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Wednesday 24 October 2018

चल भोले के पास...चल किन्नर कैलाश....भूमिका


शिव , एक ऐसे देव जिनका सनातन परंपरा में अहम स्थान है। त्रिदेवो में तो इनका नाम है ही, साथ में उन्हें देवों के देव महादेव के नाम से भी जाना जाता है। भगवान विष्णु जहां रहते हैं वो है क्षीर-सागर। उनके नाभि-कमल में रहते हैं ब्रह्मा जी और भोलेनाथ विराजते हैं कैलाश पर्वत पर। पौराणिक कथाओं में हम पढ़ते भी हैं, जब भी किसी देवता, यक्ष, गन्धर्व, दानव आदि को कोई दिक्कत आती है और उसका समाधान चाहिए होता है तो जब सब दरवाजे बंद हो जाते हैं तो वह कैलाश पर्वत की ओर रुख करते हैं। 
ये तो सच है कि वर्तमान की उत्पत्ति में कहीं न कहीं अतीत ही होता है तो वर्तमान में भी भक्तगण अपनी समस्याओं के निवारण हेतु व भोलेनाथ का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए कैलाश जाना चाहते हैं और जाते भी हैं। बस......यहीं मुख्य प्रश्न खड़ा होता है कि कहाँ है कैलाश... कहाँ है भोलेनाथ का निवास?? तो मित्रों, लोक मान्यताओं को देखें तो जनमानस में पांच कैलाश प्रचलित हैं:-
1. कैलाश मानसरोवर 
2. आदि कैलाश या छोटा कैलाश 
3. किन्नर कैलाश 
4. श्रीखंड कैलाश और 
5. मणिमहेश कैलाश।
श्री किन्नर कैलाश महादेव जी की पवित्र शिला।
ये हैं पांच कैलाश। ॐ पर्वत कैलाश श्रेणी में नही है, पर कैलाश जितनी ही महत्वता रखता है।

