Don’t listen to stories, tell the stories

Friday 19 January 2018

जीत कर भी मिली हार.....यही है चूड़धार..... भाग-3


रेणुका जी से हरिपुरधार
नमस्कार मित्रों,
उपस्थित हूँ आपके समक्ष अपनी चूड़धार यात्रा के यात्रा वृत्तांत का तीसरा लेख लेकर। पिछले भाग में आपने रेणुका जी झील से सम्बंधित इतिहास पढ़ा। मैं blogging की दुनिया मे नया-नया आया हूँ। एक से एक अनुभवी व पुराने blogger अपने अपने यात्रा वृत्तांत लिखते हैं। मैं सबको पढ़ता हूँ। अच्छा लगता है जब अपने लेख के views हम देखते हैं कि इतने हुए, इतने हुए। ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ है दोस्तों, मेरे इस चूड़धार यात्रा वृत्तांत के दूसरे भाग पर अब तक सबसे ज्यादा views आये हैं, ओर इनकी संख्या है 509। मुझे मालूम है आप मे से कई पाठक इस समय मुस्कुरा रहे होंगे, लेकिन क्या करूँ दोस्तो, मुझे तो ये 509 भी 59000 जैसे लग रहे हैं।
       खैर, आप लोग यूँ ही अपना स्नेह बरकरार रखें और मैं यूँ ही लिखता रहूंगा। views जितने भी आये, बेशक कम भी हो लेकिन मुझे मालूम है जो मित्र पढ़ते हैं, वो सब अपने हितैषी हैं। दोस्तों, तालियों ओर तारीफों से किसी का पेट नही भरता, लेकिन मंच पर बोलने वाले वक्ता को और कुछ भी लिखने वाले लेखक को जब तक तारीफ़ें ओर तालियां नही मिलती, तब तक उसके हलक से रोटी नीचे नही उतरती। चलिये, मन की बातें तो बहुत हुई और इन बातों की मंशा भी आप समझ गए होंगे। अब अपने विषय पर आते हैं।

दोपहर के लगभग 2:30 के आसपास हम रेणुका जी झील के दर्शन करके फारिग हुए। अब हमारी अगली मंजिल थी हरिपुरधार। आज की रात हम हरिपुरधार में ही बिताने की सोच रहे थे, पर नाहन से रेणुका जी तक की सड़क बहुत शानदार बनी है। मुझे लगा आगे भी हमे ऐसी ही सड़क मिलेगी। तो निश्चित हुआ कि रात्रि निवास नोहराधार में होगा। नोहराधार को मंजिल मानकर बाइक पर बैठे, मारी किक ओर चल पड़े। 1.5 किलोमीटर चलाकर हम दोबारा मुख्य सड़क पर आ गए, जो हरिपुरधार की ओर जाती है। रोड़ ज्यादा चौड़ा तो नही है, लेकिन अच्छा बना है। रेणुका जी के चारो तरफ 5-5 किलोमीटर तक अच्छी खासी ट्रैफिक रहती है। कारण, रेणुका जी का एक मशहूर व रमणीक तीर्थ स्थल होना है। हमे तो और भी ज्यादा trafiic मिली, जिसका कारण रेणुका जी मे बन रहा बांध है।
रेणुका जी से निकलने के बाद ऐसे-ऐसे दृश्यों की भरमार है। एक तरफ ऊंचे पहाड़ ओर दूसरी तरफ गहरी खाइयाँ, बहुत ही सम्भल कर चलने को प्रेरित करती हैं।

      असल में, हिमाचल सरकार द्वारा रेणुका जी से कुछ किलोमीटर आगे एक बांध परियोजना चलाई जा रही है, जिसमे गिरी नदी के पानी को रोक कर 148 मीटर की ऊंचाई से गिराया जायगा, ओर फिर बिजली उत्पादन किया जायेगा। इस परियोजना से 40 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा, जिसका पूरा पूरा लाभ सिरमौर की जनता को मिलेगा। इस परियोजना का निर्माण कार्य अपने पूरे जोर पर है। जगह जगह बारूद लगा कर विस्फोट किये जा रहे थे। मलबे के ट्रक के ट्रक भरकर खदानों में गिराए जा रहे थे और धूल- मिट्टी, उसकी तो पूछो ही मत, अम्बार लगा हुआ था। अपने तिवारी जी ठहरे, bike lover, बस बिफर गए मुझ पे। एक तो मुझे पहाड़ो में ले आया..... 100cc की बाइक है हमारी और 2 लदे हुए हैं इस पर, ऊपर से ये धूल मिट्टी..... परसों ही धुलवाकर लाया था... जाकर फिर सर्विस करवानी पड़ेगी.... ये वो।

