आप सबको मेरी ओर से सुबह की राम राम।
श्री किन्नौर कैलाश जी की यात्रा के कारण पिछले कुछ दिनों से व्यस्त चल रहा था। यात्रा की कुशल समाप्ति हुई, और अब आप सब के समक्ष उपस्थित हूँ, अपनी पहली यात्रा की तीसरी कड़ी को लेकर। आशा है आप सब पढ़ कर इसका आनन्द लेंगे।
दिनांक- 15 अप्रैल 2012
जो बस चाँदनी चौक से पकड़ी थी उसने हमे आगरा में किले के बिल्कुल सामने उतारा। वो जगह प्राइवेट बसों की पार्किंग के रूप में उपयोग की जाती है। मार्च 2017 की आगरा यात्रा में भी यह जगह ऐसे की ऐसे ही थी। खैर, हम बस से उतरे और उतरते ही गन्ने के रस के 1-1 गिलास पीकर गर्मी से निजात पाने का प्रयास किया। फिर किले के प्रवेश द्वार की ओर चले गए। टिकट लेने वाली लाइन में खड़े होकर टिकट खरीदी ओर मुख्य द्वार से अंदर प्रवेश कर गए। जैसे ही अंदर प्रवेश किया, गाइडों के झुंड ऐसे पास आने लगे जैसे शहद पर मधुमक्खी। मुझे एक बात आज भी परेशान करती है ये गाइड बिल्कुल पास आकर क्यों बोलते है- सर! गाईड। जैसे गाइड न हों, कोई मुजरिम हों। खैर, हम शहद जैसे मीठे नही थे, पर हमारा जवाब मीठा सा था- नही भाई! जो शायद उसे कड़वा लगा। जैसे ही अंदर प्रवेश किया तो किले की भव्यता ने मुझे तो बहुत आकर्षित किया। पर गाइड के बिना ये सब साधारण ही लग रहा था, भवन की वास्तुशिल्प व निर्माण कला की जानकारी तो गाइड ही दे सकते हैं।
बस, यहीं पर ब्राह्मण की 52 बुद्धि ने अपना काम दिखाना शुरू किया। वहां एक ग्रुप किले को देखने घूमने के लिए आया हुआ था, उनके साथ मे गाइड भी था जो उन्हें छोटी से छोटी बातें बता रहा था। बस, हम भी ऐसे हो गए, जैसे उसी समूह के सदस्य हों। तब वो गाइड भी हमें किले के निर्माण से सम्बंधित जानकारी देने लगा और तब जाकर के मुगल बादशाहों की शानो- शौकत का अंदाज़ा लगाया जाने लगा। युद्ध गलियारा, बड़ा दरवाजा, हाथीखाना, जहांगीर के नहाने का हौज, जोधा महल आदि के पीछे के सत्य हमे भी पता लगने लगे।
फिर हम गए उस स्थान पर, जहाँ औरंगजेब ने शाहजहाँ को कैद कर के रखा हुआ था। उसकी दीवारों पर लगे हुए रत्न देखे, अचम्भा भी बहुत हुआ, पर इन बातों को सत्य मानने के अलावा और कोई चारा भी तो नही था। उस जेल की खिडकी से ताजमहल दिखा पहली बार, सफेद संगमरमर की बनी हुई उस विश्व- प्रसिद्ध इमारत के पहली बार दर्शन, गर्मी की दोपहर के तपते हुए सूरज की किरणें ताज के गुम्बज पर पड़कर उसकी चमक में ओर भी अधिक वृद्धि कर रही थी। आंखों ने एकबारगी तो विश्वास नही किया कि ताजमहल मेरे सामने है। बस जब होश आया तो मन विचलित सा होने लगा, आगरा के इतने बड़े किले में भी घुटन सी महसूस होने लगी ओर लगा कि ताजमहल ही अब इस मर्ज की दवा है, तो बस, जल्दी से जल्दी ताजमहल के पास जाने की इच्छा बलवती होने लगी। बस , फिर कब दीवान-ए-आम आया और कब दीवान-ए-खास , मुझे कुछ पता नही।