                   सभी कैलाश शिखर हिमालय पर्वतमाला में है। पांचों की यात्रा पर लोग जाते हैं पर आश्चर्य देखिए कि किन्नर कैलाश और श्रीखंड कैलाश में आपको शिवजी के रूप में शिवलिंग रूपी शिला के दर्शन होते हैं और बाकी तीनों कैलाशों में एक बृहत पर्वत को ही शिव का निवास माना जाता है।
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             अब चूंकि ये यात्रा वृतांत किन्नर कैलाश यात्रा से संबंधित है, तो इस लेख को भी हम किन्नर कैलाश के इर्द-गिर्द ही रखेंगे। आप अधिकतर ब्लॉग्स में देखते हैं कि लेखक किसी स्थल पर जाता है....वह मंदिर, मस्जिद या जो भी स्थल है, उसको देखता है.... कुछ उसका इतिहास या महत्व जानने की कोशिश करते हैं, कुछ नहीं करते.....जो करते हैं वह लिखते नहीं और जो लिखते हैं वह संक्षिप्त रूप में लिखते हैं। मैं खुद को बहुत बड़ा घुमक्कड़ नही कहता पर मित्रों, मेरी नजर में घुमक्कड़ी केवल किसी जगह पर जाकर उसे देखना मात्र नही है..... असली घुमक्कड़ी है...उस स्थान को जीना...उसे महसूस करना...स्वयं के अस्तित्व को स्थान के अस्तित्व में घुला देना....अपने इतिहास को उसके इतिहास से जोड़ कर घूमते रहना। मेरा तो यही फंडा है भई....मेरे ब्लॉग में मैं आपको मेरे घूमे हुए स्थल की विस्तृत जानकारी उपलब्ध करवाता हूँ। यदि कोई पुरातात्विक स्थल है तो उसका इतिहास और यदि कोई देवस्थल है तो उसका उपलब्ध इतिहास नही तो उसका महत्व तो जरूर।।।
               खैर, बात करते हैं कैलाश की यात्रा के बारे में। किन्नर कैलाश के बारे में जनमानस में एक बात प्रचलित है कि इस यात्रा को व्यक्ति अपनी जिंदगी में एक बार ही कर पाता है। आप सोच रहे होंगे कैसे??अरे भई.....सरकार की तरफ से दूसरी बार की कोई बंदिश नहीं है। बस ये यात्रा मुश्किल ही इतनी है कि लोगों के दिलो-दिमाग में यह बात बस गई है। जो एक बार आ गया, इसकी कठिनाइयां देखकर दोबारा नहीं आएगा। यह किवंदती कुछ हद तक ठीक भी है, पर सिर्फ उनके लिए जो जीवट नही हैं। मैने देखे बहुत से लोग ऐसे देखे, पहली बार में ही हाथ जोड़ गए थे....वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो इस यात्रा को 16 बार कर चुके हैं। यार.....मैं भटक जाता हूँ मुख्य विषय से.....जब भी भटकूँ मुझे रुक्का(आवाज़) मार के बुला लिया करो। खैर, बात करते हैं किन्नर कैलाश के महत्व के बारे में......
भौगोलिक महत्व:- हिमाचल प्रदेश का एक दूरस्थ जिला है किन्नौर। उसमें जो हिमालय पर्वत श्रेणी है उसमें एक श्रृंखला है किन्नर कैलाश। ये जो mountain range है, आम तौर पर इसकी ऊंचाई को ही सब किन्नर कैलाश की ऊंचाई मान लेते हैं पर सच्चाई इससे इतर है। इस range की जो सबसे ऊंची चोटी है, उसका नाम है jorkanden, जिसकी ऊंचाई है 6473 मीटर। इसी range में एक चोटी और है जिसका नाम है किन्नर कैलाश, जिसकी ऊंचाई है 6050 मीटर। यही किन्नर कैलाश है......अगर आप भी ऐसा सोच रहे हैं तो गलत सोच रहे हैं.....जिस शिला रूपी शिवलिंग दर्शन हेतु यह यात्रा की जाती है वह स्थित है 4830 मीटर पर। बहुत से लोग इस भ्रम में थे, मैं भी था भई। क्या कहा.....झूठ बोल रहा हूँ...किन्नर कैलाश की ऊंचाई तो 6000 मीटर है....हम गए हैं... ये बड़े-बड़े पत्थर पड़े हैं वहां....शरीर चीरने वाली हवाएं चलती हैं वहां....ऑक्सीजन नाममात्र की है। तो मित्रों, मैने कब कहा कि ये सब नही है, लेकिन 6000 मीटर कम नही होता जी। इस ऊंचाई पर पूरा साल बर्फ रहती है ग्लेशियर जमे रहते हैं, पर अधिकतर फोटो में आप देखेंगे कि शिला के आसपास आमतौर पर बर्फ नहीं होती। तो सभी माननीय व आदरणीय महोदय गण, किन्नर कैलाश की ऊंचाई 4830 मीटर है।
दोनो चित्र कल्पा से लिए गए हैं, इनसे वहम दूर हो जाएगा। गोले में देखिए....ये किन्नर कैलाश महादेव की पवित्र शिला है। इसके आसपास ही आप jorkanden पर्वत देख सकते हैं। फर्क पता लग जायेगा 4830 मीटर ओर 6475 मीटर का।