    खैर, एक बात मैं आपको बताना भूल गया। रेणुका जी जल विद्युत परियोजना भी अपने आप एक महत्वपूर्ण विषय है। मैंने इस परियोजना पर विस्तृत अध्ययन किया तो पाया कि इस बांध का निर्माण रेणुका जी से कुछ किलोमीटर आगे "ददाहू" नामक स्थान पर हो रहा है। इस बांध को अगस्त 2009 में मंजूरी मिली। जाहिर है, अन्य पर्वतीय स्थानों के बांध की तरह इसे भी भारी विद्रोह का सामना करना पड़ा। इस बांध के निर्माण से 24 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल की एक झील का निर्माण होना है, जिसे सरकार द्वारा ""परशुराम सागर"" नाम देना प्रस्तावित किया गया है। इस परियोजना में 775 हेक्टेयर भूमि के वनों को पूर्णरूपेण समाप्त करना था। इस वनभूमि पर 37 छोटे-छोटे गांवो के लगभग 1300 परिवार आश्रित हैं। उन परिवारों व पंचायतों ने इस बांध का बहुत विरोध किया। सरकार ने एक बार तो इस पर रोक लगा दी, लेकिम कुछ समय बाद जनविकास का बहाना बनाकर जबरन भूमि अधिग्रहण कर लिया। तब से 2010 के बाद यह परियोजना अपने पूरे जोर-शोर पर है।
         इस बांध परियोजना के बारे में एक रोचक बात और बताता हूँ, इस परियोजना पर जितना भी पैसा खर्च होगा, उसका केवल 10 प्रतिशत भाग ही हिमाचल सरकार को वहन करना होगा। आप समझ रहे होंगे कि बाकी का 90 प्रतिशत केंद्र सरकार द्वारा मिलेगा तो आप गलत हैं। 90 प्रतिशत धन दिल्ली सरकार वहन करेगी जी। ऐसा क्यों, तो इसका कारण है इस बांध की बिजली तो बेशक हिमाचल उपयोग करेगा, लेकिन इसका पानी एक नहर द्वारा राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पहुंचाया जाएगा। यही इस परियोजना के विरोध का मुख्य कारण था। मैं फिर से भटक गया, चलिये दोबारा सड़क पर आते हैं।

         तो धीरे-धीरे उस धूल भरे क्षेत्र से हम बाहर निकले। गिरी नदी पर बने बड़े से पल को जैसे ही पार किया तो लगा कि अब असली हिमाचल में प्रवेश किया है। पुल के बाद सड़क कम चौड़ी हो गयी। हम सुबह से कुछ खा-पी ही रहे थे। घर से नाश्ता कर के चले थे। जमटा में चाय- नाश्ता लिया। रेणुका जी में भी पानी पिया, तो अब समय कुछ हल्का होने का था। बाइक को साइड में रोका, ओर थोड़ा ओट में होकर लघुशंका से निवृत हुए। जैसे ही बाइक के पास आये तो क्या गजब का नज़ारा दिखा। कुछ पल के लिए तो मैं स्तब्ध ही रह गया। ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों के सीने को चीर कर नागिन की तरह बलखाती सड़क जब दिखी, तो आंखे खुली ही रह गयी। विश्वास ही नही हुआ कि हम उसी सड़क से आये हैं क्या?? जल्दी से कुछ फोटो खींचे, ओर चल दिये अपने आगे के सफर पर।
यह है वो स्थान, जहां हमने बाइक रोकी थी। आप भी zoom करके सड़क पर चलते वाहनों को देख सकते हैं। अचंभित रह गया था मैं इन दृश्यों को देख कर।

