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Tuesday 17 October 2017

जनवरी में वैष्णो देवी यात्रा...... भाग-4


"अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥"


लंका पर विजय हासिल करने के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मन से कहा," हे लक्ष्मण! यह सोने की लंका मुझे किसी तरह से प्रभावित नहीं कर रही है माँ और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़ कर है।"

भारत की इस पावन भूमि को शत-शत नमन करते हुए आज के अपने इस तीसरे लेख को मैं आप सब को समर्पित कर रहा हूं। भारत एक ऐसा देश है कि आप अगर सात जन्म भी ले लें तो भी इस देश में स्थित तीर्थ स्थानों, प्राकृतिक दृश्यों से सराबोर पर्यटक स्थलों और अन्य स्थानों का भ्रमण नहीं कर सकते। एक ऐसा विशाल भूभाग है भारत जिसके कण-कण में देवी देवताओं का निवास है। प्रकृति ने इस पुण्यभूमि को अपने दोनों हाथों से आशीर्वाद देकर इसे अनुपम सौंदर्य से नवाज़ रखा है। मेरा, आपका, हम सबका सौभाग्य है कि हम सब भारत मे रहते हैं।

                                  कटरा से शिव खोड़ी गुफा तक

                       खैर, मैं अपने यात्रा वृतांत पर आता हूं। जब मैं सुबह सो कर उठा तो सबसे पहले देवांशु को उठाया। शिवखोड़ी जाने या न जाने पर बहस भी हुई, पर अंत में यह निर्णय हो ही गया कि शिवखोड़ी जाना है। अब बारी आई नहाने की। कटरा कोई बहुत अधिक ऊंचाई पर नही है। समुद्र तल से 876 मीटर पर कटरा स्थित है। जनवरी में हमारे मैदानों में ही बहुत ठंड पड़ती है, तो कटरा में अधिक ठंड होनी तो स्वभाविक ही थी। जनवरी में सुबह 7 बजे ठंडे पानी मे नहाना(वो भी पहाड़ो से आता है ठंडा पानी)। मित्रवर ने तो हाथ खड़े कर दिए। पर मैं तो दैनिक क्रियाओं से फारिग होकर बाथरूम में घुसा ओर नहाना शुरू किया। शुरू में तो पानी ने जरूर कंपकपी पैदा की शरीर मे, पर 5-6 डिब्बे डालने के शरीर अभ्यस्त हो गया।

                             कपड़े आदि बदल कर हम "वीर-भवन" के संचालक श्रीमान संगीत सिंह जी के पास पहुंचे और उनसे शिवखोड़ी जाने के बारे में बात की। उनके जानकार होंगे कोई(नाम मुझे ध्यान नही) तो उन्होंने कहा कि आप ऐसा करना, बस-स्टैंड पर उनके पास चले जाना। मैं उन्हें फोन कर देता हूं कि आप 2 लोग आ रहे हैं। संगीत जी के वह मित्र कटरा से शिवखोड़ी तक टूरिस्ट बस चलाते हैं। संगीत जी के कहे अनुसार हम उनके मित्र के पास जाने के लिए चल पड़े। कल की ही तरह हमने अपना सामान लॉकर में ही जमा करवा दिया था। सिर्फ रात की ठंड से बचने के लिए मैंने गरम स्वेटर रख ली और वीर-भवन से बाहर आ गए। एक किलोमीटर पैदल चलकर हम कटरा के बस स्टैंड पहुंचे और पूछताछ करके संगीत जी के मित्र के पास पहुंच गए। उनसे राम-राम हुई, बात की उन्होंने बोला कि मेरे पास फोन आ गया था, आपकी सीट बुक कर दी गयी है। उन्होंने हमें टिकट लेने के लिए कहा। हमने जब टिकट के पैसे पूछे तो उन्होंने ₹360 दोनों जनों के बताएं। अब जैसा कि हम भारतीयों का स्वभाव और रीति दोनों ही है, हमने उन्हें वही जवाब दिया कि भैया ठीक-ठीक लगा लो। आगे से उनका जवाब था कि आप R.S.S. से हो तो हमने पहले ही 100 रुपए कम कर दिए हैं, वरना बाकी सब से ₹220 प्रति सवारी लेते हैं। अब कहने सुनने की कोई गुंजाइश नहीं थी।  हमने टिकट ली और आग्रह करके उनसे खिड़की के पास वाली डबल सीट की माँग की। उन्होंने हमें एक विंडो सीट दे दी जोकि बस की सबसे आखिरी सीट थी। उस बस में केवल मात्र दो ही सीटें बची हुई थी जोकि संगीत जी ने हमारे लिए पहले ही बुक करवा दी थी। हमने बस चल संचालक का धन्यवाद किया और जाकर अपनी सीट पकड़ ली। लगभग आधे घंटे के इंतजार के बाद बस ने बस स्टैंड को छोड़ दिया और शिवखोड़ी की और जाते हुए रास्ते को पकड़ लिया। लगभग 15 मिनट के बाद टिकट की चेकिंग करने वाला एक लड़का आया और हम से टिकट की डिमांड करने लगा। अब हम सबसे आखरी यात्री थे तो हमारी टिकट चेक करने के बाद उसके पास कोई काम नहीं था। मैंने उसे अपने पास बैठने का आग्रह किया जिसे उसने सहर्ष मान भी लिया। वह हमारे पास बैठा और मैंने उससे बातचीत शुरू कर दी। सबसे पहले मैंने उसे पूछा कि शिवखोड़ी में देखने लायक क्या है, रास्ते में कहाँ-कहाँ बस रुकती हैं आदि। उसने हमें रास्ते की सारी जानकारी दी। मैं भी आपको सब बताऊंगा, बस आप पढ़ते रहिये।
जय महामाई वैष्णो। 5 बार तो बुला लिया आपने, छठी बार भी बुलाओगी तो इससे भी ज्यादा उत्साह से आऊंगा।

