Don’t listen to stories, tell the stories

Monday 24 July 2017

चले थे कुरुक्षेत्र...... पहुंच गए मथुरा।।।।

सबसे पहले आप सभी को वन्देमातरम।

आज जहाँ देश के 14वें राष्ट्रपति माननीय श्री रामनाथ जी कोविंद शपथ ग्रहण कर रहे हैं.... वहीं उनके कार्यकाल के पहले दिन से में भी अपने यात्रा वृत्तांत का शंखनाद कर रहा हूँ। जिस यात्रा के बारे में मैं आपको बताने जा रहा हूँ, यह जीवन को एक अलग दिशा में मोड़ने वाली यात्रा साबित हुई। ये कुछ दिन ऐसे बीते जहाँ से घूमने का चस्का ऐसा लगा, जैसे किसी अल्हड़ के मन पर प्रेम की छाप पड़ जाती है, कितना भी जोर लगा लीजिये छूटेगी नही।


                          चलिये बहुत हुआ अपना बखान। तो हुआ यूं कि आज से 5 वर्ष पूर्व जब +2 की परीक्षा दे चुका था तो अपने गाँव चला आया। कुछ दिनों के बाद अभिन्न मित्र मोहित जैन का गाँव मे आना हुआ, वो पट्ठा अम्बाला से ही सोचकर चला था कि कुछ दिन घूम कर ही आना है। खैर, उसने बहुतेरा जोर लगाया कि आगरा घूमने चलेंगे, लेकिन मन ने आज्ञा नही दी। मैंने उसे कुरुक्षेत्र भृमण करने की बोली तो वो मां गया।तो मैंने भी सोच लिया कि मोहित जी तो कुरुक्षेत्र से अम्बाला चले जायेंगे, मैं भी 2-3 दिन अपनी बुआ जी के घर लगा आऊंगा। तो जी नियत तिथि को में भी घर से 2 जोड़ी कपड़े लेकर चल दिया।


                चल तो पड़े लेकिन मंजिल बदल गयी


जाते जाते भी मोहित मुझसे आगरा चलने के आग्रह करता रहा मगर मेरा मन मुझे आज्ञा नही दे रहा था, दे भी कैसे उम्र क्या थी उस समय मात्र 16 वर्ष। ओर जेब मे पैसे कितने .... शायद 600 भी नही होंगे। कुरुक्षेत्र में परिवार सहित तो बहुत बार आ चुका था, अतः दर्शनीय स्थलों का मुझे पहले से ही अनुमान था। तो सर्वप्रथम धरोहर, बिरला मन्दिर, मशहूर ""ब्रह्म-सरोवर"", काली कमली मन्दिर व 1300 वर्ष प्राचीन श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर के दर्शन किये। ततपश्चात ऑटो लेकर माँ सती के 51 शक्तिपीठों में से एक श्री भद्रकाली मन्दिर में गए। मन्दिर के बिल्कुल सामने ही जिंदल पार्क है। वहाँ मस्ती मारी व फिर लगभग 200 मीटर दूर शेख चिल्ली के मकबरे में गए।


                              टिकट लेकर अंदर घूमे, चित्र खीचें। अब तक मोहित मुझे सैकड़ो दफा आगरा चलने के लिये कह चुका था। मकबरे के मैदान में हरी घास पर लेटे लेते भी उसने यही बात बार बार दोहराई, ओर फिर दोस्ती का हवाला देने लगा। बस पण्डित जी का दिल पसीज गया और मैंने घर पर फ़ोन लगाकर डरते डरते आगरा जाने की आज्ञा माँगी। आश्चर्य, आज भी सोच कर अचम्भा होता है कि घर वालो ने सीधा ये पूछा -- कितने दिन लगेंगे? बस फिर क्या था , बहला फुसला कर मना लिया घर वालो को ओर चल दिये स्टेशन की ओर।। क्यों?? अरे भाई,, अब दिल्ली पैदल तो जा नही सकते और बस जितना किराया नही था तो दोपहर के भोजन के लिये कोल्ड ड्रिंक व चिप्स आदि लिये ओर बैठ गए टिकट लेकर दिल्ली की रेल में।

रात 9: 30 के करीब चांदनी चौक पहुंच कर श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी के शहीदी स्थल "" गुरुद्वारा श्री शीशगंज साहिब"" के दर्शन किये। रात्रि विश्राम के लिये गुरुद्वारे के हॉल में बिस्तर लिये, ओर आगामी दिनों के बारे में मीठे- मीठे स्वप्नों की दुनिया मे खो गए।
कुरुक्षेत्र के पौराणिक #ब्रह्म सरोवर।  पुराणों के अनुसार, यह सरोवर ब्रह्म जी के आंसू गिरने में कारण बना था। प्रत्येक सूर्यग्रहण पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहाँ पवित्र स्नान हेतु उपस्थित होते हैं।


यह चित्र है कुरुक्षेत्र के ब्रह्मसरोवर के पास स्थित "थीम पार्क"" का। ख़ासियत है कि इसमें जो रथ दिखाई दे रहा है, विशुद्ध रूप से कांसे का बना है ओर 8000 किलोग्राम से भी ज्यादा वजनी है।


hahahajha.... कितना बदल गया इंसान....... इन 5 साल पुरानी फ़ोटो को देखता हूँ तो चेहरे पर मुस्कान आये बिना नही रहती।

6 comments:

  1. badhiya vivran

    rahichaltaja.blogspot.com

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद श्रीमान सिन्हा जी।। आप जैसे अनुभवियों से ही सीखा है जी

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  2. घुमक्कड़ी अक्सर स्थानों के बिना प्लान की बहुत अछि होती है

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    1. बिल्कुल सही कहा प्रतीक भाई सहब। अभी तो यात्राओ की शुरुआत है। आगे आगे देखते जाइये बस

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  3. Bahut achha laga aapki yatra vivran padhkar, saath hi aapne jankari bhi bahut di hai.
    Ummid hai aap baaki yatra ka vivran bhi jaldi hi bhejenge.

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    1. जी हां। जीतेंदर जी, बाकी सभी स्मृतियां दिमाग मे तो घूम ही रही है, बस उन्हें लिखित रूप देना बाकी है।

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