      रास्ता सही बना है। रेणुका जी 672 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और हरिपुरधार 2638 मीटर। दोनों स्थानों के बीच की दूरी 65 किलोमीटर के आसपास है। अगर गणना करें, तो प्रति किलोमीटर height gain कुछ ज्यादा नही है, लेकिन 100 cc splendar बाइक पर 2 लोग, सामान के साथ, बेचारी कितना सहन करेगी। बीच बीच में उसे भी आराम देते रहे और अपने दुखते हुए पिछवाड़े को भी। ऐसा करते करते हम आ गए सँगड़ाह। सँगड़ाह, रेणुका जी व हरिपुरधार के बीच का मुख्य कस्बा है। पहाड़ो के कस्बे हमारे कस्बों जैसे नही होते। 10 घरो के समूह गांव बन जाते हैं और 50 घरों व 10 दुकानों के गांव- कस्बे। सँगड़ाह में हम रुके ओर एक ढाबे पर चले गए। जाते ही तिवारी ने 2 चाय बोल दी। पहले तो मैंने अपना मुँह धोया ओर फिर चाय का कप लेकर मैं बाहर सड़क पर ही आ गया। दुकान के बाहर एक मोची की दुकान पर कुछ लोग बैठे थे। मैं भी बैठ गया चाय पर चर्चा करने। मैंने उनसे चूड़धार जाने का जिक्र किया तो उन सबने मेरी तरफ ऐसे देखा, जैसे pk फ़िल्म में हवलदार आमिर ख़ान की तरफ देखता है। मुझे लगा कि शायद मैं कुछ गलत बोल गया। इससे पहले की मैं अपनी बातों का आत्म-मंथन करता, उनमे से एक बुजुर्ग बोले- बेटा! इस मौसम में चूड़धार पर 15-15 फ़ीट बर्फ होती है। तुम वहाँ मत जाओ, कुछ भी गलत हो सकता है। उन्होंने मुझे ओर भी बहुत सी ऐसी बाते बताई, जिनसे मुझे यात्रा के एक खतरनाक पहलू का ज्ञान हुआ।
रास्ते मे चलते-चलते लिया गया एक स्वयं-चित्र।

        सँगड़ाह में चाय के बाद अब समय हो चला था-आगे बढ़ने का। चाय पीने का एक फायदा तो होता है की आपको स्थानीय लोगो से बात करने का अवसर मिल जाता है और यात्रा के बारे में ऐसी चीजें जानने को मिलती हैं जिनके बारे में आप अनभिज्ञ होते हैं। मुझे भी पता लगा कि सँगड़ाह से दो रास्ते अलग होते हैं एक जो हरिपुरधार जाता है और दूसरा जो  सीधा नौहराधार जाता है। जाने को तो हम सीधे नौहराधार भी जा सकते थे क्योंकि वही से चूड़धार की ट्रैकिंग शुरू होती है, लेकिन मेरे मन में हरिपुरधार दर्शन की इच्छा थी तो हमने बाइक हरिपुरधार की तरफ मोड़ ली। अब रास्ते में रुकावट आनी शुरू हो गई थी, जो गड्ढों के रूप में थी। यह गड्ढे पीछे बैठने वाले व्यक्ति के लिए कीलों का काम करते हैं। खैर, हम भी चलते चले जा रहे थे। जंगल के बीच में से घुमावदार रस्तों पर हमारी बाइक 20 या कभी 30 की स्पीड से आगे बढ़ रही थी। सँगड़ाह से हरिपुरधार लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर है, जब हरिपुरधार 10 किलोमीटर के आसपास रह गया, तब रास्ते में थोड़ी-थोड़ी सी बर्फ मिलनी शुरु हो गई। यह बर्फ सड़क पर तो नहीं थी, लेकिन सड़क के साइड में जो जगह होती है, वहां पर थी। जंगलों की ढलान से फिसल कर यह बर्फ नीचे गिर जाती है। सामान्यतः उस जगह पर, जहां सूरज की धूप या तो नहीं पड़ती या बिल्कुल ही ना के बराबर होती है। मैंने तिवारी को बाइक रोकने के लिए कहा लेकिन उसने नहीं रोकी। अब धीरे-धीरे बर्फ की मात्रा थोड़ी ज्यादा होने लगी थी। ऐसे ही इन नजारों को देखते हुए हम हरिपुरधार पहुंच गए। हरिपुरधार में माता भंगायनी देवी का मंदिर भी मुख्य रास्ते से थोड़ा सा हटकर है। अब हमें दर्शन तो करने ही थे लेकिन यहां फायदा यह है कि आप अपनी बाइक को सीधा मंदिर की सीढ़ियों के पास ही ले जा सकते हैं। हमने भी अपनी बाइक को वहीं दुकान वाले के पास लगाया और प्रसाद लेकर मंदिर की तरफ प्रस्थान कर गए।
सड़क के किनारों पर यूँ मिलती है बर्फ। यह बर्फ जंगल की ढलानों से फिसल कर किनारों पर गिर जाती है।
मौसम ठंडा होता ही है और धूप लगती नही तो कई-कई महीनों तक यूँ ही पड़ी रहती है बर्फ