वीर-भवन से बाहर निकल कर लिया एक चित्र। पीछे भवन की ओर जाता रास्ता दिख रहा है।


लगभग 20 मिनट चलने के बाद ड्राइवर ने बस के ब्रेक लगा दिए। खिड़की से बाहर देखा तो पास में एक मंदिर था। हमने पहले ही पूछ लिया था तो अब दोबारा किसी से पूछने की आवश्यकता नहीं थी। आप सब को तो बता ही देता हूं कि बस रुकी थी जीतू बाबा के मंदिर के सामने। कटरा से शिवखोड़ी जाते हुए रास्ते में यह पहला स्थान है, जहां बस रुकती है। मंदिर का निर्माण कार्य उस समय चल रहा था। हमने अपने जूते बस में ही उतार दिए थे तो रास्ते में बजरी पर चलते हुए हमें बहुत दिक्कत आई, पर जैसे तैसे करके हम मंदिर में पहुंच गए और दर्शन किए।

इस मंदिर के बारे में लोगों की मान्यता है की जित्तो बाबा जी को वैष्णो माता का आशीर्वाद प्राप्त था। जीतो बाबा हर रोज अपने घर से मां वैष्णो देवी के दर्शन करने के लिए गुफा तक जाया करते थे। आप मे से जो लोग वैष्णो देवी गए होंगे, उन्हें पतां होगा कि जब हम कटरा से  त्रिकुटा पर्वत पर देखते हैं तो हमे माँ वैष्णो का भवन नही दिखता। ऐसा इसलिये है क्योंकि भवन पर्वत के दूसरी तरफ है। जित्तो बाबा के मंदिर से भवन साफ-साफ दिख जाता है। जित्तो मन्दिर के प्रांगण में जित्तो बाबा की एक प्रतीकात्मक मूर्ति भी है, जिसमे वे मां वैष्णो देवी दरबार की तरफ देख रहे हैं। जित्तो बाबा मंदिर परिसर में एक पानी का कुंड भी है। मान्यता है कि इसमें स्नान करने से स्त्रियों को संतान प्राप्ति होती है। हमने भी दर्शन किए और बस में आकर बैठ गए। 
माता के भवन की ओर देखते हुए बाबा जित्तो।


बाबा जित्तो ओर उनकी पुत्री बुआ कोड़ी। कोड़ी बुआ को माता वैष्णो का अवतार माना जाता हैं।
(उपरोक्त दोनो चित्र मेरे द्वारा नही लिए गए हैं)



                         कुछ देर बाद बस ने प्रस्थान किया। 10 मिनट भी नहीं चले होंगे कि फिर से ड्राइवर साहब ने ब्रेक लगा दिए।  अब रुकने की बारी थी नौ देवी मंदिर में। नौ देवी मंदिर के बारे में आपको बता देता हूं कि 9 देवी मंदिर कटरा-शिवखोरी यात्रा मार्ग पर स्थित है। शिवखोड़ी जाने वाले लगभग सभी यात्री इस मंदिर के दर्शन करते हैं। जब हम ने मंदिर में प्रवेश किया, तो कुछ सीढियां उतरने के बाद हमारा सामना लम्बी लाइन से हुआ। जो मुख्य गर्भगृह है, वह बहुत नीचे उतर कर है। इस मंदिर में माता पिंडी रूप में अवस्थित है, लेकिन इसमें छोटे-छोटे आकार की पिंडियाँ हैं, जिनके लिए गुफा में रेंगते हुए जाना पड़ता है। गुफा कोई 20 फीट के आस-पास होगी पर यह गुफा ना तो ज्यादा संकरी हैं और ना ही बहुत खुली। हमने भी लाइन में लगकर आधा घंटा इंतजार किया और पहुंच गए गुफा के दरवाजे पर। लोग धीरे-धीरे गुफा के अंदर प्रवेश कर रहे थे तो दिवांशु और मैंने भी झुक कर अपने चारों पैरों( 2 हाथ और 2 पैर) पर चलकर गुफा में प्रवेश किया और अंदर जाकर माता के दर्शन किए।

