Don’t listen to stories, tell the stories

Thursday 21 September 2017

जनवरी में वैष्णो देवी यात्रा..... भाग-1

सभी को नमस्कार।
आप सभी ने मेरी रचनाओ को जो मान-सम्मान प्रदान किया है, उसके लिये मैं आपका बहुत बहुत आभारी हूँ। जैसा कि मैने आपको पहले भी कहा था कि वर्ष 2017 ने मेरे पैरों में घुमक्कड़ी के पहिये लगा दिए। यह वर्ष मेरे जीवन मे यात्राओं का वर्ष सिद्ध हुआ। 2017 में अब तक मैं जितनी यात्राएँ कर चुका हूँ, उतनी तो शायद अपने जीवन मे भी कभी नही की। उम्मीद है आगे भी यात्राएँ चली ही रहेंगी।

चलिये अब आप सब को अवगत करवा देता हूँ, 2017 की मेरी पहली यात्रा से जो हुई माँ वैष्णो देवी के पावन दरबार दर्शन से। ये माँ का आशीर्वाद ही रहा कि उन्होंने 2017 की घुमक्कड़ी में वो रंग लगाया, वो रंग लगाया जो अब तक नही छूटा। चलिये आज पहले नवरात्रि पर बात करते हैं माँ के दरबार की यात्रा की।

हुआ यूँ कि पिछले डेढ़ साल से कभी हरियाणा के बाहर नही गया था। जितनी भी यात्राएं हुई, वह सब हरियाणा में ही हुई । उस समय दिसंबर में मैं बैंक के पेपरों की तैयारी कर रहा था, तो मैंने अपने मन में ही अर्जी लगाई कि हे मां! मेरा पेपर अच्छा हो तो मैं तेरे दरबार में आऊं (हालांकि मैं मन्नत मांगता नहीं हूं, पर घर वालो को बहकाने के लिये यह जरूरी था)।1 जनवरी को मेरा पेपर था और 5 जनवरी को मैं जाने की सोच रहा था। मेरे साथ मेरा पड़ोसी, मेरा भाई और मेरा दोस्त (वैसे तीनों एक ही हैं), उसका भी कार्यक्रम बना। मेरा पेपर अंबाला में था और आपको पता ही है कि अंबाला के पास लालड़ू में मेरे चाचा जी भी रहते हैं, तो 1 तारीख से 5 तक मैं उनके पास ही रहा।

5 तारीख को हेमकुंट एक्सप्रेस नाम की एक ट्रेन जो 9:30 बजे अंबाला स्टेशन पर जम्मू जाने के लिए मिलती है, उसकी टिकट की तैयारी में मैं लग गया। अब क्योंकि देवांशु का यह पहला कार्यक्रम था तो सारी जिम्मेदारी मेरे ही ऊपर थी, पर हमें स्लीपर श्रेणी का कन्फर्म टिकट नहीं मिला जिस कारण मैंने स्लीपर क्लास के टिकट बुक नहीं किए। अंत में फैसला हुआ कि जनरल श्रेणी में ही जाया जाएगा। नियत तिथि पर तय समय पर देवांशु अंबाला स्टेशन पहुंच गया और मैं भी। उस समय रात के 8:00 बजे थे और जल्दी- जल्दी में हम में से कोई भी रात का खाना ना तो खाकर आया था और ना ही लेकर। जाहिर है कि पूरी रात के सफर में भूख तो लगनी ही है तो हम स्टेशन के बाहर गए और 40 रुपए प्लेट के हिसाब से रात का भोजन किया। उसके पश्चात ट्रेन की प्रतीक्षा में हम टिकट लेकर बैठ गए।


 तय समय से 10 मिनट बाद हेमकुंड एक्सप्रेस छुक-छुक करती हुई आई। सामान्य श्रेणी के डिब्बों की क्या हालत होती है, यह सब मुझसे बेहतर आप जानते हैं तो धक्का-मुक्की करके हम चढ़ ही गए। मुझे सबसे गंदी बात लगती है कि तीन लोग नीचे खड़े रहेंगे पर जो लोग ऊपर की बर्थ पर अपना डेरा जमाए लेटे रहते हैं वह उन्हें बैठने की जगह देने में भी ऐसा मुंह बनाते हैं मानो अंग्रेजो ने उन्हें रायबहादुर की उपाधि दी रखी हो और हमने वह मांग ली। खैर किसी तरह लड़-झगड़ कर मैं तो ऊपर की बर्थ पर बैठ गया पर देवांशु को सीट नहीं मिली। लुधियाना जाकर नीचे की बर्थ की 3 सीट खाली हुई, तब जाकर वह बैठ पाया।