क्रमशः.......




मनपसन्द स्थान पर लिया गया चित्र। पृष्ठभूमि में सर्पीली सड़क दिखाई दे रही है।


प्रत्येक मोड़ पर आपको ऐसे extra space मिलेंगे, ताकि बड़ी गाड़ी वाले साइड दे सकें या ले सकें।
मेरी पसंदीदा photos में से एक।

एक पहाड़ी घर और सरसों के खेत। ऐसे में यहां सरसों का साग खाने को मिल जाये तो क्या कहने.......

पहले मैं सोच रहा था कि हम हरिपुरधार के पास आ गए हैं। मगर बाद में पता चला कि वो तो सँगड़ाह था।

पहाड़ की चोटी पर जो बस्ती सी दिखाई दे रही है, वही है सँगड़ाह।

सँगड़ाह में जहाँ चाय पी थी, उस ढाबे के पास से लिया गया एक चित्र

बचपन में पढ़ते थे कि पहाड़ो में सीढ़ीदार खेती होती है। ये होते हैं सीढ़ीदार खेत।

सँगड़ाह के बाद रास्ता ओर भी सँकरा हो जाता है और सड़क पर गड्ढे भी आने लग जाते हैं। ऐसे में पिछवाड़े की बैंड सी बज जाती है।

मैं दोबरा जाना चाहूंगा यहाँ।
सिर्फ यह देखने कि जब ये पहाड़ हरे भरे होते हैं तब कैसे लगते हैं।

हरिपुरधार में बना हेलीपैड।
प्रतिवर्ष लगने वाले मेले में यहां हिमाचल के जनप्रतिनिधि शिरकत करते हैं, तो उनकी सुविधा के लिए यहां helipad बनाया गया है।
चलती बाइक पर तो ऐसी ही फ़ोटो आएगी जी।

मोड़ो पर सफेद निशान रात में driving करते हुए संकेतात्मक तोर पर लगाये गए हैं, ताकि दुर्घटना से बचाव हो सके।

सँगड़ाह में स्थानीय व्यक्ति से हिमाचली टोपी लगाकर खींची गई फ़ोटो।



विश्वास नही होता कई बार कि हम इन सड़कों से होकर आए हैं।



चल न चलते-चलते पहुंचे फलक पे।


इस यात्रा के पिछले भागो को आप निम्नलिखित links पर click करके पढ़ सकते हैं:-



Friday 12 January 2018

जीत कर भी मिली हार..... यही है चूड़धार।..... भाग-2

                         श्री रेणुका जी झील व इससे सम्बंधित इतिहास



नमस्कार मित्रों,


सबसे पहले तो आप सबसे क्षमा मांगता हूं कि पिछले शुक्रवार की जगह मुझे अपना यात्रा लेख आज शुक्रवार को प्रकाशित करना पड़ा। कारण भी आपको बता देता हूं, हमारे  गांव सीवन में पिछले 7 दिनों से ""राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ"" का ""प्राथमिक शिक्षा वर्ग"" लगा हुआ था, तो उसमें बौद्धिक विभाग व भोजन वितरण की जिम्मेवारी मेरे पास ही थी। वर्ग के आरम्भ से लेकर अंत तक पिछले 7 दिनों से मैं वहीं वर्ग में ही रह रहा था, इस कारण से इतना समय ही नहीं मिला कि मैं लेख का भाग प्रकाशित कर सकूं। लेकिन कहते हैं कि ""देर आए दुरुस्त आए""। इसी कहावत को सार्थक करते हुए हाजिर हूं अपनी चूड़धार यात्रा का दूसरा भाग लेकर।

