Don’t listen to stories, tell the stories

Tuesday 25 July 2017

श्री शीशगंज साहब गुरुद्वारे के दर्शन......ओर.....दिल्ली से आगरा का सफर.....

सभी को मेरी ओर से प्यार व आदर भरा नमस्कार,
     
        आज अपने ब्लॉग की दूसरी पोस्ट लिखने का जो साहस हुआ है, उसमे श्रीमान विकास नारदा जी, श्री प्रतीक गांधी जी , श्री अभयानन्द सिन्हा जी , श्री जितेंद्र जी व अन्य सभी अनुभवी लेखको का बहुत योगदान है। आपने मेरे पहले लेख को पढा, सराहा, गलतियों को दुबारा न दोहराउँ, इसके बारे में निर्देश दिए। बस यहीं से दूसरा लेख लिखने की हिम्मत हुई और अब यह आपके समक्ष है।


             13 अप्रैल 2012 को जब श्री शीशगंज साहब गुरुद्वारे के हॉल में सोए तो सुबह जल्दी ही नींद खुल गयी। इसके 2 कारण थे- पहला, आज तक कभी धरती पर बिना गद्दे के न सोने का अनुभव , व दूसरा, सुबह की अरदास का मधुर स्वर। जब प्रभात की शुरुआत ही कानों में मधुर कीर्तन की आवाज़ से हुई, तो मन मे यह विश्वास अवश्य जागृत हुआ कि अक्षय! तेरा आज का दिन तो कुछ स्पेशल ही होगा। में उठा, मोहित को उठाया और नहाने चल दिए। सामूहिक स्नानागार में नहाए ओर दर्शन करने के लिये गुरद्वारे के मुख्य हॉल में चल दिये।


                    जैसे ही मेन हॉल में पहुंचे तो बस....... आज भी आंखों में बसा हुआ है वो दृश्य। रागी जत्थे का वह मधुर कीर्तन, ध्यानमग्न बैठे हुए भक्त, रोशनी में नहाया हुआ श्री दरबार साहिब....... आंखों और दिल दोनों को क्या सुकून मिल रहा था उस समय..... उसे शब्दों में बखान करना मुश्किल है। कोई कवि हो तो कर भी दे, पर एक किसान - पुत्र कैसे करे? खैर, 16 वर्ष की अल्पायु में घर से 300 किलोमीटर दूर किसी अन्य स्थान पर सुबह सवेरे ऐसा भव्य दृश्य देखने को मिले, तो ऐसा महसूस होता है मानो कोई बाज आज पहली उड़ान भर कर स्वतंत्र आकाश में विचरण कर रहा हो। तो जी, पवित्र गुरु ग्रन्थ साहिब के दर्शन करके, गुरु महाराज जी की शहादत को प्रणाम करके जैसे ही बाहर निकले तो अलग की नजारा देखने को मिला। आप लोगो ने सब्जी, पूरी, खीर-हलवा आदि के भंडारे तो बहुत देखे होंगे, पर यकीन मानिए उस समय गुरुद्वारा परिसर में कुछ भक्त sandwich बांट रहे थे। बस फिर क्या था, 2-2 sandwich निपटाए, लॉकर से समान निकाला ओर चल दिये चाँदनी चौक में tour & travels agency की ओर।
ये है श्री शीशगंज साहिब। जब गुरु तेग बहादुर जी को मुगलो ने मृत्यदंड दिया था, तो अपना शीश कटवा कर उन्होंने यही शहीदी दी थी। धन्य है वो योद्धा जिन्होंने शीश कटवा लिये, पर अपने धर्म से विमुख नही हुए। साष्टांग प्रणाम ""हिन्द की चादर"" गुरु तेग बहादुर जी को।

              अरे हाँ, में आपको बताना भूल गया, कल जब 9:30 बजे गुरुद्वारा साहिब पहुंचे, तो किसी ने कहा कि आज ही ताजमहल के लिए बस बुक करलो तो रात को 11 बजे जाकर सुबह की बस की 2 टिकट बनवा ली। प्राइवेट बस थी। आने जाने की टिकट के बिना मान ही नही रहा था। बड़ी मुश्किल से उसे मनाया ओर उसने बताया कि बस सुबह 6 बजे चल पड़ेगी, देर मत कर देना।

                    उस बेचारे को क्या पता, पंछी अपनी पहली उड़ान पर थे लर अगर पहली उड़ान में भी देरी कर दे, तो भविष्य में क्या खाक उड़ेगा। 6 बजे का समय था कर हमने जाकर धरना दे दिया 5:15 पर।  लेकिन ढाक के 3 पात वाली बात हो गयी, पहली उड़ान हम उड़ रहे थे, बाकी सब नही। 8:30 का समय हो गया, तब जाकर ड्राइवर में रेस पर पैर रखा। बस अपने वही दिल्ली वाले स्टाइल से चल रही थी। हालांकि, में बसों में सोता नही हूँ, पर कल रात को नींद बहुत कम आयी थी, अतः मोहित ओर मैंने 6 घण्टे के सफर में जमकर नींद का लुत्फ उठाया। जी हां, 200 k.m. के सफर में 6 घण्टे। बस बीच मे ढाबे पर रुकी थी, वहाँ नाश्ता किया और आकर फिर सो गए।

इस ढाबे में बस वाले ने नाश्ता करने के लिये बस रोकी थी। और हमने यहीं पेट पूजा की थी।

