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Saturday 22 September 2018

जीत कर भी मिली हार....यही है चूड़धार... भाग-5

गतांक से आगे..



दिनांक- 6 फरवरी 2017

लेख के पिछले भाग में आपने पढ़ा कि सुबह चूड़धार जाने की प्रतिज्ञा करके मैं सो गया था। पूरी रात मुझे ऐसे सपने आते रहे कि मैं बर्फ में अनंत तक चलता जा रहा हूं। ऐसे ही सपनों को देखते-देखते सुबह 4:30 बजे मेरी आंख खुल गई। जब मैंने कमरे से बाहर आकर देखा तो पाया कि अभी सूर्योदय नही हुआ था और चंद्रमा की थोड़ी-थोड़ी रोशनी में चूड़धार की बर्फीली चोटियां चमक रही थी। अब इतनी सुबह और ठंड में तो कुछ किया नहीं जा सकता था तो मैं दोबारा जाकर बिस्तर पर लेट गया। लगभग आधे घंटे बाद मैं दोबारा उठा और शौच आदि से निवृत हुआ। जब मैं उठा था तो मैंने गीजर का बटन ऑन कर दिया था ताकि मैं यहां से नहाकर निकल सकूं। नहाना मेरी मजबूरी भी है और शौंक भी। नहाकर लगता है कि मेरे अंदर प्राणों का संचार हो चुका है, लेकिन आधे घंटे बाद तक भी गीजर का पानी गर्म नहीं हुआ तो मुझे लगा कि कि गीजर में कहीं कुछ खराबी ना हो, तो मजबूरी में मैंने टंकी से पानी निकाला और पहला डिब्बा अपने ऊपर डालते ही मुझे लगा कि शौंक बड़ी चीज नही है। क्या कहा...क्यों??



                   अरे भई, आप खुद ही सोचो फरवरी की सर्द रातों में समुद्र तल से 17-1800 मीटर ऊपर किसी पहाड़ी कस्बे के होटल की छत पर प्लास्टिक की टंकी में पानी है और उस पानी से आप सुबह-सुबह 5:30 बजे नहाते हो, तो उस समय आपके शरीर से जैसी लहरें निकलती हैं न, वो robot dance के महारथी को भी सोचने पर मजबूर कर देती हैं। #feeling_डांसर_वाली
चूड़धार शिखर पर पूरी शान से विराजमान भगवान शिव। मूल शिरगुल मन्दिर इससे 1.5 किलोमीटर नीचे स्थित है।






                  खैर, नहा-धोकर मैं तैयार हुआ और अंतिम बार फिर तिवारी को बोला कि चल तिवारी! तू भी चल पड़। पर वह पट्ठा रजाई में ही पड़ा रहा ये कहते हुए कि मैं पागल नहीं हूँ, तू चला जा। अब मैं तो यह सोच रहा था कि आज शाम तक ऊपर पहुंच जाऊंगा रात को मंदिर में रुकूंगा और कल को वहां से चल पड़ूंगा तो इसलिए मैंने वहां रात के हिसाब से गर्म कपड़े भी ले लिए और साथ में अपनी गर्म चद्दर भी। सुबह 6:30 के करीब मैंने अपना कमरा छोड़ दिया था और चूड़धार के लिए प्रस्थान कर गया। बाहर जाकर देखा तो चौहान साहब ने ढाबा खोल तो लिया था पर अभी नाश्ते की तैयारी शुरू नही की थी, तो उनसे 4-5 पैकेट बिस्किट के लिए और चल पड़ा चूड़धार की ओर.....




                 नोहराधार से चूड़धार के लिए जाते हैं तो आपको सामने एक छोटा सा गेट मिलता है, वही से चूड़धार जाने के रास्ते का आरंभ है। उसमें से निकलकर आपको कुछ दूर तो बिना पगडंडी के चलना पड़ता है लेकिन 5-7 मिनट जाकर आप मुख्य रास्ते पर आ जाते हैं। मैं भी उसी रास्ते पर चलने लगा। वैसे चूड़धार जाने के 2 रास्ते प्रसिद्ध हैं। पहला तो यही नोहराधार वाला, यहां से चूड़धार शिखर की दूरी 17 किलोमीटर के लगभग है। नोहराधार 1520 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, वहीं चूड़धार शिखर की ऊंचाई है 3647 मीटर। दोनों के बीच की दूरी है 17 किलोमीटर। अतः प्रति किलोमीटर 125 मीटर का हाइट गेन होता है। trekking की दुनिया मे इसे मुश्किल कहा जाता है। दूसरा रास्ता है- चौपाल गांव से होकर। चौपाल की ऊंचाई है 2550 मीटर और चूड़धार 3647, दोनो के बीच की दूरी है 7 किलोमीटर। प्रति किलोमीटर 157 मीटर का हाइट गेन, जो इसे और भी मुश्किल बनाता है। इसलिए आप कभी चूड़धार जाएं तो मेरे हिसाब से नोहराधार की ओर से चढ़कर चौपाल की तरफ उतरना सही रहेगा।