                   पिछले भाग में आपने पढ़ा कि कसे हम अम्बाला से रेणुका जी तक पहुंचे। इस भाग में आपको हिमाचल की सबसे बड़ी झील रेणुका जी झील व इसका इतिहास पढ़ने को मिलेगा।
यह है झील के किनारे पर बना माँ रेणुका जी का मंदिर।

      बाइक को जब झील की तरफ जाने वाले मार्ग की ओर मोड़ा, तो लगभग सवा किलोमीटर चलने के पश्चात एक लोहे का गेट आ गया। इस गेट से आगे बाइक व कार आदि लेकर जाना मना है। हमने भी नियमों का पालन किया और अपनी बाइक वहीं पास में बनी एक parking में लगा दी। पार्किंग में देखा तो जो बाइकर्स का ग्रुप मुझे झरने वाले मंदिर के पास मिला था, वही ग्रुप अपने मोटरसाइकिलों से अपने बैग उतार रहा था। एक बार उनसे फिर राम-राम हुई और हम चल दिए रेणुका जी झील की तरफ। उस गेट के पास से ही आप रेणुका जी झील को देख सकते हैं। झील के चारों तरफ लगभग 3 फुट की एक पत्थर की दीवार बना रखी है, जो सुरक्षा नजरिए से तो जरूरी है ही, साथ में जब झील का जलस्तर थोड़ा बढ़ जाता है तो उस पानी को बाहर आने से भी वह दीवार रोकती है। जैसे ही गेट को पार करते हैं, वैसे ही झील के किनारे पर रेणुका जी का एक छोटा सा मंदिर बना नजर आता है। इस मन्दिर में भगवान परशुराम की माता रेणुका जी की आदम-कद की मूर्ति स्थापित है। मन्दिर के चारो तरफ लोहे की जालियाँ लगाई गई हैं। इस मंदिर में मां रेणुका की जो मूर्ति है, उसके चारों तरफ शीशे का एक ढांचा बनाया गया है। मेरे हिसाब से ऐसा करने का कारण बंदरों से मूर्ति की सुरक्षा है, क्योंकि झील के आसपास बन्दर बहुतायत पाए जाते हैं।
बन्दरो से बचाव के लिए मन्दिर के चारों ओर लोहे की जालियाँ व मूर्ति के चारो तरफ शीशे के ढांचा स्थापित किया गया है।

                       मुझे पहले-पहल तो लगा कि यह तो मां रेणुका की एक प्रतीकात्मक मूर्ति है, असली मंदिर तो वही है जो झील के किनारे पर दिखाई देता है। तो दूर से ही नमस्कार करके हम उस तरफ आने लगे, जहां झील के किनारे पर आश्रम बना हुआ है। मैं झील के साथ-साथ उस दीवार से सटकर चल रहा था, तो झील के जल में देखने पर पाया की झील में बड़ी-बड़ी मछलियां काफी मात्रा में है। इस झील में मछलियों का शिकार गैरकानूनी है। ऐसी सूचना करने के लिए एक नोटिस बोर्ड भी प्रशासन की तरफ से लगाया गया है। शायद यही कारण है कि झील में इतनी बड़ी मछलियां पाई जाती हों। कुछ लोग तो मछलियों को आते की गोलियाँ भी खिला रहे थे। चलिए, जब तक हम झील के किनारे पर बने आश्रम तक पहुंचते हैं, तब तक आपको रेणुका जी झील का थोड़ा इतिहास ही बता दिया जाए:-


