाय का नाश्ता।


       ऐसे ही पहाड़ों की इस अप्रतिम सुंदरता के दर्शन करते हुए हम रेणुका जी पहुंच गए। रेणुका जी एक शहर ना होकर कुछ लोगों की एक बस्ती है। यह जगह भगवान परशुराम, उनके पिता जमदग्नि और माता रेणुका जी से संबंधित है।  रेणुका जी झील मुख्य रास्ते से 1.5 किलोमीटर हटकर है। एक बार तो हमारा दिल हुआ कि हम पहले चूड़धार जा आते हैं  और वापसी में रेणुका जी झील के दर्शन करेंगे। लेकिन कहते हैं ना कि जब बुलावा आता है तो वो टाला नहीं जा सकता। पता नहीं क्या हुआ कि तिवारी ने बाइक रेणुका जी की तरफ ही मोड़ ली।
जाने से पहले अपनी बाइक साफ करता तिवारी। इतना प्यार ये अपने घर वालों से नही करता, जितना अपनी मोटरसाइकिल को करता है।

शिवालिक के पहाड़।

जमटा में नाश्ते के बाद का photo session।

ये रास्ते। बस क्या कहूँ इनके बारे में। न करवा दी इन्होंने।


ऐसा है नाहन से रेणुका जी तक का रास्ता। जमटा के बाद रास्ता इससे कम चौड़ा हो जाता है।

गर्मियों में यही पहाड़ जब हरे भरे हो जाते हैं, तो इनकी सुंदरता का कोई सानी नही।

बाइक पर एक selfie।

इस पुल के पास ही है वो मन्दिर। पीछे खड़े हैं वो bullet वाले।

कई कई जगहों पर ऐसा हो जाता है रास्ता।

क्रमशः


Thursday 21 December 2017

फरवरी के फन, चूड़धार में.....☺☺

नमस्कार मित्रों

 इतने दिनों तक आपसे कोई संपर्क नहीं हो पाया, इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूं। परंतु क्या करूं, m.comm द्वितीय वर्ष के एग्जाम चल रहे थे, तो वहां समय देना भी आवश्यक था।
पिछला यात्रा लेख, जनवरी में वैष्णो देवी यात्रा, जो मैंने वैष्णो देवी और शिवखोड़ी यात्रा पर लिखा था, उसे आप सब ने इतना प्यार दिया। उसके लिए धन्यवाद देने लायक मेरे पास शब्द नहीं है, ओर वैसे भी अपनो को धन्यवाद कहते नही हैं।

            वादा किया था कि जल्द ही आपसे अगली यात्रा के साथ मिलूंगा और अब समय आ गया है, इस वादे को पूरा करने का। आज की यह पोस्ट कोई यात्रा वृतांत तो नहीं है, पर अगले यात्रा लेख की एक भूमिका मात्र है, जिस यात्रा के बारे में लिखूंगा।

 यह यात्रा फरवरी 2017 में की गई थी, अंबाला से रेणुका जी, हरिपुरधार होते हुए चुरधार। किसी भी पहाड़ी क्षेत्र में यह मेरे द्वारा की गई  ""पहली बाइक यात्रा""  थी। मजा भी बहुत आया और दुख भी बहुत हुआ।
          यह यात्रा जिन चरणों में पूरी होगी, आज थोड़ा उसके बारे में बता देता हूं। इस यात्रा में आप और मैं अंबाला से चलकर सबसे पहले जिस पर्यटक स्थल पर पहुंचेंगे- वो है हिमाचल के जिला सिरमौर में स्थित रेणुका जी झील व मन्दिर। दर्शन के पश्चात हम जाएंगे, सिरमौर के लोगो की कुलदेवी माता भंगायनी देवी मंदिर
 हरिपुरधार के बाद चूड़धार यात्रा के बेस कैंप नौहराधार तक पहुंचेंगे और उसके बाद शुरू होगा चूड़धार का रोमांचक सफर। trek करने के पश्चात फिर हम वापस आएंगे अंबाला।




        इसे मैं रोमांचक सफर इसलिए कह रहा हूं क्योंकि इस पूरे सफर में मेरे साथ अन्य कोई भी नहीं था। जो मित्र मेरे साथ बाइक पर गया था, वो भी चूड़धार जाने के लिए मना कर गया। पर मंजिल के करीब आकर भी दूर जाना मुझे अच्छा नही लगा और मैं निकल पड़ा अकेला ही, रास्ते के खतरों से अनजान। बिना tent ओर sleeping bag के, बिना खाने पीने के सामान के। अकेले मुसाफिर को यह भी नही पता कि रात को रुकना कहाँ और कैसे है। नोहराधार के लोगो ने भी मेरे अकेले जाने पर ऐतराज जताया, पर मैं नही रुका(हालांकि, इसका परिणाम भी मुझे भुगतना पड़ा)। मैं नोहराधर से चला और ट्रैक शुरू किया तो वापस नोहराधर आने तक मुझे रास्ते में सिर्फ एक सरदार जी और उनकी पत्नी मिले।

               इस सफर में डर भी है, भय भी, मजा भी और रोमांच भी। मुझे लगता है कि जिस प्रकार मुझे इन सब की अनुभूति हुई, आप भी मेरे साथ इन सब भावनाओं की अनुभूति करेंगे। इस यात्रा का आगाज़ मैं अगले शुक्रवार से करूँगा ओर प्रत्येक शुक्रवार  को एक नया लेख लेकर आपके सामने आऊंगा। मैं आज के इस लेख में अपनी इस यात्रा के 10 ऐसे फोटो लगा रहा हूं, जो मुझे सबसे पसन्द हैं। इसके बारे में पूरी जानकारी आपको अगले लेखों में मिलेंगी।






            और हां, एक बात और। इस बार मेरे उन मित्रों की शिकायत भी दूर होगी, जो कहते हैं कि मैं अपने यात्रा लेखों में अपने फोटो ज्यादा लगाता हूं। तो दोस्तों, इस यात्रा से पहले तक मैं केवल एक tourist था और इस यात्रा ने मुझे एक घुमक्कड़ बनाया तो इस यात्रा के चित्र और इससे आगामी यात्राओं के चित्र आपको मुझसे ज्यादा प्राकृतिक नजारों के मिलेंगे।






आप सब की टिप्पणियों ओर सुझावों के इंतज़ार में:-
धरती-पुत्र