खैर मित्रों, मुझे आज भी एक बात बहुत बुरी लगती है। वहां के गाइडों के मुँह से सुना था कि इस किले का सिर्फ 20 प्रतिशत भाग ही आम जनता के दर्शनार्थ खोला गया है, बाकी भाग पर कड़ा पहरा है। तो मुझे पहली बार लगा कि जब कभी मैं किसी उच्च पद पर आसीन होऊंगा, तब मैं इस बचे हुए हिस्से को अवश्य देखूंगा। ये सोचते सोचते हम बाहर आ गए, ऑटो लिया और चल दिए ताजमहल की ओर। जाहिर है, हमे रात को आगरा में ही रुकना था तो उस ऑटो वाले को बोला कि भाई, कोई सस्ता सा कमरा भी दिलवा दे। वो हमें उसके जान पहचान के किसी लॉज में ले गया। नाम था- Taj View Lodge, हालाँकि वहाँ से ताजमहल की एक मीनार का सिरा तक नही दिख रहा था। कुल मिलाकर कमरा अच्छा था, 250 में डबल बेड ओर अटैच बाथरूम, ओर क्या चाहिये? अंदर गए,नहाए धोए, कल के कुछ कपड़े मैले पड़े थे, उन्हें धोकर सूखने के लिए तार पर डाल दिया व चल दिए आधुनिक विश्व के 7 आश्चर्यों में शुमार भारत की सबसे अधिक देखी जाने वाली जगह- ताजमहल की ओर।
अगले भाग में आप सब को ताजमहल की सैर करवाएंगे, तब तक हम आगरा के छोले- भटूरे चट कर देते हैं।
।।।।वन्दे-मातृभूमि।।।
श्री किन्नौर कैलाश जी की यात्रा के कारण पिछले कुछ दिनों से व्यस्त चल रहा था। यात्रा की कुशल समाप्ति हुई, और अब आप सब के समक्ष उपस्थित हूँ, अपनी पहली यात्रा की तीसरी कड़ी को लेकर। आशा है आप सब पढ़ कर इसका आनन्द लेंगे।
दिनांक- 15 अप्रैल 2012
जो बस चाँदनी चौक से पकड़ी थी उसने हमे आगरा में किले के बिल्कुल सामने उतारा। वो जगह प्राइवेट बसों की पार्किंग के रूप में उपयोग की जाती है। मार्च 2017 की आगरा यात्रा में भी यह जगह ऐसे की ऐसे ही थी। खैर, हम बस से उतरे और उतरते ही गन्ने के रस के 1-1 गिलास पीकर गर्मी से निजात पाने का प्रयास किया। फिर किले के प्रवेश द्वार की ओर चले गए। टिकट लेने वाली लाइन में खड़े होकर टिकट खरीदी ओर मुख्य द्वार से अंदर प्रवेश कर गए। जैसे ही अंदर प्रवेश किया, गाइडों के झुंड ऐसे पास आने लगे जैसे शहद पर मधुमक्खी। मुझे एक बात आज भी परेशान करती है ये गाइड बिल्कुल पास आकर क्यों बोलते है- सर! गाईड। जैसे गाइड न हों, कोई मुजरिम हों। खैर, हम शहद जैसे मीठे नही थे, पर हमारा जवाब मीठा सा था- नही भाई! जो शायद उसे कड़वा लगा। जैसे ही अंदर प्रवेश किया तो किले की भव्यता ने मुझे तो बहुत आकर्षित किया। पर गाइड के बिना ये सब साधारण ही लग रहा था, भवन की वास्तुशिल्प व निर्माण कला की जानकारी तो गाइड ही दे सकते हैं।
बस, यहीं पर ब्राह्मण की 52 बुद्धि ने अपना काम दिखाना शुरू किया। वहां एक ग्रुप किले को देखने घूमने के लिए आया हुआ था, उनके साथ मे गाइड भी था जो उन्हें छोटी से छोटी बातें बता रहा था। बस, हम भी ऐसे हो गए, जैसे उसी समूह के सदस्य हों। तब वो गाइड भी हमें किले के निर्माण से सम्बंधित जानकारी देने लगा और तब जाकर के मुगल बादशाहों की शानो- शौकत का अंदाज़ा लगाया जाने लगा। युद्ध गलियारा, बड़ा दरवाजा, हाथीखाना, जहांगीर के नहाने का हौज, जोधा महल आदि के पीछे के सत्य हमे भी पता लगने लगे।