रेणुका जी झील को हिमाचल प्रदेश की सबसे बड़ी झील होने का गौरव प्राप्त है। यह झील मूलतः हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में स्थित है, व इसकी समुद्रतल से ऊंचाई 672 मीटर है। अगर आप इस झील के चारों तरफ चक्कर काटते हैं, तो लगभग आप सवा 3 किलोमीटर चल पाएंगे।  3214 मीटर की परिधि ही इसे हिमाचल की सबसे बड़ी झील बनाती है। रेणुका जी झील हिमाचल के लोगों के लिए गहरी आस्था का केंद्र है। इस झील का धार्मिक महत्व को थोड़ा सा वर्णन मैं आपके समक्ष करता हूं।
             यह तो सबको ज्ञात ही है कि भगवान परशुराम विष्णु जी के छठे अवतार थे और उन्होंने मां रेणुका के गर्भ से जन्म लिया था। पुत्र प्राप्ति के लिए माँ रेणुका और ऋषि जमदग्नि ने इसी झील के किनारे तपस्या की थी। कालांतर में इस झील को ""राम सरोवर"" के नाम से जाना जाता था। आप सब को यह भी ज्ञात है कि ऋषि जमदग्नि के पास कामधेनु नाम की एक गाय होती थी, जो सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाली थी। सहस्त्रबाहु अर्जुन नाम का एक राजा एक बार वन में शिकार करने के लिए आया, तो काफी भूख लगी होने के कारण वह ऋषि जमदग्नि की कुटिया में भोजन की इच्छा से आया। राजाओं के साथ उनकी फौज का लाव लश्कर तो होता ही है परंतु कामधेनु के प्रताप से ऋषि जमदग्नि ने राजा और पूरी फौज को मनचाहा भोजन खिलाया। इसने राजा के मन मे सन्देह पैदा कर दिया कि वन में रहने वाले सन्यासी के पास ऐसी भांति भांति की खाद्य वस्तुएं कैसे आयी?? जब राजा सहस्त्रार्जुन ने ऋषि जमदग्नि से इसके पीछे का भेद जाना तो ऋषि जमदग्नि ने उन्हें कामधेनु की पूरी कहानी सुना दी। राजा को लगा कि वन में रहने वाले ऋषि को कामधेनु से क्या प्रयोजन, यह कामधेनु तो उसके महल की शोभा बढ़ाने के लिए उसके पास होनी चाहिए तो राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन ने ऋषि जमदग्नि से उस गाय को मांगा, लेकिन क्योंकि यह कामधेनु गाय खुद ब्रह्मा जी द्वारा ऋषि जमदग्नि को दी गई थी, और ऋषि जमदग्नि गाय से आम जनता को लाभान्वित करते थे, तो उन्होंने राधा सहस्त्रबाहु अर्जुन की मंशा जान कर उन्हें यह गाय देने से मना कर दिया।

              ऋषि जमदग्नि के इस व्यवहार से राजा कुपित हो गया व सहस्त्रबाहु अर्जुन को क्रोध आ गया। उन्होंने बलपूर्वक गाय को ले जाने का प्रयास किया। जब ऋषि जमदग्नि ने इसका विरोध किया, तो उन्होंने राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन ने अपनी तलवार से ऋषि जमदग्नि पर 21 प्रहार किए। फलस्वरूप ऋषि जमदग्नि की मृत्यु हो गई। अपने पति की मृत्यु हुआ जान मां रेणुका अपने सतीत्व की रक्षा करने के लिए उस झील में कूद गई और हमेशा के लिए जल समाधि ले ली। उस समय भगवान परशुराम महेंद्र पर्वत पर तपस्या रहे थे। जब अपनी ज्ञान दृष्टि से उन्हें इस बात का पता लगा तो वह तुरंत झील के पास आए और सारी बात का कारण जानकर उन्होंने राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन का वध कर दिया। इसके पश्चात परशुराम जी ने माँ रेणुका से विनती की कि वह जल से बाहर आ जाएं, लेकिन मां रेणुका ने उनकी विनती ठुकरा दी। भगवान परशुराम जी के बार बार आग्रह करने पर मा रेणुका ने उन्हें साल में केवल एक बार मिलने आने का वचन दिया। कहते हैं कि इसके बाद ही इस झील का नाम रेणुका झील पड़ा। उसी समय इस झील की आकृति भी एक नारी के शरीर के समान हो गई।


ऊंचाई से देखने पर कुछ ऐसी दिखती है रेणुका जी झील। (फोटो मेरे द्वारा लिया गया नहीं है गूगल बाबा से साभार)



                  वर्तमान में इसी याद में कार्तिक दशमी में से 1 दिन पहले एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में हिमाचल के स्थान-स्थान से श्रद्धालु इसके साक्षी बनते हैं। इस पांच दिवसीय मेले में लाखों श्रद्धालु रेणुका झील झील में स्नान करने आते हैं। इस स्थान की मान्यता और जन लोकप्रियता का अंदाज़ा आप इस बात से ही लगा सकते हैं कि खुद हिमाचल के मुख्यमंत्री व राज्यपाल इस मेले के उद्घाटन और समापन में शरीक होते हैं।