 रेल में रात का सफर कोई बहुत अच्छा नहीं रहता और साधारण श्रेणी के डिब्बे में हो तो बिल्कुल भी नहीं। अंधेरी रात हो, ट्रेन का सफर और उस पर भी खिड़की वाली सीट हो। खिड़की की दरार से ठंडी ठंडी बयारों के झोंके लगते हो। ये सब बाकी समय मे तो बहुत अच्छा लग सकता है, पर शायद जनवरी की भयंकर ठंडी रातो में ऐसा सफर किसी को नही भाता होगा।उस रात को मुझे राही मासूम रज़ा साहब का एक शेर याद आ गया-


इस सफर में नींद ऐसी खो गयी
हम तो न सोये, रात थक कर सो गयी।


खैर, मर खप कर हम किसी तरह (कभी सोए कभी जागे)  पर 6:00 बजे के आसपास कटरा पहुंच गए। सर्दियों में तो सुबह के 6 बजे भी ऐसा लगता है मानो रात के 2 बजे हों। कटरा स्टेशन पर (जो अभी नया बना है) ), मैं तो वहां जा चुका था पर दिवांशु कभी वहां नहीं गया था तो वो रात के अंधेरे में जगमगाते कटरा स्टेशन पड़ अपने फोटो लेने लगा। वहां उसके चित्र लेने का फायदा यह हुआ कि कुछ चित्र मैंने अपने भी खिंचवाए।  फिर रेलवे स्टेशन से फोटो आदि लेकर हमने एक ऑटो किया और कटरा के मुख्य बाजार में पहुंच गए। वहां से मां वैष्णो देवी के दरबार का बहुत ही सुंदर दृश्य दिखाई दे रहा था।

 क्योंकि मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक हूं और कटरा में संघ के एक अनुशासित संगठन द्वारा एक धर्मशाला टाइप का एक सस्ता सा होटल चलाया जा रहा है। मुझे किसी ने बताया था तो मैं सीधा ""वीर भवन"" में ही पहुंचा। वीर भवन जाकर ₹200 के हिसाब से एक कमरा लिया और अपना सामान पटक कर बेड पर छलाँग मार दी। रात को अच्छी नींद नहीं आई थी और आज भी पूरी यात्रा करनी थी तो थोड़ी देर कमर सीधी करने की सोची और लेट गए।
     
          मित्रों आपकी वही जानी पहचानी शिकायत कि मैं प्राकृतिक दृश्यों के फोटो नहीं डालता, इस भाग में भी रहने वाली है। परंतु केवल इस यात्रा के लिये मैं माफी चाहता हूं। वैष्णो देवी यात्रा के बाद की जितनी भी यात्राएं मैं लिखूंगा उनमें आपकी यह शिकायत नहीं रहेगी।

 पर आप  हर बार की तरह इस बार भी मुझे माफ करेंगे। इसी आशा के साथ अगली कड़ी लेकर जल्द हाजिर होऊंगा। तब तक के लिए

 जय माता की
वंदे मातरम

कभी कोई सो गया , कभी जा गया।

इस तरह से वो रात काटी थी।
I


कटरा रेलवे स्टेशन के बाहर का चित्र। पीछे सफ़ेद रंग की जो लाइन सी दिख रही है, वो माता के भवन तक जाने वाला मार्ग ही है मित्रों।

8 comments:

  1. भतीजे पहली ही पोस्ट में कई विरोधाभास लग रहे हैं । घर वालों को बहकाना और और उसे यूँ सार्वजनिक मंच पर यूँ गर्व सहित घोषित करना, मुझे नहीं जमा ।

    दूसरा तुम्हारे रेल यात्रा के बारे में विचार भी अच्छे नही लगे कि रेल यात्रा रात में अच्छी नही लगती ।
    खैर अभी तुम्हारी नादान उमरिया है बहुत कुछ सीखना बाकी है । सीख जाओगे

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी धन्यवाद।

      आगामी लेखों के लिए आपकी सलाह का अनुसरण अवश्य करूँगा जी

      Delete
  2. Replies
    1. जय माता की, गुरुदेव।

      आपका कॉमेंट पढ़कर अभिभूत हो जाता हूँ जी

      Delete
  3. घर वालो को बहकाने के नाम पर मन्नत मंगाना सही नहीं है पर फिर भी जय माता दी

    ReplyDelete
    Replies
    1. ये ऐसी पहली और आखिरी यात्रा थी प्रतीक जी।

      न इससे पहले कभी बहकाया ओर न भविष्य में जभी ऐसा होगा जी

      Delete