ये है नोहराधार से चूड़धार की ओर जाने वाला रास्ता। { फ़ोटो:-google}





                मैं तो नोहराधार की ओर से चढ़ रहा था। बीच मे कहीं-कहीं इक्का-दुक्का घर आते। अब मुझे चलते हुए आधा घण्टा हो गया था। मौसम साफ था और सूर्यदेव अपनी पूरी तेजी के साथ निकल आए। पहाड़ की चढ़ाई चढ़ते हुए शरीर की ऊर्जा की ज्यादा खपत होती है और ऊपर से धूप भी तेज निकली थी तो उसका परिणाम यह हुआ कि मुझे गर्मी लगने लगी। तब मैंने अपने ऊपर की जैकेट निकाल दी और बैग के ऊपर डाल कर चलने लगा। लगभग 1 किलोमीटर चलने के बाद शरीर को पानी की आवश्यकता महसूस हुई। ध्यान में आया, अरे पागल! पानी की बोतल तो भरी भराई ही छोड़ आया। अब कुछ नहीं कर सकता था, तो चलता रहा। आगे जाने के बाद रास्ते में एक घर मिला। वहां एक बुजुर्ग आदमी बैठे थे तो पूछने लगे, अरे बेटा! कहां जा रहे हो?

 मैं तो जी चूड़धार जा रहा हूं।
बेटा! ऊपर तक नही जा पाओगे। बर्फ बहुत हैं। ऊपर कुछ लोग फँसे भी है, ऐसा भी सुना है।
हाँ ताऊ जी! मुझे भी नीचे पता चला ऐसा ही....
आप ऐसा करो, जहां तक जा सकते हो आओ। जहां आप को खतरा लगे, उसके बाद वापिस आ जाना।
इतनी बातचीत के बाद मैंने उनसे पानी की बोतल मांगी तो वह बोले बेटा 2 मिनट बैठो, मैं अभी लेकर आता हूं। उसके बाद वह आधा लीटर की एक पेप्सी की खाली बोतल लेकर आए। जब मैंने उसे खोलकर पानी भरना शुरू किया तो उसमें से अजीब तरह की बदबू आई। पूछने पर उन्होंने बताया कि इसमें मैंने शराब रखी थी, जो मैंने अपने घर पर निकाली थी। और कोई बोतल तो खाली थी नही तो मैं उसे किसी और बर्तन में डाल कर ये बोतल तेरे लिए ले आया। ऐसे होते हैं मेरे पहाड़ी बन्धु......उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करके मैंने बोतल को तीन चार बार धोया और उसमें पानी भर के चल पड़ा।
ये है उन ताऊ जी का घर, जिनसे बोतल ली थी दारू वाली.... अरे, पानी भरने के लिए।







             अकेले चलते चला जा रहा था, जब बोर होने लगा तो अपने हेडफोन निकाले और गाने सुनते हुए चलने लगा। कुछ दूर जाने पर एक गद्दी और उनकी पत्नी मिले। जाड़े चल रहे हैं तो इस समय उनकी सभी भेड़ वो नीचे ला चुके हैं, अभी वो जंगल से लकड़ियां तोड़ने जा रहे हैं। गद्दियों का पूरा-पूरा जीवन ही पहाड़ो में व्यतीत हो जाता है। हम किसी भी पहाड़ी यात्रा से लौट कर आते हैं तो अपनी शेखी बघारना नहीं भूलते। मैं इतनी ऊंचाई तक गया, ऐसे मौसम में गया, इतनी दिक्कत आई, टेंट लगाके सोए, आग जलाकर camping की...blah.. blah.......

पर कभी खुद की तुलना इन गद्दियों से करके देखो, इनके सामने हम कहीं ठहरते हैं क्या?? हम तो जाते हैं 2-4 दिन पहाड़ों में थोड़ी दिक्कत सहकर आकर कई सालों तक उसके गुण गाते हैं, लेकिन गद्दी और उनका परिवार जो पहाड़ो के जंगलों पर ही पूरी तरह निर्भर हैं, जहां के बुग्यालों में उनकी भेड़-बकरियां चरती हैं, इन्हें कितनी तकलीफ होती होगी?? तो दोस्तों, आपको जहां भी कोई गद्दी मिले तो समझ लेना कि आप एक ज़बरदस्त trekker, एक बेहतरीन mountain guide और अपने से मजबूत इंसान के सामने खड़े हैं, जो इन पहाड़ों की जान भी है और इनकी पहचान भी।
ये हैं वो गद्दी अंकल, जिनसे मेरी बातचीत हुई थी।