                यह मंदिर एक नदी के किनारे स्थित है। यह स्थान बहुत रमणीक प्रतीत होता है। मंदिर से बाहर आकर हमने आसपास के नजारों के साथ अपने चित्र लिए। जिस समय हम चित्र ले रहे थे, तो दोनों का इकट्ठा फोटो लेने के लिए हमने एक यात्री को बोला। हमारे फोटो खींचने के बाद उसने हमें उसका फ़ोटो लेने के लिये बोला। बस ऐसे ही जान पहचान हो गई। वह चार लोग थे जो हैदराबाद से आए थे। बातचीत हुई तो उन्होंने मुझे हैदराबाद आने का न्योता दिया और नम्बरो का आदान-प्रदान भी हुआ। इसके बाद हम सभी इकठे होकर बस में आकर बैठ गए। थोड़ा इंतज़ार के बाद बस भी अपने गंतव्य की ओर रवाना होने लगी।


9 देवी मंदिर के बाहर नदी किनारे का दृश्य।

देवांशु ओर मैं।


हम दोनों के ये चित्र उन हैदराबाद वाले ग्रुप में से किसी एक ने लिये हैं।
हैदराबाद वालो के साथ एक selfie।


बस के रवाना होने के बाद हम सब आपस मे बातें करने लगे। पहाड़ी रास्तों पर बस नागिन की तरह बल खाती हुई चक रही थी। बहुत से लोगो को यह समस्या होती है कि वे अपना खाया-पिया सारा बस में निकाल देते हैं। हम सबसे आखिरी सीट पर बैठे थे और window seat पर मैं  बैठा था, तो मैंने तो अपनी खिड़की बन्द कर रखी थी। क्या पता कब किसी को feeling आ जाए और भुगतना मुझे पड़े। लगभग 1 घण्टे बाद बस एक ढाबे पर आकर रुकी। इस ढाबे से शिवखोड़ी की दूरी 35 किलोमीटर रह जाती है। यहाँ बस में आधा घण्टा रुकना था, तो हमने भी उतरकर चाय और ब्रेड का नाश्ता किया, ओर शुरू हो गया photo session।
जय हिमालय।


मेरे पसंदीदा चित्रो में से एक।

पर्वतों की गोद मे 2 भाई।



आज मेरा पूरा मन था कि इस यात्रा को पूर्णविराम दे दूं। पर माफी चाहूंगा मित्रों, दीपावली के शुभ अवसर पर घर की साफ सफाई करनी है। जिमिदार का बेटा हूँ, तो घर पर खेती का बहुत सामान है। अतः सफाई में समय बहुत लगता है। अगले भाग में आप सब को शिवखोड़ी गुफा के दर्शन करवाएं जाएंगे। तब तक के लिये मुझे जाने की आज्ञा दें ।


आप सब को आज धनतेरस, नरकचतुर्दशी, महापर्व दीपावली, गोवर्धन पूजा और भैयादूज की कोटि कोटि शुभकामनाएं देता हुआ मैं विदा लेता हूँ। जल्द ही मुलाकात होगी।

तब तक के लिये जय हिंद।

7 comments:

  1. जय माता दी...घुमक्कड़ी से इतर काफी बाते होती है ब्लॉग में जैसे सफाई या rss या और भी कुछ...फोकस घुमक्कड़ी पर रहे तो पड़ने में और मजा आएगा....

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    1. जी बिल्कुल प्रतीक जी।

      अगली पोस्टों में इस बात का ध्यान रखा जायेगा जी

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  2. उम्मीद थी कि शिवखोड़ी तक तो पहुंचा ही दोगे, नहीं पहुंचे।
    खैर बढिया लेखन,
    विस्तार से लिखते रहो। खुश मन से लिखी पोस्ट और भी बेहतरीन हो जाती है।
    जमींदार का जिमीदार क्यों बना दिया..

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    1. सुमधुर धन्यवाद प्रोत्साहन के लिये संदीप भाई जी।

      शीवखोड़ी पहुंच जाते, अगर रास्ते मे बस इतनी जगह न रुकती तो।

      लिखने में गलती रह जाती है महाराज थोड़ी बहुत। अभी सिख रहे हैं आप जैसे भाइयो से।
      सीख जायँगे धीरे धीरे

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  3. वाह बहुत बढि़या अक्षय जी, आपसे ठीक ठाक लगाने के बाद भी बस वाले ने 220 रुपए मिला तो तो भीड़-भाड़ वाले समय में 200 रुपए में कटरा से शिवखोड़ी पहुंच गए और वापस भी आ गए थे जी, जीतू बाबा मंदिर, नौ देवियां मंदिर के दर्शन हमने दो बार किया थो पहली बार शिवखोड़ी जाते हुए और दूसरी बार केवल उसे ही देखने गए थे। बहुत अच्छा लिखा था पर एक बात कहूं, यात्राा पेज यात्राा के बारे में ही लिखा करो जी, ये आरएसएस वगैरह लिखना थोड़ा विषम लगता है

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