         रेणुका जी एक आसान पहुंच वाला स्थान है। 2 या 3 दिन की छुट्टियों में कोई भी व्यक्ति रेणुका दी जा सकता है रेणुका जी चारों तरफ से सड़क मार्गों से जुड़ा हुआ है जहां तक जाने के लिए समय-समय पर बसों की व्यवस्था है। अम्बाला से रेणुका जी की दूरी सड़क मार्ग से 126 किलोमीटर है। यहां से जाते हुए जब आप ""काला अम्ब"" नामक स्थान से नाहन की तरफ मुड़ते हैं तो वहां से बाईं तरफ एक मोड़ है, जहां से आप त्रिलोकपुर जा सकते हो। त्रिलोकपुर में मा बाला सुंदरी का भव्य व प्राचीन मंदिर है, जो बहुत से लोगो की कुलदेवी हैं। पौंटा साहिब से रेणुका जी की दूरी 62 किलोमीटर है। दिल्ली व पंजाब आदि से आने वाले यात्रिओ को अम्बाला होकर ही आना बेहतर रहेगा। मेरी तरफ से यात्रिओ को एक मुफ्त की सलाह है कि आप गर्मियों में या मानसून के बाद यहां की यात्रा करे। हरे भरे पहाड़ मन को वो सुकून प्रदान करेंगे, जिसकी आप कल्पना मात्र ही कर सकते हैं।
मई से सितम्बर-अक्टूबर तक कुछ ऐसे होते हैं रेणुका जी के रास्ते।(फ़ोटो:- google बाबा से साभार)

ये मनोभावन दृश्य दिखते हैं उस समय में।

         आज के इस लेख को यहीं समाप्त करता हूं और हां जाते-जाते एक बात और याद आई कि मेरे स्वर्गवासी दादाजी जिनकी भगवान परशुराम में अगाध श्रद्धा थी और वो असंख्य बार रेणुका जी जा चुके थे, वो बताते थे कि रेणुका जी झील की गहराई को आज तक कोई नहीं माप सका है। वह बताते थे कि रेणुका जी झील के किनारे एक बाबा रहता था। उस बाबा ने 12 साल तक अपने हाथों से बाण बांटा, यानी कि 12 साल तक उसने रस्सी बनाई। इसके पश्चात वह एक नाव में सवार होकर उस रस्सी को साथ में लेकर झील के बीचो-बीच गया और वहां रस्सी के एक सिरे पर उसने एक भार बाँधा और उसे पानी में गिरा दिया। प्रत्यक्षदर्शी ऐसा कहते हैं कि बाबा की बनाई हुई उस रस्सी का जो बहुत बड़ा गट्ठा था, वह पूरा का पूरा खत्म हो गया, लेकिन उसका पानी में जाना नहीं रुका। तभी अचानक से जल में से एक लहरा उठी और बाबा, रस्सी और उस किश्ती तीनों को अपने अंदर समाहित कर गई। इसके बाद ना तो कभी उस बाबा की लाश ऊपर आई और ना ही वह किश्ती.......

क्रमशः
झील के किनारे पर लिया गया स्वयम-चित्र। परिदृश्य में बड़ी मछलियां साफ देखी जा सकती हैं।
झील में स्नान का मेरा पूरा-पूरा मन था। लेकिन हमें हरिपुरधार पहुंचने की जल्दी थी व साथ मे कपड़े भी बहुत डाल रखे थे, इस कारण से नहाने का प्रोग्राम स्थगित करना पड़ा।
सिर्फ मुँह हाथ धोए तो ही पानी की शीतलता का अंदाज़ा लग गया था।




इस यात्रा का ये मेरा पसन्दीदा चित्र है।

झील का पानी बर्फ की तरह ठंडा था।

मुझे ही पता है इस फोटो को खिंचवाने को लिए मुझे कितने पापड़ बेलने पड़े थे। (ज्ञात रहे तिवारी को फ़ोटो खींचना व खिंचवाना पसन्द नही है)

यह है झील का पानी। पानी इतना साफ है कि झील के तल को देखा जा सकता है। लगता तो ऐसे है की इसकी गहराई ज्यादा नही है, लेकिन लोककथाएँ कुछ और ही बयान करती हैं।