Monday 24 July 2017

चले थे कुरुक्षेत्र...... पहुंच गए मथुरा।।।।

सबसे पहले आप सभी को वन्देमातरम।

आज जहाँ देश के 14वें राष्ट्रपति माननीय श्री रामनाथ जी कोविंद शपथ ग्रहण कर रहे हैं.... वहीं उनके कार्यकाल के पहले दिन से में भी अपने यात्रा वृत्तांत का शंखनाद कर रहा हूँ। जिस यात्रा के बारे में मैं आपको बताने जा रहा हूँ, यह जीवन को एक अलग दिशा में मोड़ने वाली यात्रा साबित हुई। ये कुछ दिन ऐसे बीते जहाँ से घूमने का चस्का ऐसा लगा, जैसे किसी अल्हड़ के मन पर प्रेम की छाप पड़ जाती है, कितना भी जोर लगा लीजिये छूटेगी नही।


                          चलिये बहुत हुआ अपना बखान। तो हुआ यूं कि आज से 5 वर्ष पूर्व जब +2 की परीक्षा दे चुका था तो अपने गाँव चला आया। कुछ दिनों के बाद अभिन्न मित्र मोहित जैन का गाँव मे आना हुआ, वो पट्ठा अम्बाला से ही सोचकर चला था कि कुछ दिन घूम कर ही आना है। खैर, उसने बहुतेरा जोर लगाया कि आगरा घूमने चलेंगे, लेकिन मन ने आज्ञा नही दी। मैंने उसे कुरुक्षेत्र भृमण करने की बोली तो वो मां गया।तो मैंने भी सोच लिया कि मोहित जी तो कुरुक्षेत्र से अम्बाला चले जायेंगे, मैं भी 2-3 दिन अपनी बुआ जी के घर लगा आऊंगा। तो जी नियत तिथि को में भी घर से 2 जोड़ी कपड़े लेकर चल दिया।


                चल तो पड़े लेकिन मंजिल बदल गयी


जाते जाते भी मोहित मुझसे आगरा चलने के आग्रह करता रहा मगर मेरा मन मुझे आज्ञा नही दे रहा था, दे भी कैसे उम्र क्या थी उस समय मात्र 16 वर्ष। ओर जेब मे पैसे कितने .... शायद 600 भी नही होंगे। कुरुक्षेत्र में परिवार सहित तो बहुत बार आ चुका था, अतः दर्शनीय स्थलों का मुझे पहले से ही अनुमान था। तो सर्वप्रथम धरोहर, बिरला मन्दिर, मशहूर ""ब्रह्म-सरोवर"", काली कमली मन्दिर व 1300 वर्ष प्राचीन श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर के दर्शन किये। ततपश्चात ऑटो लेकर माँ सती के 51 शक्तिपीठों में से एक श्री भद्रकाली मन्दिर में गए। मन्दिर के बिल्कुल सामने ही जिंदल पार्क है। वहाँ मस्ती मारी व फिर लगभग 200 मीटर दूर शेख चिल्ली के मकबरे में गए।


                              टिकट लेकर अंदर घूमे, चित्र खीचें। अब तक मोहित मुझे सैकड़ो दफा आगरा चलने के लिये कह चुका था। मकबरे के मैदान में हरी घास पर लेटे लेते भी उसने यही बात बार बार दोहराई, ओर फिर दोस्ती का हवाला देने लगा। बस पण्डित जी का दिल पसीज गया और मैंने घर पर फ़ोन लगाकर डरते डरते आगरा जाने की आज्ञा माँगी। आश्चर्य, आज भी सोच कर अचम्भा होता है कि घर वालो ने सीधा ये पूछा -- कितने दिन लगेंगे? बस फिर क्या था , बहला फुसला कर मना लिया घर वालो को ओर चल दिये स्टेशन की ओर।। क्यों?? अरे भाई,, अब दिल्ली पैदल तो जा नही सकते और बस जितना किराया नही था तो दोपहर के भोजन के लिये कोल्ड ड्रिंक व चिप्स आदि लिये ओर बैठ गए टिकट लेकर दिल्ली की रेल में।

रात 9: 30 के करीब चांदनी चौक पहुंच कर श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी के शहीदी स्थल "" गुरुद्वारा श्री शीशगंज साहिब"" के दर्शन किये। रात्रि विश्राम के लिये गुरुद्वारे के हॉल में बिस्तर लिये, ओर आगामी दिनों के बारे में मीठे- मीठे स्वप्नों की दुनिया मे खो गए।
कुरुक्षेत्र के पौराणिक #ब्रह्म सरोवर।  पुराणों के अनुसार, यह सरोवर ब्रह्म जी के आंसू गिरने में कारण बना था। प्रत्येक सूर्यग्रहण पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहाँ पवित्र स्नान हेतु उपस्थित होते हैं।


यह चित्र है कुरुक्षेत्र के ब्रह्मसरोवर के पास स्थित "थीम पार्क"" का। ख़ासियत है कि इसमें जो रथ दिखाई दे रहा है, विशुद्ध रूप से कांसे का बना है ओर 8000 किलोग्राम से भी ज्यादा वजनी है।


hahahajha.... कितना बदल गया इंसान....... इन 5 साल पुरानी फ़ोटो को देखता हूँ तो चेहरे पर मुस्कान आये बिना नही रहती।

मेरा सूक्ष्म परिचय

सर्वप्रथम आप सभी को मेरी ओर से ''वन्दे मातरम''।।


में अक्षय शर्मा, गाँव- सीवन, जिला- कैथल(हरियाणा) का निवासी हूँ। यूँ तो M.Com 2nd year का विद्यार्थी हूँ पर समय निकाल कर थोड़ी बहुत घुमक्कड़ी भी कर ही लेता हूँ।

आज पहली बार इस ब्लॉग का निर्माण व उपयोग किया है। कल्दी ही अपने यात्रा वृत्तांत भी लिखूँगा। आशा करत हूँ आप सब लोग पसंद करेंगे।

तब तक के लिये जय श्री राम।

           ।। वन्देमातरम।।।