इस चित्र के गोले में तो किन्नर कैलाश शिला ही है, जबकि बायीं ओर का पर्वत श्रृंग जो है, वो किन्नर कैलाश पर्वत है। लग गया होगा फर्क पता 4830 ओर 6050 मीटर का।
नंबर दो:- किन्नर कैलाश पहुंचो और तिब्बत की ओर मुंह करके चलना अगर शुरू करें तो 50 किलोमीटर भी पूरे नही करेंगे और तिब्बत पहुंच जाओगे। बॉर्डर क्षेत्र है और वो भी चीन के अधिकार क्षेत्र वाला। इसी कारण से यह स्थान 1993 से पहले आमजन के लिए प्रतिबंधित था। 1993 में इस घाटी को शिव भक्तों की मांग पर पर्यटकों के लिए खोल दिया गया। पर अब भी यहां आने वाले यात्री इतने कम हैं कि उंगलियों पर गिने जा सकते हैं। पिछले कुछ वर्षों से सांगला घाटी की लोकप्रियता अवश्य बढ़ी है, जिससे कुछ भूले भटके मुसाफिर इस ओर भी आ जाते हैं।
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पौराणिक महत्व:-   आप सब ने कथा सुनी होगी कि अर्जुन ने भगवान शिव से पाशुपतास्त्र प्राप्त किया था। नहीं सुनी तो मैं सुनाता हूं....अर्जुन स्वेच्छा से 12 वर्ष के वनवास पर गए। इस अवधि में उन्होंने सोचा कि क्यों ना देवों को तपस्या से प्रसन्न करके अस्त्र-शस्त्र प्राप्त किए जाए, ताकि भविष्य में यदि कोई संकट हो तो उसका सामना किया जा सके। इस ध्येय को धारण कर वो हिमालय पर्वत पर गए। हिमालय की चढ़ाई चढ़ते-चढ़ते आ गए- इंद्रकील पर्वत। (इंद्रकील पर्वत ही आज का किन्नौर कैलाश है)। यहां वह शिवजी की तपस्या करने लगे। कुछ महीनों बाद अर्जुन की परीक्षा लेने हेतु शिवजी किरात(शिकारी) के रूप में आए और अर्जुन का उनसे युद्ध हो गया। अर्जुन कोई भी बाण चलाता तो वह निष्फल हो जाता। अर्जुन ने अपनी शक्ति को बढ़ाने के लिए शिव की आराधना करके शिवलिंग पर पुष्पमाला अर्पित की तो देखा कि वह अर्पित की हुई माला तो किरात(शिकारी) के गले में है, तब अर्जुन उनके समक्ष नतमस्तक हो गया और शिव ने भक्ति से प्रसन्न होकर अर्जुन को पाशुपतास्त्र प्रदान किया। अतः पुराणों में वर्णित इंद्रकील पर्वत ही किन्नर कैलाश है।
शिव की तपस्या में लीन अर्जुन। और किरात-अर्जुन का युद्ध

अर्जुन को पाशुपतास्त्र प्रदान करते हुए भोलेनाथ।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण:- यहां जो शिला रूपी शिवलिंग है, वह करीब 78 फीट पहुंचा प्रस्तर-खंड है। इसके बारे में मान्यता है कि यह शिवलिंग दिन में 5 बार रंग बदलता है। पर ऐसा सिर्फ सूर्य की रोशनी के परावर्तन के कारण ही होता है।
            आप में से बहुतों के मन मे प्रश्न उठा होगा कि इस कैलाश का नाम किन्नर कैलाश क्यों है....क्या इसका किन्नर वर्ग से कोई संबंध है???? मेरे मन मे तो उठा था...फिर क्या उठाई कुछ पोथियाँ...खंगाला google बाबा, तो हमारे मूढ़ मस्तिष्क में भी ज्ञान की कुछ गूढ़ बातें प्रवेश हुई। क्या कहा....आपने भी सुननी हैं, तो सुनिए...... प्राचीन धर्म ग्रंथों में आज के किन्नौर को किन्नर प्रदेश की संज्ञा दी गई है। किन्नर वह जाति है जो देवों की सभा में गायन किया करती थी। हम पौराणिक कथाओं में सुनते हैं कि गंधर्व नाचते थे और किन्नर गान किया करते थे। वायुपुराण और महाभारत के कई आख्यानों से यह ज्ञात भी होता है कि हिमाचल का पवित्र कैलाश क्षेत्र किन्नरों का निवास क्षेत्र था। वहां वे शिव की सेवा में रहते थे और देवताओं के गायक के रूप में काम करते थे। सैकड़ों सेवको के साथ नृत्य और गायन का काम करते थे और चित्ररथ उनका अधिपति था। महाभारत में तो पांडवों की ओर से इन्होंने लड़ाई भी की थी। अतः यह देव गायकों के वंशज हैं....हिजड़ा वर्ग से जोड़ कर देखना हमारी भूल मात्र ही है। किन्नर प्रदेश में स्थित होने के कारण महादेव का ये धाम किन्नर कैलाश कहलाता है।