फिर हम गए उस स्थान पर, जहाँ औरंगजेब ने शाहजहाँ को कैद कर के रखा हुआ था। उसकी दीवारों पर लगे हुए रत्न देखे, अचम्भा भी बहुत हुआ, पर इन बातों को सत्य मानने के अलावा और कोई चारा भी तो नही था। उस जेल की खिडकी से ताजमहल दिखा पहली बार, सफेद संगमरमर की बनी हुई उस विश्व- प्रसिद्ध इमारत के पहली बार दर्शन, गर्मी की दोपहर के तपते हुए सूरज की किरणें ताज के गुम्बज पर पड़कर उसकी चमक में ओर भी अधिक वृद्धि कर रही थी। आंखों ने एकबारगी तो विश्वास नही किया कि ताजमहल मेरे सामने है। बस जब होश आया तो मन विचलित सा होने लगा, आगरा के इतने बड़े किले में भी घुटन सी महसूस होने लगी ओर लगा कि ताजमहल ही अब इस मर्ज की दवा है, तो बस, जल्दी से जल्दी ताजमहल के पास जाने की इच्छा बलवती होने लगी। बस , फिर कब दीवान-ए-आम आया और कब दीवान-ए-खास , मुझे कुछ पता नही।
खैर मित्रों, मुझे आज भी एक बात बहुत बुरी लगती है। वहां के गाइडों के मुँह से सुना था कि इस किले का सिर्फ 20 प्रतिशत भाग ही आम जनता के दर्शनार्थ खोला गया है, बाकी भाग पर कड़ा पहरा है। तो मुझे पहली बार लगा कि जब कभी मैं किसी उच्च पद पर आसीन होऊंगा, तब मैं इस बचे हुए हिस्से को अवश्य देखूंगा। ये सोचते सोचते हम बाहर आ गए, ऑटो लिया और चल दिए ताजमहल की ओर। जाहिर है, हमे रात को आगरा में ही रुकना था तो उस ऑटो वाले को बोला कि भाई, कोई सस्ता सा कमरा भी दिलवा दे। वो हमें उसके जान पहचान के किसी लॉज में ले गया। नाम था- Taj View Lodge, हालाँकि वहाँ से ताजमहल की एक मीनार का सिरा तक नही दिख रहा था। कुल मिलाकर कमरा अच्छा था, 250 में डबल बेड ओर अटैच बाथरूम, ओर क्या चाहिये? अंदर गए,नहाए धोए, कल के कुछ कपड़े मैले पड़े थे, उन्हें धोकर सूखने के लिए तार पर डाल दिया व चल दिए आधुनिक विश्व के 7 आश्चर्यों में शुमार भारत की सबसे अधिक देखी जाने वाली जगह- ताजमहल की ओर।
अगले भाग में आप सब को ताजमहल की सैर करवाएंगे, तब तक हम आगरा के छोले- भटूरे चट कर देते हैं।
।।।।वन्दे-मातृभूमि।।।
यह है दीवान-ए-आम। कहते हैं कि यहाँ झरोखे में मुगल बादशाह सिंघासन पर बैठकर आम जनता की समस्याएं सुनते ओर उनका निवारण करते थे। |
ये है ""जोधा का महल"। राजा मानसिंह की पुत्री जोधाबाई को इसी महल में रखा जाता था, जिस कारण इसका नाम जोधा का महल पड़ा। |
यह है आगरा के किले का मुख्य प्रवेश द्वार, टिकट खिड़की इसके थोड़ी सी अंदर जाने के बाद है। न जाने कितने गहरे राज खुद में समेटे हुए हैं इस किले के दरवाजे। |
बिन फोटो यात्रा लेख ऐसा है जैसे बिन नमक का भोजन।
ReplyDeleteकिन्नर कैलाश की यात्रा की प्रतीक्षा रहेगी।
जी सुबह सुबह जल्दी में बिना फ़ोटो के पोस्ट हो गया। 6 साल पहले यह यात्रा की थी गुरु जी। अब फ़ोटो बड़ी मुश्किल से निकाल रहा हूँ।
Deleteकैलाश यात्रा में समय लग सकता है जी, पहले बीच वाली यात्राओ का ब्यौरा दे दूं जी।
जी बहुत बढ़िया यात्रा हा फोटो थोड़े कम है
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक जी। 5 साल पुरानी यात्रा है जी, चित्र कम ही हैं अब तो
Deleteबढ़िया जानकारी
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद महेश जी
Deleteजिसे आप जोधा का महल कह रहे हो वो दरअसल जहाँगीर महल है |
ReplyDeleteमेरा ब्लॉग पर पढ़िए ...
http://www.safarhaisuhana.com/2013/08/red-fort-agra-3.html