खैर, कुछ देर मेरी उनसे बात हुई और फिर मैं भी उन के साथ-साथ ही चलने लगा। लेकिन, धीरे-धीरे वो दोनों मुझसे आगे निकलने लगे। यूँ ही अकेले चलते-चलते लक्की ढाबा आ गया। मैंने कुछ खाया नहीं था वहां बैठकर एक चाय और बिस्कुट का नाश्ता किया और फिर आगे चल पड़ा। थोड़ी दूर जाने के बाद  घनघोर जंगल शुरू हो जाता है। इतना घना कि अधिकतर जगह सूरज की धूप भी नही पड़ती। सर्दियों में पेड़ों के पत्ते सूखकर गिर जाते हैं।  जंगल मे इतना सन्नाटा था कि मेरे पैरों से दबकर वो पत्ते जो आवाज़ कर रहे थे, उसे साफ सुना जा सकता था। कुछ दूर जाने के बाद एक झरना सा आया। झरना क्या बस पानी की नाली सी थी। यही यहां के लिए पानी का मुख्य स्रोत है। पहाड़ो के लोग पहाड़ से रिसने वाले पानी को कोई बांध बनाकर रोक देते हैं और फिर पाइप से उसे छोड़ देते हैं। इस पानी से आप नहाओ, धोओ, पीओ, सुखाओ, बनाओ, खिंडाओ......जो मर्जी करो। अगर आप hygienic हैं, bisleri वाले बाबू हैं, तो फिर ये जगहें आपके लिए नही हैं साहब। या तो घर रहिये या शिमला, मनाली वगरह तो हैं ही।

                  खैर, मैं तो चल रहा था ये सोचते सोचते। बस कभी-कभी किसी पक्षी की आवाज़ सुनाई देती। फिर भी मैं अपनी मस्ती में अकेला चला जा रहा था। अब चलते-चलते शायद मुझे 7 किलोमीटर हो गए होंगे। मुझे भूख लगने लगी तो घर से मेरी माता जी ने मुझे जो पंजीरी दी थी मैं उसे निकाल कर खाने लगा। मैंने वो लिफाफा निकाला ही था कि अचानक से....... भालू



जी हाँ, सही सुना भालू। अब उसने क्या किया और मैंने क्या किया, ये तो अगले भाग में पता चलेगा। फिलहाल आप देखिए रास्ते के कुछ चित्र.....


सुबह जब दूसरी बार उठा......
ऐसे ऊबड़-खाबड़ रास्ते हैं चूड़धार के



फरवरी में पहाड़ ऐसे ही हो जाते हैं बंजर से..... पर जून जुलाई में इन्ही की खूबसूरती देखते बनती है।

लकी ढाबे पर चाय का इंतजार करता हुआ मैं

उस टाइम मैंने घुमक्कड़ी के सीढ़ी पर पहला कदम ही रखा था, तो प्राकृतिक दृश्यों से ज्यादा खुद के चित्र मैं ज्यादा खींचता था। फिर भी कुछ चित्र हैं, ठीक-ठाक से।

चूड़धार पर्वत श्रृंखला

इसके आसपास के क्षेत्र को सरकार ने संरक्षित कर रहा है। इस वन्य क्षेत्र को चूड़धार sanctuary कहा जाता है।

अकेले ट्रेक के फायदे हैं तो नुकसान भी हैं। दिल कोनी लगदा रे भाई.....



मेरे साथ इस यात्रा पर कभी कभार एक साथी और आ जाता था......मेरी परछाई



पाँव के यही स्त्रोत हैं इस रास्ते मे.....
धन्यवाद पहाड़ी भाइयों...... पहाड़ो से रिसते पानी को इस सफेद सी दीवार के पीछे रोक रखा है और पाइप के द्वारा छोड़ रखा है, ताकि यात्री पी सकें।

जो बर्फ वाली चोटियां दिख रहीं हैं न, उन्ही में से सबसे ऊंची पर स्थित है चूड़धार शिव मूर्ति।

चूड़धार को चूड़धार क्यों कहते हैं.....इस फोटो को ध्यान से देखेंगे तो समझ मे आ जायेगा।

आसमानों तक जाते ये रास्ते.......

मैं एक बार गर्मियों में पक्का जाऊंगा यहाँ। यहाँ की खूबसूरती को देखने

ऐसे हैं रास्ते......इन रास्तों पे चलते हुए ध्यान रखना पड़ता है। पैर मुड़ते हुए देर नही लगती। अगर मुड़ा तो बस पहुंच लिए चूड़धार फिर तो.....



है कठिन यह मार्ग लेकिन, अनवरत हम चल रहे हैं....

चूड़धार वन्य क्षेत्र का घनघोर जंगल....जहां तेंदुओं ओर भालुओ का राज है इस समय.....

 चूड़धार यात्रा के पिछले भागों को आप निम्नलिखित लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:-


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