          किन्नर कैलाश कैसे पहुंचा जाए यह तो मैं आपको अगले लेख में बताऊंगा, जब आप मेरे साथ ही इस यात्रा पर चलेंगे। इस यात्रा वृत्तांत में आप और मैं जैसे-जैसे यात्रा करेंगे, उसका वर्णन बताए देता हूँ
पहला भाग:- चंडीगढ़ से यात्रा के बेस कैम्प पोवारी गांव तक।
दूसरा भाग:- पोवारी से पहले पड़ाव गणेश पार्क तक।
तीसरा भाग:- गणेश पार्क से पवित्र शिला तक।
चौथा भाग:- शिला दर्शन के उपरांत पुनः गणेश पार्क।
पांचवा भाग:- गणेश पार्क से वापिस।
              यह यात्रा शारीरिक कम मानसिक यातना ज्यादा देती है। मौसम भी पल-प्रति-पल अपना मिज़ाज यहां बदलता रहता है। अगर मौसम आदि की कोई गड़बड़ी हुई तो यात्रा में फेर-बदल हो सकता है। अगले लेख में किन्नर कैलाश यात्रा का फोटो सहित शुभारंभ करेंगे। तब तक इस यात्रा के 10-12 ऐसे चित्र लगा रहा हूं, जो मुझे सबसे अच्छे लगते हैं। एक बात और.....मैंने इस यात्रा का शीर्षक सोचा है-- चल भोले के पास...चल किन्नर कैलाश। आप शीर्षक से सम्बंधित अपने अमूल्य सुझाव दे सकते हैं....स्वागत रहेगा। आप सब की प्रतिक्रियाओ का इंतजार रहेगा। घूमते रहिए.... घुमाते रहिये...बने रहे धरतीपुत्र के साथ
मैं तो निःशब्द हूँ इस फोटो पर.... आप कुछ कहना चाहें तो कह सकते हैं।

किन्नौर में आपका स्वागत है।



इसे कहते हैं GATEWAY OF KINNAUR..

विश्व की गिनी-चुनी खतरनाक सड़को में से एक।
             



लग रहा है न लद्दाख़...... पर नही....ये हिमाचल ही है। अत्यधिक विकास हुआ है यहां पर।

रामपुर बुशहर के बाद का एक चित्र।

तन्गलिंग नाले की चढ़ाई से लिया गया कल्पा घाटी का एक चित्र।

ये है रेकोंगपिओ।

गणेश पार्क से शाम के समय लिया गया एक चित्र। इसकी व्याख्या लेख में कई जाएगी।

अपने ठिकाने के पास खड़ा मुसाफिर।

सोच रहे होंगे क्या पत्थरों की फ़ोटो डाल रखी है..... ये रास्ता है जी।

4215 मीटर पर स्थित पानी का एकमात्र स्त्रोत। इसे पार्वती कुंड भी कहा जाता है।

विंध्य हिमाचल यमुना गंगा........रेकोंगपिओ में लहराता भारतीय धवज।


।।अघोरेभ्यो च घोरेभ्यो, घोर घोर त्रेभ्यो।।
श्री किन्नर कैलाश महादेव जी की पवित्र शीला।